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कोविड-19: महिलाओं व लड़कियों के लिये पीढ़ियों की प्रगति खो जाने का ख़तरा

कोविड-19 के कारण महिला सशक्तिकरण की दिशा में अब तक हुई प्रगति पर संकट मंडरा रहा है.
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कोविड-19 के कारण महिला सशक्तिकरण की दिशा में अब तक हुई प्रगति पर संकट मंडरा रहा है.

कोविड-19: महिलाओं व लड़कियों के लिये पीढ़ियों की प्रगति खो जाने का ख़तरा

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने आगाह किया है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के विनाशकारी सामाजिक और आर्थिक प्रभावों से दुनिया भर में महिलाएँ व लड़कियाँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में वर्षों व कई पीढ़ियों से हो रही प्रगति को कोरोनावायरस संकट की भेंट ना चढ़ने देने के लिये व्यापक प्रयास करने की आवश्यकता होगी. 

यूएन प्रमुख ने सोमवार को नागरिक समाज संगठनों की युवा महिलाओं के साथ एक वर्चुअल बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पहले ही लैंगिक समानता और महिला अधिकारों पर सीमित व नाज़ुक प्रगति को ठेस पहुँच चुकी है. 

उन्होंने कहा कि समुचित प्रयासों के अभाव में एक पीढ़ी या अब तक हुई प्रगति को खोने का ख़तरा है. 

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महासचिव गुटेरेश ने स्वास्थ्य, ज़रूरी सेवाओं, शिक्षा, देखभाल कर्मियों और अन्य भूमिकाओं में महिलाओं के अहम योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि महिलाएँ घर से बाहर और अन्दर लाखों-करोडों की मदद कर रही हैं.

लेकिन समाज में क़ायम विषमताओं और पूर्वाग्रहों के कारण उनके योगदान को पहचान नहीं जाता. 

कोविड-19 महामारी के दौरान अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को अपने रोज़गार खोने के कारण वित्तीय असुरक्षा, नियमित आय के अभाव और प्रभावी सामाजिक संरक्षा के दायरे से बाहर होने जैसी अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने ध्यान दिलाया कि महामारी से निपटने के ऐहतियाती उपायों के कारण लागू होने वाली तालाबन्दी व सख़्त पाबन्दियों के कारण लिंग आधारित हिंसा के मामले भी तेज़ी से बढ़े हैं.

महिलाओं को अक्सर उनके साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों के साथ घरों में ही सीमित रहने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है.

“संक्षेप में कहें तो महामारी ने उन बाधाओं को उजागर करते हुए और भी ज़्यादा गहरा बना दिया है जिनका सामना महिलाएँ अपने अधिकारों को हासिल करने और अपनी सम्भावनाओं को पूर्ण करने में करती हैं.”

सोमवार को हुई टाउनहॉल बैठक नियमित रूप से ‘महिलाओं की स्थिति पर आयोग’ (CEDAW) के वार्षिक सत्र के दौरान आयोजित की जाती है.

लेकिन कोरोनावारस संकट के कारण इसे वर्चुअली आयोजित किया गया जिसमें महिलाधिकार सुनिश्चित करने के प्रयासों में जुटे कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया. 

यूएन प्रमुख ने अपने सम्बोधन में कहा कि उनका उद्देश्य इस टाउनहाल में उठी आवाज़ों को सुनना, प्रतिभागियों को सवाल पूछने के लिये प्रोत्साहित करना और उनकी राय को सुनना है. 

पोलैण्ड की एक महिला कार्यकर्ता मार्था ने योरोप में लोकलुभावनवाद और राष्ट्रवाद के उभार का ज़िक्र किया जिससे उनके मुताबिक लोकतन्त्र और मानवाधिकारों के लिये ख़तरे पैदा हो रहे हैं.  

जॉर्जिया की नीना ने सहमति जताई कि महिलाओं के योगदान को कम करके आँका जाता है और इस महामारी के दौरान उनके कंधों पर बोझ बढ़ गया है. 

कुछ प्रतिभागियों ने अपने लिखित सवाल पहले ही भेज दिये थे जिन्हें लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली संयुक्त राष्ट्र संस्था (UN Women) की प्रमुख पुमज़िले म्लाम्बो-न्गुका ने पढ़ा.   

इन सवालों में कोविड-19 के कारण किशोर उम्र में गर्भावस्था के मामलों के बढ़ने, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रक्षा, विकलागों के लिये समर्थन और नस्लवाद से लड़ाई जैसे मुद्दों पर आवाज़ उठाई गई. 

यूएन एजेंसी की प्रमुख ने ख़ुशी जताई कि विश्व भर में महिलाओं को संयुक्त राष्ट्र महासचिव के साथ संवाद स्थापित करने, अपने मुद्दों व चिन्ताओं को उठाने का यह अवसर मिला है जो सुखद अनुभूति है.

पुनर्निर्माण के केन्द्र में महिलाएँ

यूएन प्रमुख ने अपने सम्बोधन में अप्रैल 2020 में जारी उस नीतिपत्र का ज़िक्र किया जिसमें सरकारों से कोविड-19 के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई के केन्द्र में महिलाओं व लड़कियों के समावेशन, प्रतिनिधित्व और अधिकारों को रखने की सिफ़ारिशें की गई हैं. 

उन्होंने आगाह किया कि पहले सभी देशों को महामारी से स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़े असर का मूल्याँकन करना होगा.

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“सभी महिलाओं को समानता और किफ़ायती यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार है. सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वे इन सेवाओं को महिलाओं व लड़कियों के लिए सुलभ बनाएँ – संकट के दौरान भी.”

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इसका अर्थ यह है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधन मुहैया कराए जाने होंगे. 

इसके समानान्तर, औपचारिक व अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं में काम कर रही महिलाओं के हाथ में ज़्यादा धनराशि सुनिश्चित की जानी होगी. 

इस क्रम में नक़दी हस्तान्तरण, उधार और क़र्ज़ जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराना अहम होगा ताकि रोज़गार ख़त्म होने और देखभाल सम्बन्धी ज़िम्मेदारियाँ बढ़ने से पैदा हुई मुश्किलों से निपटा जा सके.

उन्होंने दोहराया कि सदियों से चली आ रही पितृसतात्मक व्यवस्था से पुरुष-प्रधान संस्कृति को बढ़ावा मिला है जिससे हर किसी को हानि हुई है.

उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिये विफल नीतियों पर फिर लौटने के बजाय पहले से ज़्यादा समान, समावेशी और सहनशील समाजों के निर्माण पर बल दिया है. 

महासचिव गुटेरेश ने कहा कि बेहतर पुनर्बहाली के लिये सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत और नागरिक समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी. 

यूएन प्रमुख ने अपने सम्बोधन में वर्ष 2020 को बेहद महत्वपूर्ण साल क़रार दिया है. यह ‘बीजिंग घोषणापत्र’ की 25वीं वर्षगाँठ, ‘महिलाएँ, शान्ति व सुरक्षा’ पर सुरक्षा परिषद के 1325 प्रस्ताव की 20वीं वर्षगाँठ और ‘टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर कार्रवाई के दशक’ का पहला वर्ष है. 

इन सभी महत्वपूर्ण पहलों के माध्यम से लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के वायदे को वास्तविक बनाने के लिये हरसम्भव प्रयास करने का संकल्प लिया गया है.