कोविड-19: कोवैक्स मुहिम में शामिल होना ही एक मात्र प्रभावी विकल्प

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने कहा है कि वैश्विक महामारी कोविड-19 की चपेट से बाहर निकलने का एक मात्र तरीक़ा एक ऐसी व्यवस्था में संसाधन निवेश करना है जिसके ज़रिये सभी देशों को कोविड-19 की वैक्सीन न्यायसंगत रूप में और सही समय पर मिले.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक टैड्रोस ऐडनेहॉम घेबरेयेसस ने सोमवार को पत्रकारों को बताया कि वैश्विक वैक्सीन कोवैक्स बनाने वाली सुविधा के लिये अभी तक 172 देश जुड़ चुके हैं, जिसका उद्देश्य साल 2021 के आख़िर तक दुनिया भर में दो अरब ख़ुराकें मुहैया कराना है.
"Last week, I sent a 📨to all Member States requesting them to join the vaccine arm of the ACT-Accelerator. As of today 172 countries are now engaging w/ the COVAX Global Vaccines Facility, which has both the largest & most diverse #COVID19 vaccine portfolio in the🌎"-@DrTedros
WHO
उन्होंने कहा, “कोवैक्स सुविधा में संसाधन निवेश करना ही इस महामारी पर तेज़ी से क़ाबू पाने और टिकाऊ आर्थिक पुनर्बहाली का एक मात्र तरीक़ा है.”
स्वास्थ्य एजेंसी प्रमुख ने पिछले सप्ताह तमाम देशों से इस सुविधा में शामिल होने की अपील जारी की थी. इस मिशन के तहत फिलहाल नौ वैक्सीन पोर्टफ़ोलियो में शामिल हैं और अन्य नौ का परीक्षण चल रहा है.
“जैसे-जैसे सरकारें आर्थिक प्रोत्साहन उपायों में खरबों डॉलर की रक़म निवेश कर रहे हैं, कोवैक्स सुविधा में निवेश करने से भी अपार फ़ायदा होने वाला है. सुरंग के दूसरे छोर पर प्रकाश नज़र आ रहा है, और जैसाकि मैंने पिछले सप्ताह कहा ता, हम एक साथ मिलकर ये काम कर सकते हैं.”
कोवैक्स सुविधा दुनिया भर में कोविड-19 का इलाज विकसित करने और वैक्सीन व इलाज सभी को उलब्ध कराने की पहल तेज़ करने की एक शाखा है. इस पहल को एसीटी एक्सीलरेटर के नाम से भी जाना जाता है.
इस कोवैक्स नामक सुविधा के ज़रिये देश संयुक्त रूप से अनेक दवाएँ ख़रीद सकेंगे और सामूहिक जोखिम की योजना में भी शामिल होंगे जिसके ज़रिये महामारी का एक ऐसा सुरक्षित और प्रभावी इलाज उपलब्ध हो सकेगा जो सभी को समान रूप से उपलब्ध हो.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख ने कहा कि कई वैक्सीन अब क्लीनिकल परीक्षण के लिये अन्तिम चरण में पहुँच गई हैं, और उम्मीद है कि उनमें से अनेक सुरक्षित व असरदार दोनों ही होंगी.
डॉक्टर टैड्रोस ने विस्तार से बताते हुए कहा कि चूँकि शुरू में वैक्सीन की सीमित आपूर्ति होगी, इसलिये आरम्भ में वैक्सीन की ख़ुराकें उन लोगों और स्थानों तक पहुँचाईं जाएँगी जिन्हें और जहाँ ख़तरा सबसे ज़्यादा है, मसलन, स्वास्थ्यकर्मी, 65 वर्ष से ज़्यादा उम्र के लोग, और ऐसे लोग जिन्हें कुछ तरह की बीमारियों होने के कारण कोविड-19 से मृत्यु होने का ज़्यादा ख़तरा है.
इस चरण के बाद वैक्सीन की आपूर्ति कोविड-19 महामारी के जोखिम का आकलन करते हुए हर देश तक पहुँचाने की कोशिश की जाएगी.
महानिदेशक डॉक्टर टैड्रोस एडेनहॉम घेबरेयेसस ने कहा, “वैक्सीन की पर्याप्त ख़ुराकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये अगला क़दम ये होगा कि सभी देश कोवैक्स सुविधा को समर्थन व सहयोग देने के लिये बाध्यकारी प्रतिबद्धताएँ व्यक्त करें.”
देशों के पास कोवैक्स सुविधा में शामिल होने के लिये अपनी इच्छा व्यक्त करने के लिये 31 अगस्त तक का समय है, और उसकी पुष्टि करने के लिये 18 सितम्बर तक का समय होगा. धन का आरम्भिक भुगतान 9 अक्टूबर तक करना होगा.
कोवैक्स सुविधा गावी, वैक्सीन अलायन्स, CEPI, और विश्व स्वास्थ्य संगठन की संयुक्त निगरानी व अगुवाई में चलाई जा रही है.
महानिदेशक ने कहा, “जो देश सही समय पर इस अभियान में शामिल होंगे, उन्हें न्यायसंगत तरीक़े से वैक्सीन, लाइसेंस और मंज़ूरी मुहैया कराने के लिये हम वैक्सीन निर्माताओं के साथ काम कर रहे हैं.“
ऐसे देश ना केवल अपने जोखिम को अन्य देशों के साथ बाँटेंगे, बल्कि क़ीमतें भी यथासम्भव कम रखने की कोशिश की जाएगी.
एक अन्य फ़ायदा भी है: “वैक्सीन राष्ट्रवाद” से हिफ़ाज़त”
नए शोध दिखाते हैं कि वैक्सीन की ख़ुराकों के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्धा के कारण कोवैक्स सुविधा जैसे सामूहिक प्रयासों की तुलना में क़ीमतों में भारी उछाल आ सकता है.
“इस स्थिति के कारण महामारी लम्बे समय तक मौजूद रह सकती है क्योंकि वैक्सीन की ज़्यादा आपूर्ति कुछ कम देशों को ही उपलब्ध रहेगी. वैक्सीन राष्ट्रवाद से केवल वायरस का लाभ होगा.”
हालाँकि महानिदेशक ने ज़ोर देकर कहा कि कोवैक्स सुविधा की कामयाबी के लिये शोध व विकास में धन की कमी को दूर करना और निम्न आय वाले देशों की की मदद करना भी बहुत ज़रूरी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 का इलाज करने के लिये सम्भावित मोनोक्लोनल एण्टीबॉडीज़ की भूमिका की अहमियत को भी रेखांकित किया है.
मोनोक्लोनल एण्टीबॉडीज़ इनसानों के शरीर में ऐसी मानव निर्मित कोषिकाएँ होती हैं जो किसी वायरस को शरीर में दाख़िल होने व संक्रमण फैलाने से रोकती हैं.
पिछले 10 से 15 वर्षों के दौरान इस तरह की एण्टीबॉडीज़ को अनेक बीमारियों के इलाज के लिये इस्तेमाल किया गया है. इनमें दीर्घकालिक बीमारियाँ और कैंसर जैसे रोग शामिल हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि ऐजेंसी को महामारी के दौरान अनेक क्लीनिकल परीक्षण किये जाने की जानकारी है.
एक पत्रकार के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “ये इलाज का एक सम्भावित और प्रभावी तरीक़ा एक विकल्प के रूप में मौजूद है.”
हालाँकि डॉक्टर स्वामीनाथन ने बताया कि मोनोक्लोनल एण्टीबॉडीज़ महंगी और बनाने में बहुत जटिल हैं, इसका मतलब ये है कि वैश्विक स्तर पर इस विकल्प की उपलब्धता बहुत कठिन होगी.
डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, “हम बहुत नज़दीकी नज़र रखे हुए हैं, और ये देखने के लिये अनेक साझीदारों के साथ बातचीत चल रही है कि टैक्नॉलॉजी स्थानान्तरण किस तरह हो सकता है.”