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रोहिंज्या संकट का स्थायी समाधान ढूँढने की आवश्यकता पर बल

म्याँमार में सैन्य अभियान शुरू होने के बाद रोहिंज्या समुदाय ने बांग्लादेश में शरण ली थी. अगस्त 2020 में उनके विस्थापन को तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं.
© UNHCR/Areez Tanbeen Rahman
म्याँमार में सैन्य अभियान शुरू होने के बाद रोहिंज्या समुदाय ने बांग्लादेश में शरण ली थी. अगस्त 2020 में उनके विस्थापन को तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं.

रोहिंज्या संकट का स्थायी समाधान ढूँढने की आवश्यकता पर बल

प्रवासी और शरणार्थी

शरणार्थी मामलों की संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (UNHCR) ने विस्थापित और राष्ट्रविहीन रोहिंज्या समुदाय के लिये अपील जारी करते हुए कहा है कि म्याँमार और अन्य देशों में रह रहे रोहिंज्या समुदाय के लोगों की पीड़ाओं को ना भुलाकर उनकी मुश्किलों का स्थायी हल निकाला जाना होगा. तीन वर्ष पहले अगस्त 2017 में म्याँमार में दमनकारी सैन्य अभियान शुरू होने के बाद लाखों रोहिंज्या शरणार्थियों ने बांग्लादेश में शरण ली थी. लेकिन उनके समक्ष आज भी चुनौतियाँ हैं जिन्हें कोविड-19 महामारी ने और भी गम्भीर बना दिया है.

यूएन एजेंसी ने ध्यान दिलाया है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को ना सिर्फ़ शरणार्थियो और मेज़बान समुदायों के लिये समर्थन क़ायम रखना होगा बल्कि उनकी अहम ज़रूरतें पूरी करने और समस्याओं के स्थायी समाधान ढूँढने के भी प्रयास करने होंगे. 

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एक अनुमान के मुताबिक रोहिंज्या समुदाय के लोगों की कुल संख्या का लभगग तीन-चौथाई हिस्सा फ़िलहाल म्याँमार से बाहर अन्य देशों में है.

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी और बांग्लादेश सरकार ने कॉक्सेस बाज़ार की शरणार्थी बस्तियों में आठ लाख 60 हज़ार से ज़्यादा शरणार्थियों का पंजीकरण किया है. 

यूएन एजेंसी के मुताबिक बांग्लादेश ने रोहिंज्या शरणार्थियों के लिये गहरा मानवीय संकल्प दर्शाया है.

बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों को संरक्षण और जीवनरक्षक मानवीय सहायता मिली है.

एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में पंजीकृत 90 फ़ीसदी शरणार्थी फ़िलहाल बांग्लादेश में रह रहे हैं. 

शरणार्थी एजेंसी ने बांग्लादेश की इस उदारता की सराहना करते हुए आगाह किया है कि रोहिंज्या शरणार्थियों और बांग्लादेश में मेज़बान समुदायों की भलाई के लिये निवेश जारी रखना होगा. 

बताया गया है कि रोहिंज्या लोगों की व्यथा का समाधान अ्न्तत: म्याँमार में ही है. इस सिलसिले में राखीन प्रान्त पर सलाहकार आयोग की सिफ़ारिशें व्यापक स्तर पर लागू करनी होंगी जिसके लिये म्याँमार सरकार ने भी संकल्प प्रदर्शित किया है. 

रोहिंज्या समुदाय की सुरक्षित और स्थायी वापसी के लिये अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने में पूर्ण समाज की भागीदारी की आवश्यकता होगी. साथ ही म्याँमार सरकार और रोहिंज्या शरणार्थियों के बीच संवाद और भरोसा बहाल करने वाले प्रयास फिर शुरू किये जाने होंगे. 

इनमें आवाजाही की आज़ादी पर लगी पाबन्दियों को हटाना, विस्थापित रोहिंज्या लोगों को वापिस गाँव लौटने की अनुमति की पुष्टि करना और नागरिकता हासिल करने के  सुस्पष्ट उपायों की जानकारी देना शामिल हैं. 

म्याँमार से बाहर भी रोहिंज्या समुदाय की गरिमा और उनके कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये सामूहिक प्रयास किये जाने होंगे ताकि वे अपने भविष्य के प्रति आशावान हो सकें. 

इसका अर्थ म्याँमार से बाहर अन्य देशों में ऐसे स्थायी समाधान की दिशा मे प्रयास करना है जिनसे उनके लिये पढ़ाई और रोज़गार के अवसर सृजित हो पाएँ. 

यूएन एजेंसी ने कहा है कि निर्वासन में रहने को मजबूर रोहिंज्या समुदाय की ताक़त और सहनक्षमता पिछले तीन वर्षों में मानवीय राहत प्रयासों की रीढ़ रही है. और उन्हें राहत पहुँचाने के साथ-साथ मेज़बान समुदायों को भी मदद मिली है.

उनके साहस और क्षमताओं का सम्मान करते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि चौथे साल में प्रवेश कर रहे इस संकट के पीड़ितों को ना भुलाया जाए.