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एशिया-प्रशान्त में गहरी डिजिटल खाई को पाटना ज़रूरी

भारत जैसे देशों में महामारी से निपटने और पुनर्बहाली के प्रयासों में डिजिटल कनेक्टिविटी अहम  है.
United Nations/Chetan Soni
भारत जैसे देशों में महामारी से निपटने और पुनर्बहाली के प्रयासों में डिजिटल कनेक्टिविटी अहम है.

एशिया-प्रशान्त में गहरी डिजिटल खाई को पाटना ज़रूरी

एसडीजी

एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के लिये आर्थिक एवँ सामाजिक आयोग (UNESCAP) के मुताबिक वैश्विक महामारी से निपटने और उसका असर कम करने के लिये क्षेत्र में स्थित देश नई तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं. कोविड-19 का संकट गुज़र जाने के बाद बेहतर ढँग से पुनर्बहाली सुनिश्चित करने के लिए सरकारें और विशेषज्ञ नवाचार  (Innovation) के ज़रिये नए समाधान ढूँढने के लिए भी प्रयासरत हैं लेकिन उसे साकार करने के लिए डिजिटल खाईयों को दूर करना अहम है.

कोरोनावायरस जीनोम मैपिंग, परीक्षणों की संख्या व दायरा बढ़ाने, संक्रमण की पहचान करने और सम्पर्क में आए लोगों को अलग करने और भौगोलिक सूचना प्रणाली व सैटेलाइट इमेजिंग जैसे तकनीकों ने रोग के प्रसार पर महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने में मदद की है.

एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के चार अरब 30 करोड़ लोगों में से लगभग 52 प्रतिशत लोग ऑफ़लाइन हैं और ऐसी टैक्नॉलजी के फ़ायदों तक पहुँच होने से वंचित हैं.

एशिया और प्रशान्त क्षेत्र के लिये आर्थिक एवँ सामाजिक आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आशंका जताई है कि डिजिटल जगत में व्याप्त खाईयाँ विषमताओं को और बढ़ाकर समाजों को अधिक कमज़ोर बना सकती हैं. 

UNESCAP के सूचना और संचार प्रौद्योगिकी प्रभाग की निदेशक तिज़ियाना बोनापेस ने यूएन न्यूज़ को बताया, “महामारी के दौरान डिजिटल विभाजन एकदम असली रूप में सामने आ गया है”, अब इसके क्षेत्र में "असमानता का नया चेहरा" बनने का जोखिम पैदा हो गया है.

शहर और गाँवों के बीच अन्तर

तालाबंदी के कारण कारोबार बंद होने पर लाखों प्रवासियों को बड़े शहरों से ग्रामीण इलाक़ों में स्थित अपने घरों को लौटना पड़ा लेकिन शहरी केंद्रों में उच्च गति इंटरनेट सेवा की आसान उपलब्धता गाँवों में सुलभ नहीं थी. 

प्रवासी कामगारों के बच्चों के पास शहरों में हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी थी और वहाँ वे ऑनलाइन कक्षाएँ लेने में सक्षम थे, लेकिन ख़राब कनेक्टिविटी के कारण गाँवों में ऑनलाइन शिक्षा का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. 

तिज़ियाना बोनापेस ने बताया कि इस स्थिति से निपटने के लिए दोहरे-दृष्टिकोण की आवश्यकता है. “हमें आपूर्ति पक्ष को सहारा देने की ज़रूरत है. फ़ाइबर ऑप्टिक बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश की ज़रूरत होती है, जो डेटा को भेजता और प्राप्त करता है.”

उनका मानना है कि सेवाओं की माँग बढ़ाने के लिये डिजिटल शिक्षा और कौशल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

जनता की भलाई के लिये कनेक्टिविटी

डिजिटल सम्पर्क को लोगों के कल्याण के लिये अहम बताते हुए तिज़ियाना बोनापेस ने कहा कि चूँकि इनमें उच्च लागत लगती है इसलिये सरकारें निजी क्षेत्र के साथ सहयोग के ज़रिये फ़ाइबर ऑप्टिक सिस्टम स्थापित करने के लिए आगे आ सकती हैं. 

अगर फ़ाइबर ऑप्टिक केबल को बिजली लाइनों या राजमार्गों जैसे बुनियादी ढाँचे के निर्माण के साथ जोड़ दिया जाए तो  इन लागतों को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है – मतलब ये कि "कई प्रकार के उपयोगों के लिए एक ही बार खुदाई करना."

उन्होंने कहा, "लाभ को बेहतर तरीक़े से समझने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के साथ-साथ अन्य हितधारकों के बीच संवाद को भी मज़बूत किया जाना चाहिए." 

संवाद बनाने में सहयोग

इस सिलसिले में प्रयासों के तहत UNESCAP,  सूचना व संचार प्रौद्योगिकी, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार पर अपनी समिति (Committee on Information and Communications Technology, Science, Technology and Innovation) का तीसरा सत्र आयोजित करने की तैयारियों में जुटा है, जिससे सरकारों और विशेषज्ञों को श्रेष्ठ तरीक़ों व अनुभवों का आदान-प्रदान करने, सीखे गए सब़क साझा करने और प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के लिए सहयोगी कार्रवाई की पहचान करने में मदद मिलेगी. 

संयुक्त राष्ट्र का यह निकाय "बेहतर डिजिटल कनेक्टिविटी और नवाचार के फ़ायदे" पर एक उच्च-स्तरीय क्षेत्रीय चर्चा भी आयोजित करेगा ताकि बेहतर निर्माण हो सके. इसके लिए वर्चुअल बैठकों का आयोजन किया जा रहा है 

वर्ष 1947 में स्थापित UNESCAP,आकार और जनसंख्या के लिहाज़ से संयुक्त राष्ट्र के पाँच क्षेत्रीय आयोगों में सबसे बड़ी शाखा है.