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कोरोनावायरस: संकट काल में ज़रूरतमन्दों की सहायता का संकल्प

कोविड-19 के कारण तालाबंदी के दौरान दूर-दराज़ के इलाक़ों में बैंक सेवाएँ पहुँचाने में सलामी शशांकर योगदान दे रही हैं.
Kalinga Institute of Social Sciences, Odisha.
कोविड-19 के कारण तालाबंदी के दौरान दूर-दराज़ के इलाक़ों में बैंक सेवाएँ पहुँचाने में सलामी शशांकर योगदान दे रही हैं.

कोरोनावायरस: संकट काल में ज़रूरतमन्दों की सहायता का संकल्प

मानवीय सहायता

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण यह वर्ष दुनिया भर में मानवीय राहत कार्यों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. अनेक  प्रकार की सेवाओं तक पहुँच ना हो पाने और तालाबंदी से प्रभावित लोगों की मदद के लिए स्थानीय समुदाय, नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन आगे आए हैं. बुधवार, 19 अगस्त को, विश्व मानवीय दिवस पर भारत के पूर्वी राज्य ओडिषा उन सहायताकर्मियों की चुनिंदा कहानियाँ जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की मदद से महामारी के दौरान लोगों की सहायता के लिये हाथ आगे बढ़ाया.

27 वर्षीय सलामी शशांकर ओडिषा में कोरापुट ज़िले के माओवाद प्रभावित क्षेत्र में स्थित टोयापुत गाँव में अपने परिवार के साथ रहती हैं.

वर्ष 2019 में कॉलेज से स्नातक होने के बाद वह एक स्वयंसेवक के रूप में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) समर्थित ‘मिशन उदय’ में शामिल हो गईं. 

यहाँ उनकी ज़िम्मेदारी ग़रीबों के लिए सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाना थी.

उन्होंने इन योजनाओं का लाभ उठाने योग्य समुदाय के सदस्यों की पहचान कर, उनके आवेदन और दस्तावेज़ जमा करने में सहायता की, साथ ही उन्हें ऋण सुविधाओं और योजनाओं से सम्बन्धित सब्सिडी के बारे में भी शिक्षित किया.

कुछ करने की चाह 

लेकिन सलामी इससे सन्तुष्ट नहीं थीं. वह और बहुत कुछ करना चाहती थीं!

उन्होंने एक लैपटॉप ख़रीदकर उसके उपयोग पर अपनी पकड़ बनाई.. ‘मिशन उदय’ के माध्यम से इंटरनेट सुविधा तक पहुँच के साथ उन्होंने अपने ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की.

दिसम्बर 2019 में सलामी को ओडिषा आजीविका मिशन में कान्ट्रैक्ट पर रखा गया. इसमें उन्हें एक स्वयं सहायता समूह के कौशल को मज़बूत करने और उसे विभिन्न आजीविका कार्यक्रमों में शामिल करने की ज़िम्मेदारी दी गई.

सलामी शशांकर की मदद से एक हज़ार बैंक ग्राहकों को मदद मिली है.
Kalinga Institute of Social Sciences, Odisha.

कोविड-19 महामारी के कारण तालाबंदी होने से ठीक पहले मार्च 2020 में, उन्हें भारतीय स्टेट बैंक की लक्ष्मीपुर शाखा में एक आउटसोर्स कर्मचारी के रूप में काम करने का अवसर मिला. यहाँ उनका काम था - अपने पैतृक गाँव से सटे दूरदराज़ के 20आदिवासी इलाक़ों के लोगों तक पहुँच बनाना. 

जहाँ चाह, वहाँ राह

तालाबंदी के कारण आवाजाही रूक गई, लेकिन लोगों की मदद करने के सलामी के जज़्बे को गति मिल गई. 

सलामी को एहसास हुआ कि महामारी से लोगों की आर्थिक स्थिति प्रभावित होगी, जिससे लोगों को पहले से कहीं अधिक बैंकिंग सेवाओं की आवश्यकता पड़ सकती है. 

तब उन्होंने ठान लिया कि वो बैंक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाएँगी. 

हालाँकि उनकी नियुक्ति  टोयापुत पंचायत कार्यालय के एक छोटे से केंद्र में हुई थी, लेकिन उन्होंने लोगों के आने के इंतज़ार में समय बर्बाद करना ठीक नहीं समझा और कोविड-19 के जोखिम के बावजूद दुर्गम स्थानों में ग्राहकों को बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिए अपने दोपहिया वाहन पर निकल पड़ीं. 

अपनी यात्राओं के बारे में सलामी बताती हैं, "दूरदराज़ के ग्राहकों तक पहुँचने के बाद मैं अपना काम करने के लिए जगह की तलाश करती हूँ - यह एक छायादार पेड़ या पत्तियों से बनी चटाई हो सकता है जहाँ मैं आराम से बैठकर अपने ग्राहकों को चार से पाँच घंटे तक बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करती हूँ." 

एक बैंक सेवा प्रदाता के रूप में वह अपने ग्राहकों के लिए ज़रूरी सभी चीज़ों, जैसे निकासी पर्ची, जमा पर्ची, स्टैम्प पैड, पहचान के लिय़े बायोमैट्रिक डिवाइस, ग्राहक के विवरण के लिये बैंक रजिस्टर और धन साथ ले जाती हैं.

साथ ही, मास्क पहनकर हैण्ड सैनिटाइज़र लेकर और दूसरों से सुरक्षित दूरी बनाकर सभी सावधानियों का पालन भी करती हैं. 

‘बैंक मैडम’ 

गाँव वाले भी सम्मान से उन्हें ‘बैंक मैडम’ कहकर सम्बोधित करते हैं.

53 वर्षीय गाँववासी पैरा मुस्का ने बताया, “मेरे घर से बैंक 10 किलोमीटर दूर है और तालाबंदी के दौरान कोई परिवहन उपलब्ध नहीं था. मैं अपने दैनिक ख़र्च को पूरा करने के लिएअपने बैंक खाते से पैसे नहीं निकाल पा रही थी."

"मैं बहुत असहाय महसूस कर रही थी. वो सलामी ही थी जिसने बैंक को मेरे दरवाज़े पर ला दिया और उनकी वजह से अब मैं पैसे निकालने और अपने खर्चों को पूरा करने में सक्षम हूँ. मैं उनकी शुक्रगुज़ार हूँ.”

70 वर्ष के लाची हिक्का ने बताया, “लॉकडाउन के कारण मैं मधुबाबू पेंशन योजना और कालिया योजना से प्राप्त धन को वापस लेने में असमर्थ था. मैं अकेला रहता हूँ और कोविड पाबंदियों के कारण मेरे पड़ोसी भी मेरे साथ बैंक नहीं जा सकते थे."

"मेरे पास खाने के लिए भी पैसे नहीं थे. मैं सलामी का शुक्रगुज़ार हूँ, जो एक देवदूत की तरह आई और उसने मेरे दरवाज़े पर मुझे धनराशि मुहैय्या कराई.”

सलामी के काम की प्रशंसा करते हुए एसबीआई बैंक के लक्ष्मीपुर शाखा प्रबंधक रंजन साहू गर्व से बताते हैं, “सलामी के काम के कारण एक हज़ार से अधिक ग्राहकों को लाभ पहुँचा है. उसने अपने ग्राहकों को ज़रूरत के समय निरन्तर सेवा प्रदान की है."

"जब भी ‘बैंक मैडम’ आती हैं, तो गाँववाले अपने आधार कार्ड (सरकार द्वारा जारी एक पहचान पत्र) और पासबुक लेकर उनके पास पहुँच जाते हैं. जब तालाबंदी की घोषणा की गई  तो वो किसी भी क़ीमत पर अपने ग्राहकों तक पहुँचने के लिये प्रतिबद्ध थीं.” 

बुलंद इरादे

ओडिषा की डोंगरिया कोंध जनजाति प्रमुख जनजातियों में से एक है जो गहरी खाईयों और अविरल धाराओं के बीच नियामगिरी पहाड़ियों के घने जंगलों की पहाड़ी-ढलानों पर स्थित गाँवों के बीच बसी है. इनमें से कई गाँव नियामगिरि पहाड़ों के ऊपर स्थित हैं, जो बेहद दुर्गम क्षेत्रों में से है.

डोंगरिया कोंध जनजाति की आरती कौसल्या, रीता कौसल्या, सुबरन करकारिया और रंजनी ककरिया यूएन एजेंसी समर्थित ‘मिशन उदय’ के स्वयंसेवक हैं जो अपने समुदाय में बदलाव लाने के लिये प्रयासरत हैं.

आरती कौसल्या.
Kalinga Institute of Social Sciences, Odisha.

महामारी की शुरुआत होने पर इन मानवीय राहत कार्यकर्ताओं ने विभिन्न चुनौतियों का साहसपूर्वक सामना करते हुए लोगों की मदद के लिये हाथ बढ़ाया.

स्वच्छता के बारे में जागरूकता फैलाने से लेकर, मास्क के उपयोग के महत्व और शारीरिक दूरी बनाए रखने के अभियान का नेतृत्व किया, और इस दूरदराज़ के क्षेत्र के 500 से अधिक लोगों को कोविड संक्रमण से बचाव के बारे में जानकारी दी. 

ज़रूरतमन्दों को राशन वितरित करने के लिए उन्होंने ज़मीनी स्तर पर आंगनवाड़ी (गाँव के आंगन केंद्र), मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा कार्यकर्ता) और ग्राम पंचायत के अधिकारियों को सहयोग दिया.

राशन वितरण के दौरान उन्होंने भीड़ को एक सुरक्षित शारीरिक दूरी बनाए रखने में मदद की, उन्हें हाथ से बने मास्क प्रदान किए और बुज़ुर्गों को उनको इस्तेमाल के बारे में जानकारी दी. साथ ही कोविड - 19 के कथित कलंक, भेदभाव और मिथकों के बारे में भी लोगों को जागरूक किया.

आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सुंदरी कौसल्या कहती हैं, "उनके बिना भीड़ को नियन्त्रित करना, सामाजिक दूरी का पालन करना और मास्क का उपयोग सुनिश्चित करना हमारे लिए मुश्किल होता."

गाँव के मुखिया जीतू जकासाका का मानना है, “चूँकि हम एक सम्वेदनशील जनजाति से हैं और दुर्गम क्षेत्र में रहते हैं, इसलिए मिथकों, कलंक और भेदभाव के शिकार हैं. इन स्वयंसेवकों द्वारा की गई पहल से हमें नई चीज़ें अपनाने में मदद मिल रही है, जैसे कि बाहर जाते समय मास्क का उपयोग करना और अपने पड़ोसियों से भी शारीरिक दूरी बनाए रखना.”