कोविड-19: रोहिंज्या बच्चों की पढ़ाई-लिखाई जारी रखने के प्रयास

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के फैलाव को रोकने के लिए दुनिया भर में स्कूलों को बन्द किया गया है. बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में रोहिंज्या शरणार्थी शिविरों में रह रहे शेफ़ुका जैसे बहुत से छात्र इस नई वास्तविकता में ख़ुद को ढालने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन बिना बिजली आपूर्ति के शरणार्थी कैम्प में रह कर पढ़ना अन्य किसी स्थान की तुलना में कहीं ज़्यादा चुनौतीपूर्ण है.
नौ वर्षीय शेफ़ुका बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में एक रोहिंज्या शरणार्थी शिविर में अपनी माँ और तीन भाई-बहनों के साथ रहती हैं. उनके पिता अब उनके साथ नहीं हैं.
शेफ़ुका ने बताया, “मुझे बहुत दुख है कि हमारा पढ़ाई-लिखाई केंद्र अब बन्द हो गया है. मैं पहले की तरह अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकती. मुझे अपने सहपाठियों और शिक्षकों की याद आती है.”
“मैं किताबें पढ़ती हूँ, चित्र बनाती हूँ और उन खेलों को खेलती हूँ जिन्हें हमने पढ़ाई-लिखाई केंद्र में अपने भाई-बहनों के साथ सीखा था.”
“लेकिन मैं हर समय घर पर बैठकर बोर महसूस करती हूँ.”
शेफ़ुका की माँ फ़ातिमा शिक्षा के महत्व को समझती हैं और अपने बच्चों के लिए एक एक बेहतर जीवन चाहती हैं. परिवार की मुखिया होने के तौर पर उन्होंने अनेक चुनौतियों का सामना किया है.
वह अपने बच्चों की, ख़ास तौर पर बेटियों की, शिक्षा पर ख़ास जोर देती हैं.
“मेरा मानना है कि महिलाओं का काम सिर्फ़ घर का काम करना नहीं है. महिलाओं को पढ़ना-लिखना चाहिए, तभी पूर्ण समाज को फ़ायदा पहुँचता है.”
“मैं अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करती हूँ. मेरे लिए अपने बच्चों का ख़याल रखना और उनके लिए भोजन की व्यवस्था करना बेहद कठिन है. हम किसी तरह जी रहे हैं लेकिन यह एक संघर्ष है.”
बांग्लादेश में सभी शिक्षा संस्थानों के साथ रोहिंज्या शरणार्थी शिविरों में भी पढ़ाई-लिखाई केंद्र 17 मार्च 2020 को बन्द कर दिए गए थे ताकि कोविड-19 महामारी के फैलाव को कम किया जा सके.
शिक्षा केंद्रों के बन्द होने से तीन लाख 15 हज़ार रोहिंज्या बच्चों पर असर पड़ा है जिनमें से दो लाख से ज़्यादा बच्चे संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) के नैटवर्क में शामिल ढाई हज़ार केंद्रों पर पढ़ाई कर रहे हैं.
कॉक्सेस बाज़ार में यूनीसेफ़ के शिक्षा प्रबंधक चार्ल्स एवेलिनो ने बताया कि बच्चों की शिक्षा जारी रखने के विकल्पों को ढूँढने के लिए तेज़ी से प्रयास किए गए हैं.
लेकिन शरणार्थी शिविरों में बच्चों के पास टैक्नॉलॉजी की सुविधा नहीं है जिससे घर पर बैठकर पढ़ाई-लिखाई के विकल्प सीमित हो जाते हैं.
एक अन्य चुनौती यह है कि बांग्लादेशी शिक्षक अब शरणार्थी शिविरों में प्रवेश नहीं कर सकते हैं. भीड़ भरे शिविरों में बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए सेवाओं को घटाया गया है और मानवीय राहतकर्मियों की संख्या में गिरावट आई है.
इन हालात में यूनीसेफ़ रोहिंज्या समुदाय में स्वैच्छिक रूप से शिक्षक के तौर पर काम करने वाले लोगों पर निर्भर है ताकि पढ़ाई-लिखाई को जारी रखा जा सके.
यूनीसेफ़ की ओर से इन स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं और अभिभावकों के लिए दिशा-निर्देशों के सा-साथ किताबों, ऑडियो सन्देशों व अभ्यास पुस्तिकाओं का भी वितरण किया गया है.
इन प्रयासों के तहत अभी सभी रोहिंज्या घरों तक नहीं पहुँचा जा सका है लेकिन इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं.
शेफ़ुका की शिक्षक सफ़ूरा बेग़म पहले ही 30 छात्रों के घर होकर आ चुकी हैं ताकि अभिभावकों, देखभाल करने वालों और बच्चों को पढ़ाई के तरीक़े पर जानकारी दी जा सके.
सफ़ूरा कोविड-19 की रोकथाम के लिए नियमित रूप से हाथ धोने व स्वच्छता बरतने जैसे बुनियादी उपायों पर भी ज़ोर दे रही हैं.
उन्होंने बताया कि अधिकाँश अभिभावक इन दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं लेकिन निरक्षर अभिभावकों के लिए यह एक चुनौती है.
सफ़ूरा जैसे एक हज़ार 200 स्वैच्छिक शिक्षकों की मदद से तीस हज़ार से ज़्यादा बच्चों को पढ़ाने में मदद मिल रही है और इसका दायरा बढ़ाकर एक लाख बच्चों तक पहुँचने का लक्ष्य रखा गया है.
शेफ़ुका की माँ को चिन्ता है कि वह अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में मदद करना चाहती हूँ लेकिन उनके सामने सीमित विकल्प हैं.“मैं अपने बच्चों को पढ़ाई-लिखाई में मदद करती हूँ लेकिन वे कुछ नया नहीं सीख सकते क्योंकि मैं उन्हें पढ़ा नहीं सकती. मैंने शिक्षा हासिल नहीं की है.”
कोरोनावायरस संकट से निर्बल शरणार्थी समुदाय के बच्चों को पढ़ाई में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, विशेषत: उन्हें जिनके पास सीमित संसाधन ही हैं.
यूनीसेफ़ अधिकारी ने बताया कि अगर अभिभावक अशिक्षित हैं तो उन्हें अपने बच्चों को पढ़ाने या समझाने में मुश्किलें पेश आती हैं.
यूनीसेफ़ इस सम्बन्ध में अन्य विकल्पों को भी तलाश रही है. इसके तहत युवा महिलाओं से बातचीत की जा रही है ताकि रोहिंज्या स्वैच्छिक शिक्षकों और निरक्षर अभिभावकों को सहायता प्रदान की जा सके और बच्चों को घर बैठकर पढ़ने के समान अवसर मिल सकें.
इस क्रम में रेडियो के ज़रिये पहले से रिकॉर्ड किए गए पाठ्यक्रम का भी सहारा लिया जा सकेगा.
शेफ़ुका की शिक्षिका सफ़ूरा बेग़म को इस महामारी के लम्बे समय तक रहने वाले प्रभावों के प्रति चिन्ता है.
“देश भर में कोरोनावायरस मामलों की संख्या बढ़ते हुए देखकर मैं अन्दाज़ा नहीं लगा सकती कि यह कब तक जारी रहेगा.”
“मुझे डर लगता है कि तालाबन्दी समाप्त होने के बाद मैं अपने सभी छात्रों के चेहरों को नहीं देख पाऊँगी.” अतीत के अनुभव दर्शाते हैं कि आपात हालात में स्कूलों से वंचित रह जाने वाले बच्चे हालात सुधरने के बाद भी नहीं लौट पाते हैं.
यूनीसेफ़ का कहना है कि आदर्श प्रणाली के अभाव में उपलब्ध विकल्पों का ही सहारा लिया जा रहा है. अपनी सीमित पढ़ाई-लिखाई के बावजूद अगर माता-पिता अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करते हैं, खेलते हैं और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं तो वे उनके विकास में मदद कर पाएँगे.
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