बाल मज़ूदरी के बदतरीन रूपों के ख़िलाफ़ सन्धि पर सार्वभौमिक मोहर

संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी – अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सभी 187 सदस्य देशों ने दासता, देह व्यापार और तस्करी सहित बाल मज़दूरी के ख़राब रूपों से बच्चों की रक्षा करने वाली सन्धि को पारित कर दिया है. मंगलवार को प्रशान्त क्षेत्र के एक द्वीपीय देश टोन्गा ने इस सन्धि पर अपनी मोहर लगा दी और ऐसा करने वाला वो आख़िरी देश था.
मंगलवार को सार्वभौम पुष्टि (Universal ratification) प्राप्त करने वाली ये सन्धि दो दशक पहले पारित की गई थी और अतीत में इसे ‘सन्धि संख्या 182’ के नाम से जाना जाता था.
Today, we have made history. ILO Convention No. 182 on the Worst Forms of Child Labour has become the first international labour standard ever to achieve universal ratification. pic.twitter.com/P1UNvcc7D3
ilo
इसके साथ ही यूएन एजेंसी के 101 वर्ष के इतिहास में यह एक ऐसी सन्धि के रूप में दर्ज हो गई है जिस पर सबसे तेज़ी से मोहर लगाई गई है.
यूएन श्रम एजेंसी के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा, “सन्धि 182 की सार्वभौम सम्पुष्टि का बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व है जिसका अर्थ है कि अब बाल श्रम के बदतर रूपों से सभी बच्चों को क़ानूनी संरक्षण हासिल है.”
उन्होंने कहा कि यह उस वैश्विक संकल्प को दर्शाता है कि बच्चों के स्वास्थ्य-कल्याण पर बुरा प्रभाव डालने वाले श्रम के ख़राब रूपों के लिये हमारे समाजों में कोई जगह नहीं हैं, जिनके कारण बच्चों के स्वास्थ्य, हौसले और मनोवैज्ञानिक कल्याण पर बुरा असर पड़ता है. इनमें दासता, यौन शोषण, सशस्त्र संघर्ष और अन्य ग़ैरक़ानूनी या जोखिम भरे कार्य शामिल है.
वर्ष 1919 में स्थापित अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन का एक प्रमुख लक्ष्य बाल मज़दूरी का अन्त करना है.
यूएन एजेंसी का अनुमान है कि 15 करोड़ से ज़्यादा बच्चे बाल मज़दूरी से प्रभावित हैं और लगभग सात करोड़ लोग नुक़सानदेह कार्य करने के लिये मजबूर हैं.
ग़रीबी और माता-पिता को अच्छा व उपयुक्त रोज़गार ना मिल पाने के कारण बाल श्रम के अधिकाँश मामले कृषि सैक्टर में देखने को मिलते हैं.
सन्धि संख्या 182 में बाल श्रम पर पाबन्दी और उसके बदतर रूपों के अन्त की पुकार लगाई गई है – इनमें दासता, जबरन मज़दूरी और तस्करी हैं.
साथ ही 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सशस्त्र संघर्ष, देह व्यापार, ग़ैर-क़ानूनी यौन गतिविधियाँ (पॉर्नोग्राफ़ी) और अवैध गतिविधियों में उनके इस्तेमाल पर रोक लगाना भी शामिल है.
ये सन्धि यूएन एजेंसी के सदस्य देशों ने जिनीवा में वर्ष 1999 में पारित की थी.
यह संगठन के आठ बुनियादी सन्धियों में शामिल है जिनमें जबरन मज़दूरी, कामकाज सम्बन्धी भेदभाव सहित अन्य मुद्दों का ध्यान रखा गया है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक बाल श्रम और उसके ख़राब रूपों के मामलों में वर्ष 2000 से 2016 तक 40 फ़ीसदी की गिरावट आई है.
इस दौरान सन्धि लागू करने वाले देशों की संख्या बढ़ी है और उसमें उल्लेखित क़ानून नीतियाँ अपनाए गए हैं. इनमें कामकाज के लिये न्यूनतम आयु सम्बन्धी क़ानून भी हैं.
लेकिन अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने चिन्ता ज़ाहिर की है कि कोविड-19 महामारी के कारण वर्षों के दौरान हासिल की गई प्रगति ठप पड़ सकती है, इसलिये भी क्योंकि हाल के वर्षों में प्रगति की रफ़्तार धीमी हो रही थी.
ख़ासकर पाँच से 11 वर्ष की आयु के बच्चों के मामलों में और कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में.
वर्ष 2021 को बाल मज़दूरी के अन्त के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाए जाने की तैयारी है और इस दिशा में प्रगति के लिये यूएन एजेंसी जागरूकता प्रसार के प्रयासों में जुटी है.