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जनसंहार के छह वर्ष - यज़ीदी समुदाय के लिये न्याय सुनिश्चित करने की पुकार

दाएश द्वारा अगवा की गई सिन्जर की एक यज़ीदी कुर्द महिला इराक़ के अकरे विस्थापन शिविर में रह रही है.
Giles Clarke/ Getty Images Reportage
दाएश द्वारा अगवा की गई सिन्जर की एक यज़ीदी कुर्द महिला इराक़ के अकरे विस्थापन शिविर में रह रही है.

जनसंहार के छह वर्ष - यज़ीदी समुदाय के लिये न्याय सुनिश्चित करने की पुकार

शान्ति और सुरक्षा

आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (दाएश) ने छह वर्ष पहले इराक़ में धार्मिक अल्पसंख्यक यज़ीदी समुदाय के ख़िलाफ़ जनसंहारी कृत्य शुरू किये थे. इस दुखद अध्याय के पीड़ितों की स्मृति और उनके समर्थन में सोमवार को एक वर्चुअल समारोह का आयोजन हुआ जिसमें नोबेल शान्ति पुरस्कार विजेता नादिया मुराद ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से अत्याचारों का शिकार और यज़ीदी समुदाय के जीवित बच गए लोगों के लिये न्याय सुनिश्चित करने की पुकार लगाई है.  

युवा मानवाधिकार कार्यकर्ता उन हज़ारों यज़ीदी महिलाओं में शामिल थीं जिन्हें आतंकी संगठन दाएश ने जबरन यौन दासता का शिकार बनाया था.

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नादिया मुराद ने सोमवार को स्मरण समारोह में देशों को ध्यान दिलाया कि उन महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों की पीड़ा आज भी सहन की जा रही है. 

उन्होंने कहा कि यज़ीदी समुदाय के एक लाख से ज़्यादा लोग उत्तरी इराक़ के सिन्जर में अपनी मातृभूमि पर लौट आए हैं लेकिन उनके लिये स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं का अभाव है.

यज़ीदा लोग अब भी बड़ी संख्या में शिविरों में रहने के लिये मजबूर हैं जबकि अग़वा की गईं तीन हज़ार से ज़्यादा महिलाएँ और लड़कियाँ अब भी लापता हैं. बहुत सी सामूहिक क़ब्रें ऐसी हैं जिनकी खुदाई होना अब भी बाक़ी है. 

अब जर्मनी में रह रहीं नादिया मुराद ने कहा, “क्षोभ भरी नज़र से देखते हुए दुनिया ने जनसंहार का ख़ात्मा करने के लिये ठोस कार्रवाई किये जाने की माँग की थी.”

“लेकिन अन्तरराष्ट्रीय समुदाय छह साल बाद सबसे निर्बलों, विशेषत: महिलाओं व बच्चों, की रक्षा करने के अपने संकल्पों को पूरा करने में विफल रहा है.” 

न्याय पाना सम्भव

सोमवार को आयोजित इस स्मरण समारोह का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि दुनिया यह कभी ना भूले कि इस्लामिक स्टेट (दाएश) ने यौन हिंसा, सामूहिक मौत की सज़ाओं, जबरन धर्मांतरण और अन्य अपराधों के सहारे किस तरह यज़ीदी समुदाय को मिटाने का प्रयास किया.

इस कार्यक्रम की मेज़बानी जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात के साथ नादिया मुराद द्वारा स्थापित संगठन ने की थी. 

इराक़ के राजदूत मोहम्मद हुसैन अल बाहर अलुलूम ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि दाएश ने सभी इराक़ियों के ख़िलाफ़ जघन्य अपराध किये. 

“हमारे संविधान में प्रदत्त गारण्टियों - इराक़ी विविधता और शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व को तबाह करने के प्रयास में दाएश ने यज़ीदियों को मिटाने के प्रयास किये.”

वहीं मानवाधिकार मामलों की वकील अमाल क्लूनी ने याद दिलाया कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने जर्मनी, बोसनिया और रवाण्डा में जनसंहार के लिये ट्राइब्यूनल की स्थापना की थी. 

म्याँमार में रोहिंज्या समुदाय के ख़िलाफ़ हुए अपराधों पर भी अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की जाँच चल रही है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यज़ीदी समुदाय के जीवित बच गए लोग भी इसके पात्र हैं.

“कुछ भी ना करना ना सिर्फ़ ग़लत ही नहीं, बल्कि ख़तरनाक भी है क्योंकि ये लड़ाके कहीं ग़ायब नहीं हो रहे और उनकी ज़हरीली विचारधारा का फैलाव अब भी जारी है.”

“और न्याय अब भी सम्भव है, जैसेकि यह पहले सम्भव रहा है, लेकिन तभी जब उसे प्राथमिकता बनाया जाए.” 

मतभेद दूर करना ज़रूरी

इराक़ में संयुक्त राष्ट्र की वरिष्ठ अधिकारी और यूएन मिशन की प्रमुख जिनीन हैनिस-प्लाशर्ट ने बग़दाद और उत्तर में स्थित स्वायत्तता प्राप्त कुर्द प्रान्त में प्रशासन से आग्रह किया है कि यज़ीदियों की मदद के लिये उन्हें आपसी मतभेदों को दूर करना चाहिए.  

“समुदाय को फिर से खड़ा करने और फलने-फूलने के लिये स्थिर शासन और सुरक्षा ढाँचा का होना एक महत्वपूर्ण नींव हैं.”

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“इसलिये, एक बार फिर, मैं बग़दाद और अरबिल में सरकारों का आहवान करती हूँ कि सिन्जर के हितों को प्राथमिकता देते हुए इसे तत्काल हल करें.”

संयुक्त राष्ट्र ने  दो साल पहले दाएश/इस्लामिक स्टेट द्वारा अंजाम दिये गए अत्याचारों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के इरादे से एक जाँच टीम (UNITAD) का गठन किया था. 

विशेष सलाहकर करीम ख़ान ने इस टीम की गतिविधियों से अवगत कराते हुए बताया कि क़ब्रों से शवों की बरामदगी, तथ्य जुटाने और इराक़ में प्रशासन के साथ मिलकर काम करने का प्रयास चल रहा है ताकि दाएश के आपराधिक नैटवर्क को बेहतर ढँग से समझा जा सके. 

लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि इस जाँच टीम को एक कोर्ट की तलाश है जहाँ यज़ीदियों के ख़िलाफ़ हुए अपराधों पर निष्पक्ष अदालती कार्रवाई हो सके.

करीम ख़ान ने नवम्बर 2019 में पेश क़ानून के उस मसौदे की सराहना की है जिसमें दाएश द्वारा किये गए अपराधों पर इराक़ में जनसंहार, मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों और युद्धापराधों के तहत मुक़दमा चलाया जा सकेगा.