नेपाल: मानव तस्करी पर अंकुश लगाने की दिशा में अहम क़दम
नेपाल में हर वर्ष हज़ारों लोग मानव तस्करों के चंगुल में फँस कर यौन शोषण, जबरन मज़दूरी और शारीरिक अंगों की चोरी का शिकार बनते हैं. इस चुनौती से निपटने के प्रयासों के तहत नेपाल ने संयुक्त राष्ट्र के प्रोटोकॉल पर मुहर लगाई है जिसके लागू होने के बाद शोषण के सभी रूपों की शिनाख़्त करने, पीड़ितों को ज़रूरी सहायता प्रदान करने और दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई किये जाने की उम्मीदें जागी हैं.
मानव तस्करी पर नेपाल मानवाधिकार आयोग की ताज़ा रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि वर्ष 2018 में लगभग 35 हज़ार लोग इस समस्या का शिकार हुए. इनमें 15 हज़ार महिलाएँ और पाँच हज़ार लड़किया हैं.
With the @UN Protocol to Prevent, Suppress and Punish Trafficking in Persons coming into force in Nepal, the country has strengthened its capacity to counter this crime and protect and assist the victims. A significant step to #EndHumanTrafficking! Read: https://t.co/aIIwEL5Man pic.twitter.com/oEqHucRStY
UNODC_ROSA
नेपाल में यूएन एजेंसी के कार्यक्रम समन्वयक बिनिजा धिताल गोपरमा ने बताया, “मानव तस्करी के मुख्य कारण यौन शोषण, जबरन मज़दूरी और शरीर के अंगों को निकालना है.”
उन्होंने कहा कि विदेशों में काम कर रहे या सीमित आर्थिक अवसरों के कारण बाहर जाने की योजना बना रहे ग्रामीण इलाक़ों से आने वाले लोग मानव तस्करी के ज़्यादा शिकार होते हैं. विशेषत: महिलाएँ व लड़कियाँ तस्करों की चालबाज़ियों, झूठे वादों और धोखाधड़ी का शिकार ज़्यादा होती हैं.
यूएन एजेंसी का कहना है कि मनोरंजन (Entertainment) और अतिथि सत्कार (Hospitality) सैक्टर, परिधान उद्योग और कृषि व घरेलू कामकाज में मानव तस्करी के मामले ज़्यादा सामने आते हैं.
बताया गया है कि नेपाल इस अपराध का मज़बूती से सामना करने और पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अब पहले से कहीं बेहतर ढँग से सक्षम होगा.
नया प्रोटोकॉल
जुलाई 2020 में नेपाल में मानव तस्करी की रोकथाम, उस पर क़ाबू पाने और दोषियों को दण्डित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का प्रोटोकॉल लागू हो गया है.
कार्यक्रम समन्वयक गोपरमा के मुताबिक मानव तस्करी की रोकथाम के लिये नेपाल द्वारा किए जा रहे प्रयासों की दिशा में यह एक बड़ा क़दम है.
“यह दर्शाता है कि इस अपराध का मुक़ाबला करने के लिये सरकार वास्तव में प्रतिबद्ध है.”
मादक पदार्थों एवँ अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) वर्ष 2009 से नेपाल से इस प्रोटोकॉल को अपनाने की पैरवी करता रहा है और इसे मान्यता दिये जाने की प्रक्रिया के दौरान यूएन एजेंसी ने सरकार को सहायता प्रदान की.
संयुक्त राष्ट्र ने यह प्रोटोकॉल वर्ष 2000 में पारित किया था जिसमें क़ानूनी रूप से बाध्यकारी इस औज़ार पर मानव तस्करी की परिभाषा पर सहमति भी जताई गई थी.
इस परिभाषा से पीड़ितों और शोषण के उन सभी रूपों की शिनाख़्त करने में मदद मिलती है जिनकी वजह से मानव तस्करी की जाती है.
इस प्रोटोकॉल पर मोहर लगाने वाले देशों का यह दायित्व है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर मानव तस्करी को अपराध क़रार देते हुए उसके ख़िलाफ़ क़ानून लागू करें.
पीड़ितों की रक्षा
साथ ही उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि मानव तस्करी के पीड़ितों को सुरक्षा मिले और उनके साथ अपराधियों जैसा बर्ताव ना किया जाए.
बिनिजा धिताल गोपरमा का कहना है कि नेपाल को अब मानव तस्करी के बारे में अपने क़ानूनों में संधोधन करना होगा और उन्हें संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल के क़ानूनी फ़्रेमवर्क और परिभाषाओं के अनुरूप बनाना होगा.
इन संशोधनों के सहारे मानव तस्करी के पीड़ितों को मदद मिलेगी, उनके कष्टों को पहचाना जाएगा और ज़रूरी सेवाओं की सुलभता के साथ-साथ मानवाधिकारों का पूर्ण रूप से सम्मान होगा.
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“उदाहरण के तौर पर, विदेशों में जबरन मज़दूरी के मामलों में फ़िलहाल विदेश रोज़गार क़ानून के तहत कार्रवाई होती है जिसमें दोषियों को कम दण्ड मिलता है और पीड़ितों के लिये मुआवाज़ा भी कम है.”
उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में ऐसे सभी मामलों में मानव तस्करी क़ानून के तहत कार्रवाई की जाएगी. इस प्रोटोकॉल पर अब तक 178 देश अपनी मोहर लगा चुके हैं.