कोविड-19: दक्षिणपूर्व एशिया की टिकाऊ व समावेशी पुनर्बहाली का ख़ाका पेश

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि दक्षिणपूर्व एशिया को वैश्विक महामारी कोविड-19 से असरदार ढँग से उबारने के लिये विषमताओं को दूर करना, डिजिटल खाइयों को पाटना, अर्थव्यवस्थाओं को हरित बनाना, मानवाधिकारों की रक्षा करना और सुशासन सुनिश्चित करना अहम होगा. यूएन प्रमुख ने गुरुवार को इस क्षेत्र पर केन्द्रित एक नया नीतिपत्र (Policy brief) जारी किया है जिसमें बेहतर पुनर्बहाली के लिये सिफ़ारिशें पेश की गई हैं.
महासचिव गुटेरेश ने अपने सन्देश में कहा कि कोविड-19 के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई की बुनियाद में लैंगिक समानता को रखना होगा.
“विश्व के अन्य हिस्सों की तरह, दक्षिणपूर्व एशिया में कोविड-19 का व्यापक स्वास्थ्य, आर्थिक और राजनैतिक असर हुआ है जिससे निर्बलतम लोगों पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा है.”
दक्षिणपूर्व एशिया क्षेत्र में ब्रुनेई, कम्बोडिया, लाओस, इण्डोनेशिया, मलेशिया, म्याँमार, फ़िलिपीन्स, सिंगापुर, थाईलैण्ड, तिमोर लेस्ते और वियतनाम देश हैं.
Thanks to swift & decisive action, Southeast Asia has been spared some of the suffering & upheaval seen elsewhere due to #COVID19.The @UN remains committed to supporting the region's efforts to achieve the #GlobalGoals & build a peaceful future for all. https://t.co/xvZCKWtlkY pic.twitter.com/gfD6ueFrjT
antonioguterres
इस नीतिपत्र में कोरोनावायरस संकट से इस क्षेत्र में स्थित 11 देशों पर हुए असर की पड़ताल की गई है और इस महामारी से मज़बूती से उबरने के लिये सिफ़ारिशें पेश की गई है.
इस क्षेत्र के देश कोविड-19 महामारी फैलने से पहले के समय में भी वर्ष 2030 तक टिकाऊ विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयासों में पिछड़ रहे थे.
इस क्षेत्र के लिये जारी रिपोर्ट दर्शाती है कि मज़बूत आर्थिक वृद्धि के बावजूद यह क्षेत्र विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है, उदाहरण स्वरूप व्यापक दायरे वाली असमानता, सामाजिक संरक्षा का निम्न स्तर, व्यापक अनौपचारिक सैक्टर, और शान्ति, न्याय व संस्थाओं का क्षरण.
इसके अलावा पारिस्थितिकी तन्त्रों को क्षति पहुँचने, जैवविविधता लुप्त होने, और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन व वायु गुणवत्ता का स्तर भी चिन्ताजनक बना हुआ है.
यूएन प्रमुख ने अपने सन्देश में कहा, “महामारी ने गहरी असमानताओं, शासन में ख़ामियों और टिकाऊ विकास के मार्ग की अनिवार्यताओं को उजागर किया है. और इसने शान्ति व सुरक्षा सहित नई चुनौतियाँ पेश की हैं.”
उन्होंने चिन्ता जताई कि मौजूदा हालात आर्थिक मन्दी व सामाजिक तनाव की ओर ले जा रहे हैं जबकि लम्बे समय से चले आ रहे हिसंक संघर्षों का हल ढूँढने पर प्रगति राजनैतिक प्रक्रिया के अभाव में ठप पड़ी है.
“इस उपक्षेत्र में सभी सरकारों ने वैश्विक युद्धविराम की मेरी अपील का समर्थन किया है – और मैं दक्षिणपूर्व एशिया में सभी सरकारों पर भरोसा कर रहा हूँ कि वे अपने संकल्प को ज़मीन पर अर्थपूर्व बदलावों के रूप में तब्दील करेंगे.”
कोविड-19 महामारी का पहला मामला चीन के वुहान शहर में वर्ष 2019 के अन्तिम दिनों में मालूम हुआ था जिसके बाद मार्च 2020 में कोविड-19 विश्वव्यापी के रूप में परिभाषित किया गया.
दुनिया भर में अब तक कोविड-19 महामारी के संक्रमण के एक करोड़, 65 लाख से ज़्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है और छह लाख, 57 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है.
दुनिया में किसी अन्य क्षेत्र की तुलना में दक्षिणपूर्व एशिया के देशों को सबसे पहले इस बीमारी की चुनौती का सामना करना पड़ा और इस परिप्रेक्ष्य में महासचिव ने त्वरित क़दम उठाए जाने के लिये इन देशों की सरकारों की सराहना की है.
नीतिपत्र के मुताबिक इस क्षेत्र के देशों ने कोविड-19 के 50 मामलों की पुष्टि होने के बाद आपात हालात घोषित करने या तालाबन्दी लागू करने के लिये औसतन 17 दिन का समय लिया.
“ऐहतियाती उपायों के मद्देनज़र पाबन्दियाँ लगाए जाने से दक्षिणपूर्व एशिया को अन्य स्थानों की तरह पीड़ा और उठापठक का सामना नहीं करना पड़ा.”
गुरुवार को जारी नीतिपत्र में यूएन प्रमुख ने पुनर्बहाली के नज़रिये से अहम चार प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित किया है जिससे टिकाऊ, सुदृढ़ और समावेशी दक्षिणपूर्व एशिया का मार्ग स्पष्ट होगा.
- आय, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक संरक्षा में विषमताओं का मुक़ाबला करना. अल्प-अवधि में आर्थिक स्फूर्ति के उपायों के साथ-साथ दीर्घकालीन नीतिगत बदलाव लाना
- डिजिटल खाई को पाटना और एक दूसरे से जुड़ी दुनिया (Connected world) में किसी को ना पीछे छूटने देना
- अर्थव्यवस्थाओं को हरित बनाना, भविष्य के लिये रोज़गार सृजन और कार्बन पर निर्भरता घटाना
- मानवाधिकारों और नागरिक समाज के लिये जगह की रक्षा करना व पारदर्शिता को बढ़ावा देना
नीतिपत्र में स्पष्ट किया गया है कि इन सभी प्रयासों के केन्द्र में लैंगिक समानता को रखना होगा, लिंग आधारित हिंसा में हुई बढ़ोत्तरी को रोकना होगा और पुनर्बहाली के हर आयाम में महिलाओं का ख़याल रखा जाना होगा.