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 वैश्विक खाद्य उत्पादन में पारिवारिक किसानों की भूमिका पर केंद्रित नई मुहिम

भारत में महिलाएं जैविक खेती के लिए आगे आ रही हैं. (फ़ाइल)
UNDP India
भारत में महिलाएं जैविक खेती के लिए आगे आ रही हैं. (फ़ाइल)

 वैश्विक खाद्य उत्पादन में पारिवारिक किसानों की भूमिका पर केंद्रित नई मुहिम

एसडीजी

एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में लाखों-करोड़ों पारिवारिक किसानों का दुनिया में अधिकाँश खाद्य उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है लेकिन वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण उनकी आजीविका पर गहरा असर पड़ा है. क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा में इन किसानों की अहम भूमिका के प्रति समझ बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवँ कृषि संगठन (UNFAO) और अन्य साझीदार संगठनों ने बुधवार को एक मुहिम शुरू की है. 

दुनिया के कोविड-19 महामारी की चपेट मेंआने से पहले ही वैश्विक खाद्य सुरक्षा में पारिवारिक खेती की अहमियत के प्रति जागरूकता फैलाने के प्रयास किय् जा रहे थे, उदारहण स्वरूप, वर्ष 2019-2028 को ‘पारिवारिक खेती का यूएन दशक’ घोषित किया गया है.

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नई मुहिम को कार्रवाई की एक ऐसी पुकार क़रार दिया गया है जिसे हर किसी व्यक्ति को सुनने की ज़रूरत है. साथ ही नई मुहिम के ज़रिये पारिवारिक किसानों के संगठनों को आवाज़ देने और क्षेत्र में स्थित 15 देशों में सामुदायिक रेडियो के ज़रिये ग्रामीण समुदायों तक पहुँचने का लक्ष्य रखा गया है. 

यूएन एजेंसी ने कम्युनिकेशन्स फ़ॉर डवेलपमेंट के तहत ComDev Asia नामक पहल शुरू की गई है.

इस पहल से जुड़ीं मारिया स्टैला टिरोल का कहना है, “मुहिम में सभी लोगों का आहवान किया गया है कि क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा हासिल करने में पारिवारिक किसानों की भूमिका के मूल्य को समझें, विशेषत: महामारी के दौरान.”

“पारिवारिक किसान हम सभी के लिये पोषक भोजन प्रदान करने के अग्रिम मोर्चे पर हैं. हमारा मानना है कि ज़्यादा सुदृढ़ पारिवारिक किसान एक ज़्यादा सुदृढ़ दुनिया की झलक पेश करते हैं.”

इस मुहिम में एशियाई किसानों के संगठन, डिजिटल ग्रीन, यूपीएलबी कॉलेज ऑफ़ डिवेलपमेंट कम्युनिकेशन, एसोसिएशन ऑफ़ कम्युनिटी रेडियो ब्रॉडकास्टर्स और स्वरोजग़ार प्राप्त महिलाओं का एसोसिएशन भी शामिल हैं.

ख़ामियाँ उजागर 

दुनिया भर में लगभग 50 करोड़ पारिवारिक किसान हैं जो कुल 80 फ़ीसदी वैश्विक खाद्य उत्पादन में योगदान करते हैं, राष्ट्रीय और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में उनकी अहम भूमिका है.

एशिया-प्रशान्त देशों में छोटे किसानों के पास आमतौर पर अपने खेतों का स्वामित्व है जहाँ वे फ़सल उगाते हैं लेकिन खेतों का आकार प्रति खेत पाँच हैक्टेयर से कम है. 

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उनकी उगाई हुई अधिकाँश यानि लगभग लगभग 75 फ़ीसदी फ़सल बाज़ारों में बेची जाती है जबकि बाक़ी फ़सल किसान अपने परिवारों में उपयोग के लिये रखते हैं. 

यूएन एजेंसी ने स्पष्ट किया कि भोजन, व्यापार, स्वास्थ्य और जलवायु एक दूसरे पर निर्भर हैं और महामारी ने इनके आपसी सम्बन्ध की कमज़ोरियाँ उजागर कर दी हैं. 

मौजूदा संकट से टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते में हुई प्रगति पर भी जोखिम मंडरा रहा है – 2030 एजेण्डा सर्वजन के लिये एक बेहतर दुनिया के निर्माण का ब्लूप्रिंट है.

एशिया में 35 करोड़ से ज़्यादा लोग अल्पपोषण का शिकार हैं और किसी अन्य क्षेत्र की तुलना में यह संख्या कहीं ज़्यादा है.

यूएन एजेंसी ने कोरोनावायरस संकट से निर्धनता घटाने और भुखमरी दूर करने में दशकों में हासिल की गई प्रगति के मुश्किल में पड़ने की आशंका जताई है.

छोटे स्तर पर खेती करने वाले पारिवारिक किसान महामारी से पहले भी औसतन कम आय पर गुज़ारा कर रहे थे लेकिन अब उन्हें बदतर हालात का सामना करना पड़ रहा है.

खाद्य श्रृंखला में व्यवधान आने से खाद्य वस्तुएँ बर्बाद हो रही हैं और उनकी क़ीमतें भी घट रही हैं. ऐसे में किसानों की क्रय क्षमता में भी कमी आई है.

पारिवारिक किसानों के स्वास्थ्य पर भी संकट मंडरा रहा है लेकिन वैश्विक स्तर पर भोजन का प्रबन्ध करने में वे अपना योगदान निर्बाध रूप से जारी रखे हुए हैं. 

यूएन एजेंसी ने पारिवारिक खेती के लिये एक ज्ञान मंच (Knowledge platform) बनाया है जिसमें भोजन प्रणालियों पर कोविड-19 के असर के बारे में विस्तृत जानकारी मुहैया कराई गई है.

इस मुहिम में शामिल साझीदार संगठन इस मंच का इस्तेमाल विभिन्न पक्षकारों और विकास सहयोगियों तक पहुँच बनाने में करेंगे.