उत्तर कोरिया: हिरासत में रखी गई महिलाओं की व्यथा को बयाँ करती नई रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) द्वारा मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया (उत्तर कोरिया) छोड़कर जाने वाली और फिर देश को लौटने के लिये मजबूर की गईं ऐसी महिलाओं के बारे में विस्तृत जानकारी मुहैया कराई गई है जिन्हें यातना देने, उनके साथ यौन हिंसा व बुरा बर्ताव करने के अलावा उनके अन्य मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया.
यह अध्ययन उत्तर कोरिया की उन 100 महिलाओं के प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित है जिनका कहना है कि उन्हें वर्ष 2009 से 2019 के बीच मारपीट और व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से दण्डित होने की पीड़ा झेलनी पड़ी.
Although traveling abroad is effectively prohibited in the #DPRK, women often embark on dangerous journeys – New report sheds light on the circumstances following their forced return to #NorthKorea 👉 https://t.co/7VRU6UVPOW#WomenInDetention pic.twitter.com/Sbn5plZG88
UNHumanRights
इन महिलाओं को अन्तत: उत्तर कोरिया से बच निकलने में सफलता मिली जिसके बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) के कर्मचारियों को विस्तृत जानकारी मुहैया कराई.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा कि अपना देश छोड़कर भागने वाली इन महिलाओं की व्यथा को सुनना ह्रदय विदारक है.
“ये महिलाएँ अक्सर शोषण और तस्करी का शिकार होती रही हैं, जिनका ख़याल रखा जाना चाहिये ना कि हिरासत में लेकर उनके मानवाधिकारों का और ज़्यादा उल्लंघन हो”
“इन महिलाओं को न्याय पाने, सच जानने और मुआवज़ा पाने का अधिकार है.”
उत्तर कोरिया में देश के नागरिकों द्वारा विदेश यात्रा पर लगभग पूरी तरह पाबन्दी है लेकिन कामकाज या नए जीवन की तलाश में महिलाएँ अक्सर ख़तरनाक यात्राएँ करने के लिये मजबूर हैं.
इन जोखिमपूर्ण यात्राओं के दौरान वे अक्सर मानव तस्करों का शिकार होती हैं जो उन्हें बन्धुआ मज़दूरी, यौन शोषण या जबरन शादी के गर्त में धकेल देते हैं.
‘देशद्रोहियों’ को दण्ड
अपने देश वापिस लौटने पर इन महिलाओं को सरकारी प्रशासन हिरासत में ले लेता है और अक्सर किसी अदालती कार्रवाई के बिना या अन्य स्थापित अन्तरराष्ट्रीय मानकों का पालन किये बग़ैर ही जेल की सज़ा सुना दी जाती है.
रिपोर्ट दर्शाती है कि स्वदेश वापिस लौटने वालों को अक्सर देशद्रोहियों के रूप में देखा जाता है, विशेषत: पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया जाने या ईसाई समूहों के साथ सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास करने वाले लोगों को. उन्हें सुव्यवस्थित तरीक़े से दण्ड दिया जाता है जिससे उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है.
उत्तर कोरिया छोड़कर चीन भागने वाली एक महिला ने अपना भयावह अनुभव कुछ इस तरह बयाँ किया:
“प्राथमिक जाँच अधिकारी ने मुझे एक डण्डे से पीटा और एक अधिकारी ने लात मारी. सरकारी सुरक्षा मन्त्रालय में मेरे साथ बेहद सख़्त बर्ताव हुआ.”
“अगर किसी व्यक्ति के चीन में रहने के दौरान उसके दक्षिण कोरियाई चर्च जाने का पता चले तो उन्हें मृत समझिये. इसलिये मैंने चीन में अपनी ज़िन्दगी के बारे में ज़्यादा कुछ ना बताने की पूरी कोशिश की.”
“इस वजह से मुझे बहुत मारा-पीटा गया. मुझे इतना पीटा गया कि मेरी पसलियाँ टूट गईं, मुझे अब भी दर्द महसूस होता है.”
अमानवीय परिस्थितियाँ और कुपोषण
महिलाओं ने अपने साथ अमानवीय बर्ताव होने और भीड़भाड़ व गन्दगी भरी जगहों पर हिरासत में रखे जाने की बात बताई जहाँ हर समय पुरुष सुरक्षा गार्ड उनकी निगरानी करते थे.
हिरासत के दौरान उन्हें दिन का उजाला, ताज़ा हवा, पर्याप्त भोजन तक नहीं मिला और स्वच्छता के लिये महिलाओं की विशिष्ट ज़रूरतों का भी ख़याल नहीं रखा गया. कुपोषण का शिकार होने के कारण उनकी माहवारी भी अनियमित हो गई.
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एक महिला ने यूएन मानवाधिकार कर्मचारियों को बताया, “मैंने जेल में रहने की अपनी अवधि के दौरान देखा कि पाँच से छह लोगों की मौत हो गई. उनमें से अधिकाँश की मौत कुपोषण के कारण हुई.”
हिरासत में रखे गए बन्दियों को नियमित रूप से पीटा जाता है और अन्य यातनाएँ दी गईं.
कुछ प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि उन्हें जबरन नग्नता और इस तरह से तलाशी का शिकार बनाया गया जिसमें उनकी निजता व गरिमा का ध्यान नहीं रखा गया.
कुछ महिलाओं के साथ सुरक्षा गार्डों ने यौन हिंसा की, जबकि कुछ महिलाओं ने अन्य बन्दियों के साथ यौन हिंसा होते देखी.
अनेक महिलाओं ने बताया कि गर्भवती महिलाओं का गर्भपात कराए जाने की भी कोशिशें की गई.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि इस रिपोर्ट में दर्ज मामले स्पष्ट रूप से अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के तहत उत्तर कोरिया के तय दायित्वों का उल्लंघन है.
इस रिपोर्ट में कुछ सिफ़ारिशें पेश की गई हैं और सरकार से हिरासत प्रणालियों को अन्तरराष्ट्रीय नियमों व मानकों के अनुरूप बनाने का आग्रह किया है.
साथ ही उत्तर कोरिया के सभी नागरिकों को देश छोड़ने व प्रवेश करने की बुनियादी आज़ादी सुनिश्चित करने और उन्हें दण्ड ना दिये जाने की भी बात कही गई है.