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हेपेटाइटिस-बी: नौनिहालों में संक्रमण की दर हुई काफ़ी कम

मॉरितॉनिया में अफ्रीकी टीकाकरण सप्ताह के दौरान एक स्वास्थ्य केन्द्र में अपनी महिला की गोद में सोता हुआ एक बच्चा. बचपन में ही हेपेटाइटिस बीमारी से बचाने वाली तीन ख़ुराकें दिया जाना बहुत अहम है.
© UNICEF/Raphael Pouget
मॉरितॉनिया में अफ्रीकी टीकाकरण सप्ताह के दौरान एक स्वास्थ्य केन्द्र में अपनी महिला की गोद में सोता हुआ एक बच्चा. बचपन में ही हेपेटाइटिस बीमारी से बचाने वाली तीन ख़ुराकें दिया जाना बहुत अहम है.

हेपेटाइटिस-बी: नौनिहालों में संक्रमण की दर हुई काफ़ी कम

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सोमवार को कहा है कि दुनिया भर में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सम्भावित जानलेवा हेपेटाइटिस-बी की मौजूदगी वर्ष 2019 में कम हो कर एक प्रतिशत पर आ गई है. उससे पहले वर्ष 1980 से वर्ष 2000 के आरम्भिक दौर के दशक में ये आँकड़ा पाँच प्रतिशत था. उस दौर को हेपेटाइटिस-बी की वैक्सीन बनने से पहले का दौर कहा जाता है.

उस उपलब्धि के साथ ही टिकाऊ विकास लक्ष्यों हो हासिल करने में एक अति महत्वपूर्ण कामयाबी हासिल दर्ज हुई है. याद रहे कि टिकाऊ विकास लक्ष्यों में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में हेपेटाइटिस-बी के फैलाव को इस वर्ष के दौरान कम करके एक प्रतिशत से नीचे लाने का लक्ष्य रखा गया है.

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ये समाचार विश्व हेपेटाइटिस-बी दिवस के मौके पर आया है जो इस बीमारी के बारे जागरूकता बढ़ाने के इरादे से हर वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है. ध्यान रहे कि हेपेटाइटिस-बी लिवर को प्रभावित करने वाला एक वायरस संक्रमण है जिससे अनेक तरह की बीमारियाँ होती हैं, जिनमें कैंसर भी शामिल है. 

वर्ष 2020 के विश्व हेपेटाइटिस -बी दिवस की थीम है – “हेपेटाइटिस मुक्त भविष्य” जिसमें ख़ास ज़ोर इस बीमारी का ख़ात्मा करने पर दिया गया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडेनहॉम घ़ेबरेयेसस का कहना है, “कोई भी नवजात शिशु अपनी उम्र में आगे चलकर हेपेटाइटिस-बी का शिकार केवल इसलिये नहीं हो जाना चाहिये कि उसे हेपेटाइटिस-बी से बचने की वैक्सीन नहीं मिली थी.”

“आज की ये उपल्धि दिखाती है कि हमने लिवर क्षति के मामलों में नाटकीय संख्या में कमी कर ली है और भविष्य की पीढ़ियों को लिवर कैंसर से भी बचा लिया है.”

माँ से बच्चे में पहुँचने से रोकना होगा

स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख का कहना है कि हेपेटाइटिस-बी को माँ से बच्चे में फैलने से रोकना इस बीमारी से छुटकारा पाने और लोगों की ज़िन्दगियाँ बचाने के लिये एक सर्वाधिक प्रभावशाली रणनीति है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गर्भवती महिलाओं का परीक्षण सुनिश्चित करने के लिए एकजुट व गहन प्रयास किये जाने का आहवान किया है. साथ ही हेपेटाइडिस बी का टीकाकरण बढ़ाने और जन्म के समय बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन की ख़ुराकें बढ़ाने का भी आहवान किया है.

संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में 25 करोड़ से ज़्यादा लोग हेपेटाइटिस-बी के दीर्घकालीन संक्रमण के साथ जीवन जी रहे हैं.

नवजात शिशुओं की स्थिति ख़ासतौर पर बहुत नाज़ुक है. जो बच्चे अपने जन्म के पहले वर्ष में हेपेटाइटस-बी के संक्रमण का शिकार हो जाते हैं उनमें से 90 फ़ीसदी बच्चों में ये संक्रमण लम्बे समय के लिये घर कर लेता है. हेपेटाइटिस-बी बीमारी हर वर्ष लगभग 9 लाख लोगों की ज़िन्दगी लील लेती है.

जन्म ख़ुराक का दायरा बढ़ाने की ज़रूरत

नवजात शिशुओं को हेपेटाइटिस-बी से एक ऐसी वैक्सीन के ज़रिये बचाया जा सकता है जिसे सुरक्षित व प्रभावशाली बताया गया है और जिसकी सुरक्षा 95 प्रतिशत तक सुनिश्चित है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा है कि सभी नवजात शिशुओं को हेपेटाइटिस-बी की पहली ख़ुराक जन्म के बाद यथा शीघ्र मिल जानी चाहिए, हो सके तो जन्म के 24 घण्टों के भीतर. उसके बाद दो और ख़ुराकें दी जानी चाहियें.

बच्चों को बचपन के दौरान ही तीन ख़ुराकें देने के अभियान में दुनिया भर में वर्ष 2019 के दौरान बच्चों की 85 प्रतिशत आबादी शामिल कर ली गई थी. ये आँकड़ा वर्ष 2000 में 30 प्रतिशत था.

कोविड-19 ने खड़ी की बाधा

इम्पीरियल कॉलेज, लन्दन और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किये गए एक संयुक्त अध्ययन में जानकारी सामने आई है कि संगठन द्वारा चलाए जा रहे हेपेटाइटिस-बी टीकाकरण कार्यक्रम में कोविड-19 महामारी के कारण जो व्यवधान पैदा हुआ है, उससे वैश्विक रणनीति के लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों पर गम्भीर प्रभाव पड़ सकता है.

अगर सबसे ख़राब स्थिति की कल्पना की जाए तो अध्ययन में अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2020 से 2030 के बीच पैदा होने वाले लगभग 53 लाख अतिरिक्त बच्चों में दीर्घकालिक संक्रमण के मामले दर्ज हो सकते हैं. और बाद में उन बच्चों में दस लाख बच्चों की मौत हेपेटाइटिस-बी से सम्बन्धित बीमारियों के कारण हो सकती है.

हेपेटाइटिस-सी, कभी जानलेवा, अब उपचार योग्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डॉक्टर टैड्रॉस ने जिनीवा में से एक वर्चुअल प्रेस कान्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए कहा कि दुनिया भर में लगभग साढ़े 32 करोड लोग हेपेटाइटिस-बी या हेपेटाइटिस-सी के संक्रमण के साथ जीवन जी रहे हैं. इन बीमारियों के कारण हर वर्ष लगभग 13 लाख लोगों की ज़िन्दगी ख़त्म हो जाती है.

वर्ष 2016 में हुई विश्व स्वास्थ्य एसेम्बली में देशों ने एक वैश्विक हेपेटाइटिस रणनीति को मंज़ूरी दी थी.

इस रणनीति में वायरस से फैलने वाली बीमारी हेपेटाइटिस को वर्ष 2030 तक बिल्कुल ख़त्म कर देने का आहवान किया गया है. इसमें संक्रमण के मामलों में 90 फ़ीसदी की कमी और इससे मौत होने की दर में 65 प्रतिशत की कमी लाने की पुकार लगाई गई है.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के मुखिया ने कहा कि अनेक देशों में अब भी हेपेटाइटिस का इलाज करने वाली दवाएँ बहुत महंगी हैं. लेकिन मिस्र जैसे देशों ने असाधारण प्रगति की है. मिस्र में लगभग छह करोड़ लोगों का हेपेटाइटिस सी परीक्षण किया गया और उनका मुफ़्त इलाज भी किया जा रहा है.

एशिया में भी हेपेटाइटिस-बी का ख़ात्मा करने में अच्छी प्रगति हुई है जहाँ बच्चों के टीकाकरण की दर भी काफ़ी ऊँची है. इनमें बच्चों को तीनों प्रमुख ख़ुराकें देना शामिल है.

उच्च, मध्य और निम्न आय वाले देशों में हेपेटाइटिस-सी का 12 सप्ताहों तक चलने वाले इलाज पर होने वाले ख़र्च के बारे में पूछे जाने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों का कहना था कि इलाज का ख़र्च तीन हज़ार डॉलर से कम हो कर आज के समय में 60 डॉलर पर आ गया है.