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जलवायु आपात स्थिति – ‘शान्ति के लिए एक ख़तरा’

सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से बनाए गए जलाशयों जानवरों को पीने के लिये आसानी से पानी मिल जाता है जोकि इन जलाशयों के अभाव में नहीं मिलता (जनवरी 2017).
UNDP Somalia/Said Isse
सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से बनाए गए जलाशयों जानवरों को पीने के लिये आसानी से पानी मिल जाता है जोकि इन जलाशयों के अभाव में नहीं मिलता (जनवरी 2017).

जलवायु आपात स्थिति – ‘शान्ति के लिए एक ख़तरा’

जलवायु और पर्यावरण

वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी के कारण जलवायु आपात स्थिति पैदा हो रही है जिससे अन्तरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के समक्ष पहले से मौजूद ख़तरों के और ज़्यादा गहराने के साथ-साथ नए जोखिम भी मंडरा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को सुरक्षा परिषद को वर्तमान हालात से अवगत कराते हुए विभिन्न मोर्चों पर त्वरित जलवायु कार्रवाई की अहमियत पर बल दिया. 

योरोप, मध्य एशिया और अमेरिका क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र के सहायक महासचिव मिरोस्लाव येन्का ने बताया कि जलवायु आपदा शान्ति के लिये एक ख़तरा है. 

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उन्होंने शान्ति व सुरक्षा के मुख्य पक्षकारों से अपनी भूमिका निभाने और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को लागू करने की गति तेज़ करने का आहवान किया है.

“जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को समझने में विफल रहने से हिंसक संघर्षों को रोकने, शान्ति क़ायम करने और शान्ति बनाए रखने के हमारे प्रयास कमज़ोर होंगे, और इससे निर्बल देशों के जलवायु आपदा और हिंसक संघर्ष के घातक कुचक्र में फँस जाने का जोखिम है.”

सहायक महासचिव ने जलवायु और सुरक्षा मुद्दे पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये चर्चा के आरम्भ में सुरक्षा परिषद को जानकारी दी. 15 सदस्य देशों वाली सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता जुलाई महीने के लिये जर्मनी के पास है और यह विषय उसकी मुख्य  प्राथमिकताओं में शामिल है. 

यूएन अधिकारी ने माना कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हर क्षेत्र के लिये अलग हैं लेकिन बदलती जलवायु से नाज़ुक हालात का सामना कर रहे देशों और हिंसाग्रस्त इलाक़ों को ज़्यादा ख़तरा है, और वे इस जोखिम से निपटने के लिये तैयार भी नहीं हैं. 

शान्तिरक्षा के लिये मायने

उन्होंने कहा, “यह इत्तेफ़ाक नहीं है कि जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से सबसे ज़्यादा संवेदनशील और कम तैयार 10 देशों में से 7 देशों में शान्तिरक्षा अभियान या विशेष राजनैतिक मिशन चल रहे है.”

क्षेत्रों के बीच, क्षेत्रों के भीतर, और समुदायों में भी जलवायु परिवर्तन के कारण अलग-अलग प्रकार के असर देखने को मिल सकते हैं. जलवायु सम्बन्धी सुरक्षा जोखिमों से महिलाएँ, पुरुष, लड़कियाँ और लड़के अलग-अलग ढँग से प्रभावित होंगे.

प्रशान्त क्षेत्र में समुद्र के बढ़ते जलस्तर और चरम मौसम की घटनाओं से सामाजिक समरसता के लिये जोखिम खड़ा हो सकता है. मध्य एशिया में जल की उपलब्धता में और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच में कमी से क्षेत्रीय तनाव भी भड़क सकता है.

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सब-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लातिन अमेरिका में जलवायु कारणों से आबादी विस्थापन का शिकार हो रही है जिससे क्षेत्रीय स्थिरता कमज़ोर हो रही है.

हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका और मध्य पूर्व में जलवायु परिवर्तन की वजह से, पहले से मौजूद पीड़ाएँ और भी ज़्यादा गहरी हो रही हैं जिनसे हिंसक संघर्ष का ख़तरा बढ़ रहा है – चरमपंथी गुटों के मज़बूत होने के लिए अनुकूल माहौल बन रहा है. 

सहायक महासचिव ने ऐसे उपायों का भी उल्लेख किया जिन्हें अपनाने से सदस्य देशों को हालात पर क़ाबू पाने में मदद मिल सकती है. 

उन्होंने कहा कि नई टैक्नॉलॉजी की मदद से दीर्घकाल में जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी विश्लेषणों को मज़बूत बनाने में मदद मिलेगी और ठोस व कारगर प्रयासों की ज़मीन तैयार हो सकती है. 

साथ ही संयुक्त राष्ट्र, सदस्य देशों, क्षेत्रीय संगठनों व अन्य पक्षकारों के प्रयासों को मज़बूती देने के लिये साझीदारियों को बढ़ावा देने की भी ज़रूरत है ताकि क्षेत्रीय सहयोग व जलवायु सुदृढ़ता सुनिश्चित किये जा सकें.