आर्कटिक: जंगलों में आग धधकने और समुद्री बर्फ़ की मात्रा घटने से चिन्ता

साइबेरिया में लम्बे समय से औसत तापमान का स्तर ऊँचा होने के कारण आर्कटिक क्षेत्र के कुछ हिस्सों में अमेरिका के फ़्लोरिडा प्रान्त से भी ज़्यादा गर्मी दर्ज की गई है जिससे लगातार दूसरे साल जंगलों में दावानल धधक रहा है. शुक्रवार को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने क्षेत्र में मौजूदा हालात के बारे में जानकारी देते हुए आर्कटिक तट पर समुद्री बर्फ़ की मात्रा घटने और उसके दुष्परिणामों के प्रति चेतावनी जारी की है.
संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी के मुताबिक इस वर्ष साइबेरिया में तापमान जनवरी से जून महीने तक के औसत तापमान से पाँच डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है जबकि जून में यह औसत तापमान से 10 डिग्री सेल्सियस तक ज़्यादा पहुँच गया.
#Siberia 2020Heat. Fire. Melting iceWhat happens in the #Arctic does not stay in the Arctic but has global repercussions.https://t.co/LrjKWrjWl4#ClimateChange#ClimateAction pic.twitter.com/GkW129DiYk
WMO
एजेंसी की प्रवक्ता क्लेयर न्यूलिस ने जिनीवा में एक प्रैस वार्ता के दौरान बताया, “साइबेरिया के कुछ हिस्सों में इस सप्ताह तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक गया है – यानि फ़्लोरिडा के अनेक हिस्सों की तुलना में साइबेरिया ज़्यादा गर्म है.”
उन्होंने बताया कि जनवरी महीने से अब तक लगाए गए अनुमान के मुताबिक कुल कार्बन उत्सर्जन पिछले 18 वर्षों में सबसे ज़्यादा है - Copernicus Atmosphere Monitoring Service के आँकड़ों से ये जानकारी मिली है.
उन्होंने कहा कि कई महीनों से असाधारण और लम्बी गर्मी पड़ने की वजह से आर्कटिक में विनाशकारी आग तेज़ी से फैली हुई है. इसके अलावा रूस के आर्कटिक तट पर समुद्री बर्फ़ की मात्रा में भी गिरावट दर्ज की गई है.
इससे पहले 20 जून को रूस के वर्खोयान्स्क शहर में 38 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था जो हैरान कर देने वाला था. इसकी पुष्टि रूस में मौसम पर नज़र रखने वाली संघीय संस्था ने की है जबकि यूएन एजेंसी अभी इसकी समीक्षा कर रही है.
प्रवक्ता क्लेयर न्यूलिस ने कहा, “आर्कटिक में गर्मी वैश्विक औसत गर्मी की तुलना में दोगुनी तेज़ी से बढ़ रही है जिससे स्थानीय आबादियों और पारिस्थितिकी तन्त्रों पर असर पड़ रहा है और इसका असर विश्व भर में हो सकता है.”
एजेंसी ने जलवायु वैज्ञानिकों के विश्लेषण के आधार पर आगाह किया है कि अत्यधिक गर्मी के लिये मानवीय गतिविधियों के भी ज़िम्मेदार होने की आशंका प्रबल है. लगातार दूसरे साल, आर्कटिक सर्किल क्षेत्र के भीतर आग धधक रही है. सैटेलाइट तस्वीरों सेआग की चपेट में आए क्षेत्रफल का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है.
समुद्र के पास वनों में धधक रही आग की चिन्ताजनक तस्वीरों ने एक बार फिर सभी देशों द्वारा तत्काल जलवायु कार्रवाई की अहमियत को रेखांकित किया है.
इसके तहत पैरिस जलवायु समझौते में व्यक्त किये गए संकल्प हासिल करने के लिये इरादों को और भी ज़्यादा मज़बूत बनाया जाना होगा ताकि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सके.
आँकड़े दर्शाते हैं कि साइबेरिया में 188 स्थानों पर आग लगी हुई है – रूस के साखा गणराज्य और चुकोटका स्वायत्त ओकरुग इलाक़ों में यह आग ज़्यादा धधक रही है.
बीते महीनों की तुलना मे दोनों इलाक़ों में औसत से ज़्यादा गर्मी महसूस की जा रही है. आग के धुएँ में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील जैविक पदार्थों सहित अन्य प्रदूषक तत्व होते हैं.
आर्कटिक क्षेत्र के जंगलों में लगी आग से जून महीने में 56 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर मात्रा का उत्सर्जन हुआ है जबकि जून 2019 में यह 53 मेगाटन था.
यूएन एजेंसी ने ‘Nature Climate Change’ जर्नल में जलवायु रीसर्च पर ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया कि आर्कटिक पारिस्थितिकी तन्त्रों के लिये ऐसे ख़तरे पैदा हो रहे हैं जिनकी दिशा नहीं पलटी जा सकती.
अगर समुद्री बर्फ़ इसी दर से पिघलती रही तो इन रुझानों से इस सदी के अन्त तक ध्रुवीय भालुओं (Polar bears) के लुप्त हो जाने की आशंका है.