कोविड-19: अरब क्षेत्र में 'व्यवस्थागत ख़ामियों व हिंसक संघर्षों से निपटने का अवसर'

अरब देशों को वैश्विक महामारी कोविड-19 से निपटने की कार्रवाई में अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन यह महामारी लम्बे समय से चले आ रहे हिंसक संघर्षों और पूरे क्षेत्र में ढाँचागत ख़ामियों को दूर करने का भी एक अवसर प्रदान करती है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने महामारी से अरब क्षेत्र की बेहतर पुनर्बहाली के लिये गुरुवार को अपना नीतिपत्र (Policy brief) जारी करते हुए यह बात कही है.
यूएन प्रमुख ने अपने नीतिपत्र में चार प्रकार की प्राथमिकताएँ चिन्हित की हैं ताकि इस क्षेत्र में स्थित देश कोविड-19 से उबरने के साथ-साथ टिकाऊ विकास लक्ष्य भी वर्ष 2030 तक हासिल कर पाएँ.
As the Arab region fights #COVID19, its economy could contract by over 5% - and one quarter of the total Arab population could be pushed into poverty.We must deepen efforts to address inequalities by investing in universal health, education & technology. https://t.co/2adR3AyOg6 pic.twitter.com/jv2igTQIdo
antonioguterres
उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा, "कोविड-19 महामारी ने समाजों और अर्थव्यवस्था में हमारी दरारों, विच्छेदों और कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है – और अरब क्षेत्र इसका कोई अपवाद नहीं है.”
“एक साथ मिलकर हम इस संकट को एक अवसर में तब्दील कर सकते हैं. यह क्षेत्र के लिये अच्छा होगा और हमारी दुनिया के लिये भी अच्छा रहेगा.”
‘The Impact of COVID-19 on the Arab Region: An Opportunity to Build Back Better’ नामक यह नीतिपत्र, नीतिगत पहलों व सुझावों की कड़ी में एक नया जुड़ाव है. इन नीतिपत्रों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सरकारों को कोरोनावायरस संकट के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई के लिये सुझाव प्रस्तुत कर रहा है.
अरब क्षेत्र के लिये निम्न चार प्रमुख बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करने की बात कही गई है:
अरब देशों की कुल जनसंख्या 43 करोड़ से ज़्यादा है और हाल के समय में तेल से मिलने वाले उनके राजस्व, धन-प्रेषण (Remittance) और पर्यटन में तेज़ गिरावट आई है.
क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के पाँच फ़ीसदी से भी ज़्यादा सिकुड़ने का अनुमान है जिससे लगभग 152 अरब डॉलर तक का नुक़सान हो सकता है. इस वजह से क़रीब एक चौथाई आबादी के ग़रीबी का शिकार होने की आशंका है.
“पहले से तनावों और विषमताओं से पीड़ित एक क्षेत्र में इसके राजनैतिक व सामाजिक स्थिरता के लिये गहरे नतीजे होंगे.”
वर्षों से चले आ रहे हिंसक संघर्षों और सामाजिक असन्तोष के कारण मानवीय विकास की दिशा में प्रगति को झटका लगा है और कुछ समुदाय विशेष तौर पर प्रभावित हुए हैं. इनमें महिलाएँ, शरणार्थी और घरेलू विस्थापित हैं.
अरब क्षेत्र में दुनिया में सबसे ज़्यादा लैंगिक खाई है और संयुक्त राष्ट्र ने आशंका जताई है कि मौजूदा हालात के कारण सात लाख से ज़्यादा महिलाएँ अपने रोज़गार खो सकती हैं, विशेषत: अनौपचारिक सैक्टर में जहाँ वे कार्यबल का 60 फ़ीसदी से भी ज़्यादा हैं.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि हिंसा में फँसे लोगों के लिए हालात ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हैं – ढाई करोड़ से ज़्यादा शरणार्थियों व घरेलू विस्थापितों के लिये जिन पर वायरस से संक्रमित होने का जोखिम ज़्यादा है.
इस महामारी के कारण सम्पदा के मामले में असमानता बढ़ने का भी ख़तरा है जो इस क्षेत्र में पहले से ही बहुत ज़्यादा है. इस बीच कमज़ोर सार्वजनिक संस्थाओं के कारण बहुत से देश बड़े संकटों पर पार पाने के लिये पुख़्ता तैयारी नहीं कर पाएँगे.
इन चुनौतियों के बावजूद यूएन प्रमुख ने कहा कि कोविड-19 एक ऐसा अवसर है जिसके ज़रिये अरब क्षेत्र में बदलाव लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यह लम्बे टकरावों और ढाँचागत कमज़ोरियों को सुलझाने का भी अवसर हो सकता है.
उन्होंने इस सम्बन्ध में जवाबी कार्रवाई के लिये चार प्रकार की प्राथमिकताएँ पेश की हैं, जिनमें तात्कालिक रूप से बीमारी के फैलाव की गति को कम करने, हिंसक संघर्षों का अन्त करने, और सबसे निर्बलों को सहारा देने पर ध्यान केन्द्रित करने का लक्ष्य रखा गया है.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि इसका अर्थ कोविड-19 पीड़ितों को जीवनदायी स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना, वैश्विक एकजुटता की अपील का सम्मान करना, सबसे निर्बल समुदायों को मानवीय राहत प्रदान करना, व्यक्तियों व घरों को आपात मदद देना, क़र्ज़ से राहत और व्यापार को बढ़ावा देना है.
यूएन प्रमुख ने अरब क्षेत्र में विषमताओं के मद्देनज़र सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक संरक्षण और टैक्नॉलजी में ज़्यादा निवेश किये जाने की पुकार लगाई है. साथ ही उन्होंने महिलाओं व लड़कियों में निवेश की आवश्यकता और उनके समान अधिकार व भागीदारी सुनिश्चित करने की अहमियत को दोहराया है.
महासचिव ने स्पष्ट किया कि आर्थिक पुनर्बहाली को गति प्रदान करने में वैविध्यपूर्ण और हरित आर्थिक नीतियाँ अपनाई जानी होंगी.
अच्छे, उपयुक्त और टिकाऊ रोज़गारों का सृजन करने, प्रगतिशील टैक्स प्रणालियाँ लागू करने, जीवाश्म ईंधन को मिलने वाली सब्सिडी पर विराम लगाने और जलवायु जोखिमों के प्रति तैयारी बढ़ाने से ये मुक़ाम हासिल किया जा सकता है.
नीतिपत्र में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की अहम भूमिका को रेखांकित करते बताया गया है कि अरब देशों में बदलाव लाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है.
इस क्रम में मानवीय राहत सुनिश्चित करने के साथ-साथ वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता और क़र्ज़ राहत के उपाय सम्भव बनाने होंगे और व्यापार के मार्ग में आने वाले अवरोधों को हटाना होगा.