कोविड-19: भयावह मन्दी की आशंका के बीच आर्थिक मोर्चे पर एकजुटता की पुकार

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण आर्थिक व सामाजिक जीवन पर व्यापक असर पड़ने के साथ-साथ बहुपक्षीय सहयोग के मार्ग पर भी अनेक चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं. इस संकट से बेहतर पुनर्बहाली के लिए एक नई रिपोर्ट बुधवार को एक वर्चुअल आयोजन में पेश की गई जिसमें आर्थिक विकास के नए तरीक़ों पर सिफ़ारिशें जारी की गई हैं. इस कार्यक्रम में यूएन के वरिष्ठ अधिकारी, शिक्षाविद और नोबेल पुरस्कार विजेता शामिल हुए, साथ ही देशों को इस संकट से उबारने और ढाँचागत बदलावों के लिये नीतिगत उपायों पर चर्चा हुई.
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवँ सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) के अवर महासचिव लियू झेनमिन ने उच्चस्तरीय सलाहकार बोर्ड के समक्ष नई रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, “स्वास्थ्य, आर्थिक व सामाजिक संकटों से जुड़े समानान्तर ख़तरों ने देशों को पंगु बना दिया है और हमें ठहराव पर खड़ा कर दिया है.”
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UNDESA
“Recovering better: Economic and Social Challenges and Opportunities” नामक इस रिपोर्ट में टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने और कोविड-19 से उबरने के नज़रिये से महत्वपूर्ण आर्थिक रुझानों का विश्लेषण किया गया है.
रिपोर्ट की सिफ़ारिशों में पर्यावरण पर पहले से ज़्यादा ध्यान केन्द्रित करने, शोध एवँ विकास को बढ़ावा देने, बुनियादी ढाँचे व शिक्षा में निवेश बढ़ाने और आर्थिक समानता की दिशा में बेहतरी लाने के प्रयासों की सिफ़ारिश भी की गई है.
अवर महासचिव ने कहा कि संकट पर क़ाबू पाना और टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते पर लौटने के लिये एक मज़बूत बहुपक्षवाद की आवश्यकता होगी.
कोरोनावायरस संकट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नेतृत्व, दूरदर्शिता और सरकारों व पक्षकारों में पारस्परिक सहयोग का कितना महत्व है.
यूएन की उपमहासचिव आमिना जे मोहम्मद ने अपने वीडियो सन्देश में कहा कि वर्ष 2020 में लगभग दस करोड़ लोगों के फिर से चरम ग़रीबी में धकेल दिये जाने की आशंका है – वर्ष 1998 के बाद वैश्विक ग़रीबी में पहली बार यह बढ़ोत्तरी होगी.
उन्होंने आगाह किया कि अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण और इस संकट से टिकाऊ व समावेशी ढँग से उबरने के लिये हरसम्भव विकल्प अपनाने होंगे.
बुधवार को जारी रिपोर्ट में अन्तरराष्ट्रीय टैक्स सहयोग को बेहतर बनाने और डिजिटल टैक्नॉलजी को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने की पुकार लगाई गई है.
यूएन उपप्रमुख ने ध्यान दिलाया कि इसके साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के टिकाऊ प्रबन्धन और सामानों व उत्पादों के व्यापार में मूल्य-संवर्धित तरीक़े अपनाया जाना भी अहम होगा.
टिकाऊ विकास का 2030 एजेण्डा वैश्विक कार्ययोजना का एक ऐसा ब्लूप्रिंट है जिसके तहत जलवायु परिवर्तन, ग़रीबी, लैंगिक असमानता पर प्रगति की रफ़्तार तेज़ करने के अलावा महामारी द्वारा उजागर की गई व्यवस्थागत ख़ामियों को दूर किया जा सकता है.
नीति संवादों के दौरान 12 विशेषज्ञों ने विश्व के आर्थिक मन्दी की चपेट में आने और उससे उबरने के लिये उन तरीक़ों पर चर्चा की जिनसे मौजूदा तन्त्र की निर्बलताओं में सुधार किया जा सकता है.
लातिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र के लिये यूएन आर्थिक आयोग की कार्यकारी सचिव एलीशिया बार्सेना ने कहा कि आर्थिक दक्षता और समानता दोनों ही ज़रूरी हैं और उनके बीच चयन में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिये.
समावेशी और मज़बूत बहुपक्षवाद के ज़रिये टिकाऊ पुनर्बहाली पर एक चर्चा के दौरान उन्होंने ढाँचागत बदलावों की आवश्यकता पर बल दिया.
लातिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र में वर्ष 2000 से 2010 तक छह करोड़ लोगों को ग़रीबी से बाहर निकलने में सफलता मिली, लेकिन अब साढ़े चार करोड़ लोगों पर फिर निर्धनता के गर्त में समाने का ख़तरा मंडरा रहा है.
“बाज़ार से समाज में समानता नहीं आएगी. हमें पूरी तरह से एक नया सामाजिक और राजनैतिक संकल्प चाहिये.”
कार्यकारी सचिव एलीशिया बार्सेना ने कोस्टा रीका, उरुग्वे और क्यूबा का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार पर ज़्यादा भरोसा करने वाले समाजों ने अन्य देशों की तुलना में महामारी से निपटने में बेहतर प्रदर्शन किया है.
यूएन अधिकारी ने प्रगतिशील टैक्स प्रणाली का आहवान करते हुए बताया कि लातिन अमेरिका व कैरीबियाई क्षेत्र में स्थित देशों में टैक्स का बोझ 23 फ़ीसदी है – यह आर्थिक सहयोग एवँ विकास संगठन (OECD) के देशों की तुलना में कम है.
वहीं चिली के पूर्व राष्ट्रपति रिकार्डो लागोस ने सचेत किया कि महामारी के बाद की दुनिया क्षेत्रों और गुटों (Blocs) में बँटी दुनिया हो सकती है. उन्होंने महामारी पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तत्वाधान में एक अन्तरराष्ट्रीय और बाध्यकारी समझौते का सुझाव दिया है.
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में शोध संस्थान (DIW) के मार्सेल फ़्रात्सशर ने बताया कि 21 जुलाई को योरोपीय देशों ने लगभग 850 अरब डॉलर के पुनर्बहाली कोष की स्थापना की है जिसके ज़रिये योरोप के मज़बूत देश कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को मदद देने के लिये राज़ी हुए हैं.
उन्होंने कहा कि एक संस्थागत फ़्रेमवर्क तैयार किया जा रहा है जिससे वित्तीय संयोजन की मदद से पूँजी बाज़ार संयोजन को मज़बूत बनाया जाना सम्भव होगा.
अन्य विशेषज्ञों ने वैश्विक व्यापार में दर्ज हुई गिरावट की ओर ध्यान आकर्षित किया. कोलम्बिया यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर मैरिट जैनो के मुताबिक राष्ट्रवाद के उभार, भूराजनैतिक तनाव के बढ़ने और बहुपक्षीय संस्थाओं पर दबाव होने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर बोझ बढ़ रहा है.
उन्होंने कहा कि पहली प्राथमिकता - वैश्विक व्यापार प्रणाली को खुली रखना होनी चाहिये और इसके लिये व्यवहारिक और मुश्किलों को हल करने के तरीक़े अपनाने की आवश्यकता होगी.
एक अन्य चर्चा में वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति और पुनर्बहाली के रास्तों की समीक्षा की गई.
अफ़्रीका पर यूएन महासचिव की विशेष सलाहकार क्रिस्टीना दुआर्ते ने कहा कि अफ़्रीका को बेहतर ढँग से उबारने के लिये यह समझना ज़रूरी होगा कि 25 वर्षों की निर्बाध आर्थिक वृद्धि के बावजूद प्रणालियों की कमी अब भी क्यों बनी हुई है.
उन्होंने कहा कि अफ़्रीका को आपात समाधानों से इतर भी ख़ुद को संगठित करना पड़ेगा और आर्थिक प्रगति की गुणवत्ता की अहमियत को समझना होगा.
महामारी की चपेट में आने से पहले अफ़्रीकी महाद्वीप सामाजिक रूप से समावेशी नहीं था और 60 फ़ीसदी से ज़्यादा युवाओं के पास रोज़गार नहीं थे.
उन्होंने कहा कि अफ़्रीका को 40 लाख शिक्षक और 10 से 20 लाख स्वास्थ्यकर्मियों की आवश्यकता है. साथ ही उस सोच से भी परे हटना होगा जिसमें ग़रीबी प्रबन्धन की तुलना विकास प्रबन्धन से की जाती है. पुनर्बहाली की रणनीतियों के केन्द्र में आर्थिक वृद्धि के बजाय आय के पुनर्वितरण को रखा जाना होगा.
टोक्यो यूनिवर्सिटी की हाइज़ो ताकेनाका ने कोविड-19 से निपटने में जापान के अनुभवों की जानकारी देते हुए हुए बताया कि एमरजेंसी के दौरान शासन प्रणालियों पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए.
“हमें अब सम्पदा मुद्रास्फ़ीति (Asset inflation) की सम्भावना के प्रति बेहद सतर्क रहना होगा, विशेषत: इसलिये क्योंकि मौद्रिक संस्थाएँ अनेक देशों में बड़ी मात्रा में धन झोंक रही हैं.”
नोबेल पुरस्कार विजेता जोसेफ़ स्टीगलिट्ज़ ने कहा कि एक ऐसे लम्हे में जब वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है, मज़बूत ताक़तें वैश्विक अर्थव्यवस्था को उधेड़ रही हैं.
उन्होंने चिन्ता जताई कि शीत युद्ध के बाद पनपा वो आशावाद लुप्त हो रहा है जिसमें देश उदारवादी लोकतान्त्रिक मानकों व मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था के इर्दगिर्द एकत्र हो रहे थे.
कोविड-19 से हुई उठापठक से अधिनायकवाद दुनिया के कुछ हिस्सों में फल-फूल रहा है जिससे देशों में दरारें आ गई हैं.
उन्होंने कहा कि वैश्विक आर्थिक मन्दी 1930 के दशक की द ग्रेट डिप्रेशन के बाद सबसे ख़राब होगी और कुछ मायनों में तो उससे भी ज़्यादा बुरी होगी.
नोबेल विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ़ स्टीगलिट्ज़ ने आगाह किया कि अनेक देशों में सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी ताकि हमारे विचारों के अनुरूप समाजों का निर्माण किया जा सके.