इसराइल द्वारा फ़लस्तीनियों को सामूहिक दण्ड - ‘ग़ैरक़ानूनी और न्याय का तिरस्कार’

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने इसराइल से उन सभी कार्रवाइयों को तत्काल रोकने का आग्रह किया है जो फ़लस्तीनियों के लिये सामूहिक दण्ड के समान हैं. यूएन के विशेष रैपोर्टेयर माइकल लिन्क ने कहा कि लाखों निर्दोष फ़लस्तीनियों को रोज़ाना कष्ट पहुँच रहा है जिससे तनाव के और भी ज़्यादा गहरा होने और हिंसा के लिये अनुकूल माहौल बनने के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता.
स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ माइकल लिन्क ने शुक्रवार को मानवाधिकार परिषद के 44वें सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट पेश की.
उन्होंने कहा कि फ़लस्तीनी आबादी पर नियन्त्रण रखने की इसराइली रणनीति आधुनिक न्यायिक प्रणाली के हर बुनियादी नियम का उल्लंघन करती है
UN expert Michael Lynk calls on #Israel to immediately stop all actions amounting to collective punishment of #Palestinians, with millions of innocents harmed daily and nothing achieved but deeper tensions and an atmosphere conducive to violence 👉 https://t.co/wwDG0P19LP#HRC44 pic.twitter.com/NhiK2mQDZU
UN_SPExperts
“अपने कृत्यों के लिये दोषी को ही दण्डित किया जा सकता है, और वो भी एक निष्पक्ष प्रक्रिया के बाद. मासूम लोगों को किसी अन्य व्यक्ति के कारनामों के लिये दण्डित नहीं किया जा सकता.”
इसराइल द्वारा वर्ष 1967 से क़ब्ज़ा किये हुए फ़लस्तीनी इलाक़ों में मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष रैपोर्टेयर माइकल लिन्क ने कहा, “यह देखना न्याय और क़ानून के राज का तिरस्कार है कि ऐसे तरीक़ों का 21वीं सदी में भी इस्तेमाल किया जा रहा है, और फ़लस्तीनियों को अन्य कुछ लोगों की वजह से सामूहिक रूप से सज़ा मिलना जारी है.”
उन्होंने कहा कि इसराइली क़दमों से फ़लस्तीनियों के जीवन जीने के अधिकार, आवाजाही की आज़ादी, स्वास्थ्य, शरण की समुचित व्यवस्था और उपयुक्त जीवनस्तर के अधिकारों का गम्भीर हनन हो रहा है.
विशेष रैपोर्टेयर ने ध्यान दिलाया कि सामूहिक दण्ड की इस नीति का सबसे विनाशकारी प्रभाव ग़ाज़ा में पिछले 13 वर्ष से जारी नाकेबन्दी से लगाया जा सकता है.
इस वजह से ग़ाज़ा में अर्थव्यवस्था पूरी तरह ढह गई है, बुनियादी ढाँचा तबाह हो गया है और सामाजिक सेवा प्रणाली बमुश्किल काम कर पा रही है.
"इसराइल ने हमास पर लगाम कसने और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का हवाला देकर ग़ाज़ा की नाकेबन्दी को जायज़ ठहराया था, लेकिन उसका वास्तविक असर ग़ाज़ा की अर्थव्यवस्था के लिये तबाहीपूर्ण रहा है जिससे वहाँ के 20 लाख निवासियों को असीमित पीड़ा झेलनी पड़ी है.”
उन्होंने कहा कि चौथी जिनीवा सन्धि के अनुच्छेद 33 के तहत अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानूनों में सामूहिक दण्ड की स्पष्ट तौर पर मनाही है और इसके लिये किसी भी अपवाद की अनुमति नहीं है.
विशेष रैपोर्टेयर की नई रिपोर्ट में इसराइल की उस नीति की आलोचना की गई है जिसमें दण्ड के तौर पर फ़लस्तीनी घरों को ढहाया जाना जारी है.
“इसराइल ने वर्ष 1967 से अब तक दो हज़ार फ़लस्तीनी घर ध्वस्त कर दिये हैं, और इसका मक़सद फ़लस्तीनी परिवारों को उनके कुछ परिजनों के कृत्यों की सज़ा देना है जबकि वो ख़ुद उसमें शामिल भी नहीं थे.”
उन्होंने कहा कि ऐसी कोई भी कार्रवाई चौथी जिनीवा सन्धि के अनुच्छेद 53 का स्पष्ट उल्लंघन है.
विशेष रैपोर्टेयर के मुताबिक यह देखना दुखद है कि इसराइल का राजनैतिक व न्यायिक नेतृत्व फ़लस्तीनी घरों को तोड़ना एक ज़रूरी निवारक उपाय के रूप में देखता है. लेकिन इससे नफ़रत और प्रतिरोध के माहौल को बल मिलता है और यह बात इसराइल के सुरक्षा नेतृत्व ने भी स्वीकार की है.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.