कोविड-19: निर्बल देशों में विनाशकारी संकटों से बचने के लिये सहायता बढ़ाने का आहवान

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 और उससे उपजी आर्थिक मन्दी के कारण पिछले तीन दशकों में पहली बार वैश्विक ग़रीबी में वृद्धि दर्ज किये जाने की आशंका प्रबल हो गई है. मानवीय राहत मामलों में समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA) के प्रमुख मार्क लोकॉक ने एक चेतावनी जारी करते हुए इस वर्ष के अन्त तक 26 करोड़ से ज़्यादा लोगों के भुखमरी के कगार पर पहुँच जाने का ख़तरा व्यक्त किया है और जी-20 समूह के देशों से ठोस कार्रवाई करने की पुकार लगाई है.
यूएन के एक वरिष्ठ मानवीय सहायता अधिकारी मार्क लोकॉक ने विश्व के अग्रणी औद्योगिक देशों का आहवान करते हुए कहा कि जी-20 समूह के देशों को अपनी मदद का स्तर व दायरा बढ़ाना होगा. उन्होंने इस अपील के तहत कोरोनावायरस संकट से जूझ रहे निम्न आय वाले 63 देशों के लिये 10 अरब डॉलर से ज़्यादा धनराशि जुटाए जाने का आहवान किया है.
#COVID19 and the associated global recession are about to wreak havoc in fragile and low-income countries.That’s why today we are revising our Global Humanitarian Response Plan to $10.3 billion to fight the pandemic in the most vulnerable countries.https://t.co/RulPqCG1d9
UNOCHA
“महामारी और उसके कारण वैश्विक मन्दी नाज़ुक हालात का सामना कर रहे और निम्न आय वाले देशों में तबाही लाने के कगार पर है.”
“धनी देशों की जवाबी कार्रवाई अब तक पूरी तरह अपर्याप्त और ख़तरनाक ढँग से अदूरदर्शितापूर्ण रही है. तत्काल कार्रवाई करने में विफलता से वायरस को दुनिया का चक्कर लगाने के लिये आज़ादी मिल जाएगी, दशकों से हुआ विकास बिखर जाएगा और एक पूरी पीढ़ी के लिये त्रासदीपूर्ण समस्याएँ पैदा होंगी जो आगे भी जारी रह सकती हैं.”
उन्होंने कहा लेकिन ऐसा नहीं है कि इसे रोका नहीं जा सकता है.
“यह एक ऐसी समस्या है जिसे अमीर देशों के धन, अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के शेयरधारकों की नई सोच और यूएन एजेंसियों, रेडक्रॉस एण्ड रेड क्रेसेण्ट और अन्य ग़ैसरकारी संगठनों की मदद से निपटा जा सकता है.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गुरुवार तक कोरोनावायरस के संक्रमण के एक करोड़ 30 लाख से ज़्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है और पाँच लाख 80 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई है.
यूएन एजेंसी प्रमुख मार्क लोकॉक ने आशंका जताई कि अगर जी-20 देशों ने अभी कार्रवाई नहीं की तो दुनिया को फिर मानव त्रासदियों की एक ऐसी श्रृंखला का सामना करना पड़ेगा जो महामारी के प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभावों से कहीं ज़्यादा क्रूर और विनाशकारी होगी.
“धनी देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं की रक्षा करने के लिये नियम-पुस्तिका को उठाकर फेंक दिया है. ये अभूतपूर्व उपाय ज़रूरतमन्द देशों के लिये भी लागू किये जाने होंगे.”
“वायरस की तुलना में कहीं ज़्यादा क्रूर और विनाशकारी एक के बाद एक अन्य सकंटों की आशंका से ही हमें पर्याप्त झटका लग जाना चाहिए.”
संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक महामारी के कारण स्वास्थ्य प्रणालियों में आए व्यवधान से हर दिन छह हज़ार बच्चों की ऐसे कारणों से मौत हो सकती है जिन्हें टाला सकता है.
वहीं एचआईवी, तपेदिक (टीबी) और मलेरिया से होने वाली मौतों का वार्षिक आँकड़ा दोगुना होने की आशंका है.
मानवीय सहायताकर्मियों ने कहा है कि सीरिया के इदलिब प्रान्त में संक्रमण के पहले मामले की पुष्टि पिछले सप्ताह हुई थी जिससे भीड़भाड़ भरे शिविरों में महामारी के तबाहीपूर्ण फैलाव का भय व्याप्त हो गया है. इन शिविरों में सीरिया में वर्षों से चले आ रहे हिंसक संघर्ष से प्रभावित और विस्थापित लाखों लोग रहते हैं.
कोविड-19 वैश्विक मानवीय राहत कार्रवाई योजना (COVID-19 Global Humanitarian Response Plan) में विश्वव्यापी महामारी से उपजी मानवीय मानवीय राहत ज़रूरतों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, मुख्यत: निम्न और मध्य आय वाले 63 देशों में ताकि महामारी से निपटने के उनके प्रयासों को मज़बूती प्रदान की जा सके.
इस योजना में दुनिया के निर्बलतम नागरिकों को प्राथमिकता दी गई है जिनमें वृद्धजन, विकलांग, विस्थापित, महिलाएँ व लड़कियाँ भी हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड-19 को विश्वव्यापी महामारी घोषित किये जाने के कुछ ही दिन बाद मार्च 2020 में ये योजना पेश की गई थी. इसके तहत अब तक एक अरब 70 करोड़ डॉलर की धनराशि जुटाई जा चुकी है.