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उभरती टैक्नॉलॉजी से गहराती नस्लवाद और भेदभाव की चुनौती 

डिजिटल तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था में विकासशील देश पिछड़ रहे हैं.
ITU/D. Procofieff
डिजिटल तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था में विकासशील देश पिछड़ रहे हैं.

उभरती टैक्नॉलॉजी से गहराती नस्लवाद और भेदभाव की चुनौती 

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने उभरती डिजिटल टैक्नॉलॉजी की गहराई के साथ छानबीन करने की पुकार लगाई है जिनका इस्तेमाल नस्लीय असमानता, भेदभाव और असहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिये किया जा रहा है. 

नस्लवाद पर विशेष रैपोर्टेयर टैन्डाई आच्छुमे ने इस सम्बन्ध में अपनी चिन्ताएँ बुधवार को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद के सत्र के दौरान एक रिपोर्ट में पेश कीं.

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स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा, “टैक्नॉलॉजी तटस्थ या वस्तुनिष्ठ नहीं है. बुनियादी रूप से इस चलन को नस्लीय, जातीय, लैंगिक और समाज में व्याप्त अन्य विषमताओं से आकार मिलता है और मोटे तौर पर ये स्थिति इन असमानताओं को और भी बदतर कर देती हैं.”

उन्होंने आगाह किया कि इसके नतीजे में जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव और असमान बर्ताव को बढ़ावा मिल रहा है – शिक्षा से रोज़गार और आपराधिक न्याय तक.

यूएन की विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि चरमपंथी नस्लवाद, विदेशियों के प्रति नापसन्दगी व डर और असहिष्णुता जैसे मुद्दे तो हैं लेकिन समस्या इससे कहीं ज़्यादा व्यापक है.

“फ़ेसबुक जैसी विशाल कम्पनियों के ऐसे आर्थिक व व्यवसायिक मॉडल हैं जिनका मतलब है कि वे ग़लत जानकारी, भेदभाव और असहिष्णुता से मुनाफ़ा मिलता है.” 

उन्होंने कहा कि अनेक सरकारों ने ऐसे अल्गोरिदम (Algorithm) अपनाए हैं जिनसे हाशिए पर धकेल दिये गये समूहों के प्रति भेदभाव बढ़ता है. 

उन्होंने रच-बस गए नस्लवाद से प्रभावित लोगों के लिये मुआवज़े के साथ-साथ टैक्नॉलॉजी पर कुछ प्रतिबन्ध लगाए जाने की भी माँग की है.

“जियॉर्ज फ़्लॉयड और अनगिनत अन्य लोगों की मौतों से क़ानून एजेंसियों में व्याप्त व्यवस्थागत नस्लवाद के ख़िलाफ़ व्यापक विरोध मुखर हुआ है.”

ग़ौरतलब है कि मई 2020 में अमेरिका के मिनियापॉलिस शहर में एक अफ़्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मौत के बाद नस्लीय न्याय की माँग के समर्थन में व्यापक पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे. 

उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों पर आधारित जवाबी कार्रवाई में ऐसी डिजिटल टैक्नॉलॉजी का भी निरीक्षण किया जाना होगा जिनसे प्रणालीगत नस्लवाद को बढ़ावा मिल रहा है. 

यूएन की विशेष रैपोर्टेयर की यह रिपोर्ट कोविड-19 महामारी की पृष्ठभूमि में जारी हुई है. महामारी का सबसे अधिक असर नस्लीय और जातीय अल्पसंख्यकों पर हुआ है. 

उन्होंने ध्यान दिलाया कि वायरस का फैलाव रोकने के लिये जिन प्रोद्योगिकियों का इस्तेमाल किया जा रहा है वे वही हैं जिनका इस्तेमाल अतीत में कुछ समुदायों को मानवाधिकार का इस्तेमाल करने से रोकने में हुआ है. 

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि टैक्नॉलॉजी डिज़ाइन करने में नस्लीय भेदभाव की रोकथाम करने और उसे जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया में ज़्यादा संख्या में नस्लीय और जातीय अल्पसंख्यकों को स्थान दिया जाना होगा.