भारत में कोरोना योद्धा - महामारी के दौरान मातृत्व स्वास्थ्य देखभाल

कोविड-19 महामारी के कारण हुई तालाबन्दी से स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव बढ़ गया है, जिससे यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. इन ठोस चुनौतियों के बावजूद, कई साहसी महिलाओं ने आगे आकर ये सुनिश्चित किया कि महामारी के दौरान महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकारों की उपेक्षा न हो पाए. विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर, भारत की ऐसी ही कुछ महिला फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की निस्वार्थ सेवाओं की झलक, जो संकट के समय पूरी प्रतिबद्धता से अपना कर्तव्य निभा रही हैं.
मध्य प्रदेश के एक गाँव बागोटा की निवासी 49 वर्षीय अंजना तिवारी एक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) हैं और ‘गर्भवती महिलाओं व युवा लड़कियों को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराती हैं.
आशा’ कार्यकर्ता का काम होता है - महिलाओं को अपने शिशुओं को अस्पताल में जन्म देने के लिए प्रेरित करना, बच्चों को टीकाकरण के लिये क्लीनिक में लाना, 'परिवार नियोजन' को प्रोत्साहित करना, प्राथमिक उपचार के साथ बुनियादी बीमारी और चोट का इलाज करना, जनसांख्यिकीय रिकॉर्ड रखना और गाँव की स्वच्छता में सुधार करना.
अंजना को मालूम था कि महामारी के दौरान ज़मीनी स्तर पर महिलाओं व लड़कियों के लिये स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना कितना आवश्यक है.
भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए तालाबन्दी होने पर, शहरों में काम की कमी और जीविका के अनिश्चित साधन होने के कारण हज़ारों की संख्या में मज़दूर वापस अपने गाँवो व घरों को लौटने लगे थे.
इस दौरान अंजना को राजधानी दिल्ली से लौटी दो महिलाएँ मिलीं जो सात माह की गर्भवती थीं. अंजना ने बताया, “मैंने उन्हें तुरन्त 14 दिनों के लिए एकान्तवास में रहने की सलाह दी. इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान उनकी अच्छी देखभाल के लिए आयरन व फोलिक एसिड की दवाएँ भी दीं."
"जब मुझे मालूम हुआ कि उन्हें टिटनैस का टीका भी नहीं दिया गया था, जो गर्भावस्था के दौरान बहुत आवश्यक है, तो मैंने ये सुनिश्चित किया कि उन्हें ये वैक्सीन तुरन्त दी जाए. हमने इन दोनों महिलाओं की नियमित जाँच की और मुझे ये बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि उनकी गर्भावस्था अच्छी तरह से चल रही है."
हालाँकि अंजना को गाँव में अपने काम के दौरान बहुत सी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा. फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में जगह-जगह जाने के कारण कई बार लोग उन्हें संक्रमण के डर के कारण अपने घरों के अन्दर बुलाने से डरते थे.
इस समस्या के हल के लिये उन्होंने एक अभिनव दृष्टिकोण अपनाया. कुछ मामलों में, उन्होंने गर्भवती महिलाओं तक सलाह और जानकारी देने के लिये पड़ोसियों का सहारा लिया, तो कभी वो महिलाओं से खिड़कियों से ही बात करके आवश्यक जानकारी दे आती थीं.
वो बताती हैं, “मैं उन्हें सुरक्षित रहने और सावधानियाँ बरतने की जानकारियाँ देती हूँ. मैं उन्हें खुद को और अपने बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए दाल और हरी सब्जियाँ जैसे पौष्टिक आहार खाने के लिये भी कहती हूँ.”
भले ही ये काम शारीरिक और भावनात्मक रूप से थका देने वाला है, लेकिन संकट के इस समय में महिलाओं के काम आने का जज़्बा उन्हें अपना काम जारी रखने के लिये प्रेरित करता है.
अंजना के अनुसार, “मैं हमेशा अपने समाज की सेवा करना चाहती हूँ. जिन्दगियाँ बचाने को ही मैं अपना परम कर्तव्य मानती हूँ.”
38 वर्षीय कविता अग्रवाल 15 साल के अनुभव के साथ मध्य प्रदेश में ‘आशा मार्गदर्शक’ हैं और 14 ‘आशा महिलाओं' की एक टीम का नेतृत्व करती हैं.
कविता राज्य सरकार के नेतृत्व में कोविड-19 के ख़िलाफ़ 1 से 15 जुलाई तक चल रहे एक अभियान का हिस्सा हैं. इस अभियान के तहत, वो प्रत्येक दिन 30 से अधिक घरों में जाकर, कोविड-19 के ख़िलाफ़ सुरक्षा समेत तमाम स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देती हैं.
“मेरी शिफ्ट रोज़ाना छह घण्टे की है, लेकिन इन दिनों कोरोना महामारी के कारण, मुझे ड्यूटी के लिए किसी भी समय बुलाया जा सकता है, यहाँ तक कि देर शाम को भी. मुझे अपने पति और बच्चों का पूरा सहयोग मिलता है, जो इस संकट के दौरान मेरे कर्तव्य से पूरी तरह वाक़िफ़ हैं.”
प्रवासी आबादी के घर लौटने के साथ, कार्यभार कई गुना बढ़ गया है. लेकिन ‘आशा’ के मेहनती व साहसी फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को इसी तरह की चुनौतियों के लिए तैयार किया जाता है.
कविता गर्व से बताती हैं, “शुरुआत में मैं केवल महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल कर रही थी. अब मैं सभी के स्वास्थ्य की देखभाल करता हूँ.”
कविता और उनकी टीम, अपने पैतृक गाँव वापस लौटने वाले मज़दूरों और गर्भवती महिलाओं का पूरा मेडिकल रिकॉर्ड प्राप्त करती है. फिर यह सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें टिटनस के टीकाकरण और आयरन व फोलिक एसिड की गोलियाँ मिलती रहें. इसके अलावा रक्त की कमी (एनीमिया) से बचने के लिये भी युवा लड़कियों और महिलाओं को आयरन व फोलिक एसिड की गोलियाँ दी जातीं हैं.
वो बताती हैं, “हमारा काम बहुत कठिन हो गया है क्योंकि प्रवासी लोग डरते हैं कि हम उन्हें अलग-थलग करके एकान्तवास केन्द्र में रख देंगे. लेकिन लगातार प्रयास और परामर्श से अब लोग समझने लगे हैं.”
कविता एक सच्ची कोरोना योद्धा हैं जो महिलाओं व लड़कियों की भलाई की ख़ातिर सूचना और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये अथक प्रयास कर रही हैं.
52 वर्षीय सहायक नर्स मिडवाइफ़ (एएनएम), किरण कुमारी भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित राज्य बिहार के शेखपुरा से हैं. यहाँ यूएनएफ़पीए, अपने कार्यान्वयन भागीदार, प्लान इंडिया के साथ मिलकर यौन व प्रजनन स्वास्थ्य और महिलाओं व लड़कियों के अधिकार सुनिश्चित करने में लगा है.
किरण कुमारी को मातृत्व और बाल स्वास्थ्य में कई वर्षों का अनुभव है. वो कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान मुझे संस्थागत प्रसव के लिए लेबर रूम में काम करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. मैंने कई महिलाओं की प्रसव के दौरान में मदद की और महामारी से बचने के लिए सामाजिक दूरी के नियमों के बारे में उनके रिश्तेदारों को सलाह दीं. जब भी किसी ‘आशा कार्यकर्ता’ से मुझे प्रसव पीड़ा में पहुँची महिला के बारे में जानकारी मिलती है, तो मैं तुरन्त उसे स्वास्थ्य देखभाल केन्द्र ले जाने के लिये एम्बुलेंस की व्यवस्था करती हूँ."
किरण कुमारी महामारी के दौरान आने वाली कठिनाइयों से घबराती नहीं हैं और पूरी लगन से अपना काम करती रहती हैं. किसी भी आपात स्थिति में एम्बुलेंस सहायता प्रदान के लिये वो अपने ड्यूटी स्टेशन हमेशा समय पर पहुँचती हैं.
“मेरा परिवार और बच्चे मुझ पर गर्व करते हैं और मुझे अपार सहयोग देते हैं, जिससे मुझे हर दिन और ज़्यादा बेहतर करने के लिये प्रेरणा मिलती है."
अंजना, कविता और किरण जैसी महिला फ्रंटलाइन कार्यकर्ता, उन हज़ारों कार्यकर्ताओं का हिस्सा हैं, जो देश भर में ख]eमोशी से, निस्वार्थ सेवाएँ प्रदान कर रहें हैं, जिससे महामारी के दौरान वंचित तबके की महिलाओं और लड़कियों तक आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँच सकें.