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कोविड-19: महिलाओं की समान भागीदारी से ही मज़बूत पुनर्बहाली सम्भव - ब्लॉग

भारत में एक महिला, सौर ऊर्जा से खाना पकाने का तरीक़ा बता रही है.
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भारत में एक महिला, सौर ऊर्जा से खाना पकाने का तरीक़ा बता रही है.

कोविड-19: महिलाओं की समान भागीदारी से ही मज़बूत पुनर्बहाली सम्भव - ब्लॉग

महिलाएँ

लैंगिक असमानता की खाई पाटने और आर्थिक जीवन में महिलाओं के लिए समान भागीदारी के अवसरों को बढ़ावा देना कोविड संकट के बाद एक मज़बूत और अधिक समावेशी पुनर्बहाली के लिए अहम होगा. भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की उप-प्रतिनिधि, नादिया रशीद का ब्लॉग.

कोविड-19 महामारी ने विश्व स्तर पर एक अभूतपूर्व स्वास्थ्य और विकास संकट पैदा कर दिया है, जिससे जिन्दगियाँ, आजीविकाएँ और अर्थव्यवस्थाएँ तबाह हो गई हैं. दुनिया भर में महामारी से समाज में व्याप्त असमानताएँ खुल कर सामने आ गई हैं, आय और आजीविका के नुक़सान के साथ-साथ, ग़रीब और वंचित समुदायों को, बीमारी और मृत्यु का बोझ भी उठाना पड़ रहा है. घरों और समुदायों के भीतर, परिवार के सदस्यों की दैनिक ज़रूरतों और बीमार व असहाय लोगों की देखभाल की ज़िम्मेदारी महिलाओं और लड़कियों पर पड़ रही है, जिससे उनके भावनात्मक और शारीरिक शोषण का जोखिम भी बढ़ गया है.

लैंगिक असमानता का आर्थिक आयाम

रोज़गार और आजीविकाएँ बाधित होने की वजह से, महामारी के कारण लैंगिक असमानता के आर्थिक आयाम भी बढ़े हैं. भारत में शुरुआती आँकड़ों से पता चलता है कि इस व्यवधान का महिलाओं पर अधिक प्रभाव पड़ा है. एक अध्ययन के मुताबिक, संकट के दौरान 10 में से तीन पुरुषों की तुलना में, 10 में से चार महिलाओं का रोज़गार व आमदनी ख़त्म हो गए हैं. यह आँकड़ा विशेष रूप से ध्यान देने योग्य इसलिये भी है क्योंकि भारत में पहले से ही दुनिया में महिला श्रम शक्ति की सबसे कम दर – यानि कार्यबल में पुरूषों की 76 प्रतिशत भागीदारी के मुक़ाबले महिलाओं की भागेदारी 25 प्रतिशत से भी कम है. अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक अगर इस लैंगिक अन्तर को पाट दिया जाए, तो जीडीपी में 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी सम्भव है.

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कोविड-19 संकट के जवाब में एक प्रमुख प्राथमिकता है - रोज़गारों और आजीविकाओं का पुनर्निर्माण करना और कमज़ोर समुदायों पर पड़ने वाले सामाजिक व आर्थिक प्रभावों को कम करके, आर्थिक सुधारों के ज़रिये उनकी सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच बनाना. एक मज़बूत, टिकाऊ और सतत पुनर्बहाली सुनिश्चित करने के लिए इन प्रयासों में महिलाओं को समान भागीदारों और लाभार्थियों के रूप में सबसे आगे रखने की आवश्यकता है. लैंगिक असमानता की खाई पाटने और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की समान भागीदारी के अवसरों को बढ़ावा देने से ही मज़बूत और अधिक समावेशी पुनर्बहाली सम्भव होगी.

यूएनडीपी के प्रयास

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने पिछले पाँच वर्षों से, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का समर्थन करने की ख़ातिर नवीन दृष्टिकोण जाँचने के लिये सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के साथ मिलकर काम किया है. ‘आइकिया फाउण्डेशन’ द्वारा समर्थित ‘दिशा’ नामक कार्यक्रम के माध्यम से,पाँच राज्यों में रणनीति विकसित करने के साथ-साथ ऐसे समाधानों की शिनाख़्त की गई जिन्हें बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है. अपने पहले चरण में, ‘दिशा’ ने सफलतापूर्वक 10 लाख से अधिक महिलाओं और लड़कियों को कौशल, रोज़गार और उद्यमिता के अवसर प्रदान करने में सहायता की. 

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कोविड-19 प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति के सन्दर्भ में साझेदारी से उभरने वाली अन्तरदृष्टि, सीख और समाधान विशेष रूप से प्रासंगिक हैं. सबसे पहले, ‘दिशा’ के अनुभव से पता चलता है कि स्थानीय रोज़गारों और आजीविका में निवेश करना बेहद महत्वपूर्ण है - जिसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के माध्यम से - महिलाओं और कमज़ोर समुदायों के लिये दीर्घकालिक अवसरों तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है. महिलाओं को सामाजिक बाधाओं व आवाजाही में बन्धनों का सामना करना पड़ता है जो रोज़गार और उद्यमिता से लाभान्वित होने की उनकी क्षमता को प्रभावित करते हैं. घर के नज़दीक स्थानीय रोज़गार और आजीविका के अवसर, सामाजिक प्रतिबन्धों को कम करने और उन महिलाओं के लिये काम में उपयुक्त समय व लचीलापन लाने में मदद कर सकते हैं, जो घरेलू और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में सन्तुलन लाने के लिये ज़रूरी होते हैं. 

कौशल क्षमता विकास के ज़रिये तकनीकी ज्ञान बढ़ाने की आवश्कता

दूसरे, ‘दिशा’ पहल से ये स्पष्ट हो गया है कि रोज़गार के अवसरों का विस्तार करने और रोज़गारदाताओं की ज़रूरतों व कामकाज चाहने वालों की क्षमताओं के बीच बेहतर तालमेल बनाने के लिये विशेष कौशल कार्यक्रमों में निवेश करना बहुत ज़रूरी है. भविष्य में काम का स्वरूप बदल रहा है और कम्पनी मालिक 21वीं सदी के संचार, समस्या-समाधान व प्रौद्योगिकी साक्षरता जैसे  कौशल को महत्व दे रहे हैं. कोविड-19 संकट के कारण ‘डिजिटल डिवाइड’ असमानता बढ़ रही है और ऐसे कौशल कार्यक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता रेखांकित हो रही है जो तकनीकी उपकरणों व मंचों के साथ डिजिटल जानकारी बढ़ाएँ. इस तरह के कौशल कार्यक्रम ग़रीब महिलाओं और कमज़ोर समुदायों के लिये रोज़गार व आजीविका के अवसरों के विस्तार के लिये महत्वपूर्ण होंगे जिसमें ऑनलाइन बाज़ारों तक पहुँच की सुविधा, दूरसंचार के अवसर, ग़ैर-पारम्परिक कामकाज की भूमिका और उभरती हरित नौकरियाँ शामिल हैं.

महिला आत्मविश्वास में वृद्धि

तीसरा, ‘दिशा’ पहल ने पाया कि कमज़ोर महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके आत्मविश्वास में वृद्धि व उन्हें एकजुट करने से उनके कामकाज पाने या क़ायम रखने की क्षमता व सूक्ष्म उद्यम शुरू करने में सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है. साथ ही, इन रोज़गार और उद्यमिता कार्यक्रमों में स्थानीय सलाहकारों व मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों को शामिल करने से - कोविड-19 से सर्वाधिक प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों पर हुए असर को कम किया जा सकता है. साथ ही भविष्य में ऐसे संकटों से निपटने के लिये लचीलापन बनाने में उनकी मदद होती है. 

चूँकि हम भारत सरकार की कोविड -19 से निपटने की तत्कालिक सामाजिक-आर्थिक कार्रवाई में हिस्सा ले रहे हैं, इसलिये इन सभी तबकों से यूएनडीपी और भागीदारों को काम में मदद मिल रही हैं, जिससे कोविड संकट ख़त्म होने पर एक अधिक टिकाऊ भविष्य की दिशा में काम हो सके. महिलाओं की समान भागीदारी के साथ एक समावेशी प्रतिक्रिया और पुनर्बहाली सुनिश्चित करने से, विश्व स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों और किसी को भी पीछे न छोड़ने की हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता को दिशा व गति मिलेगी.