भुखमरी के बढ़ते दायरे से टिकाऊ विकास लक्ष्य के लिए गहराती चुनौती

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट दर्शाती है कि बीते पाँच वर्षों में भुखमरी व कुपोषण के विभिन्न रूपों का शिकार लोगों की संख्या में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है और कोविड-19 महामारी से यह समस्या और भी ज़्यादा विकराल रूप धारण कर सकती है. मौजूदा हालात में टिकाऊ विकास एजेण्डा के तहत भुखमरी का अन्त करने का लक्ष्य पाने का रास्ता और भी ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक सेहतमन्द आहार को किफ़ायती बनाने और करोड़ों लोगों तक उसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने से स्वास्थ्य ख़र्चों को घटाने में मदद मिल सकती है.
ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में 69 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार थे और 2018 की तुलना में इस आँकड़े में एक करोड़ लोगों की वृद्धि हुई है जबकि पिछले पाँच साल में यह छह करोड़ बढ़ी है.
690 million people suffer from chronic hunger. As more people go hungry & malnutrition persists around the🌎, achieving #ZeroHunger by 2030 is in doubt.We must transform our #FoodSystems to make #HealthyDiets affordable.📙 New UN Report👉🏽 https://t.co/tlnz98Qi5O#SOFI2020 pic.twitter.com/Y0x1ZZHeJw
FAO
ऊँची क़ीमतों और ख़र्च वहन करने की क्षमता ना होने पाने के कारण करोड़ों लोगों को सेहतमन्द और पोषक आहार नहीं मिल पा रहा है.
भुखमरी से पीड़ित लोगों की सबसे अधिक संख्या एशिया में है लेकिन अफ़्रीका में भी उनकी संख्या में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है.
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि कोविड-19 महामारी के कारण 13 करोड़ लोग इस वर्ष के अन्त तक भुखमरी के गर्त में धँस सकते हैं.
विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण के हालात की पड़ताल करती ‘State of Food Security and Nutrition in the World’ नामक यह रिपोर्ट भुखमरी और कुपोषण के ख़ात्मे के लक्ष्य में हुई प्रगति का भी मूल्याँकन करती है.
इस रिपोर्ट को खाद्य एवँ कृषि संगठन (UNFAO), अन्तरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मिलकर तैयार किया है.
इन पाँच यूएन एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में चेतावनी दी है कि हम भुखमरी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के सभी रूपों को मिटाने का संकल्प पाँच साल पहले लिये जाने के बाद वर्ष 2030 तक उसे पूरा करने के रास्ते से हट गए हैं.
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि वर्ष 2020 में महामारी के कारण लगाई गई पाबन्दियों और आर्थिक मन्दी से आठ से 13 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर सकते हैं. कोविड-19 से भुखमरी का अन्त करने पर आधारित टिकाऊ विकास एजेण्डा का दूसरा लक्ष्य (Zero Hunger) संशय के घेरे में आ सकता है.
एशिया में सबसे बड़ी संख्या में लोग अल्पपोषण का शिकार (38 करोड़) हैं जबकि अफ़्रीका का स्थान दूसरा (25 करोड़) है. इसके बाद लातिन अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्र (चार करोड़ 80 लाख) का नम्बर आता है.
भुखमरी के ख़िलाफ़ लड़ाई में प्रगति एक ऐसे समय में रुकती नज़र आ रही है जब विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण वैश्विक खाद्य प्रणालियों – भोजन के उत्पादन, वितरण और खपत से जुड़ी गतिविधियों और प्रक्रियाओं - की कमियाँ और निर्बलताएँ और ज़्यादा गहरी हो रही हैं.
जीवन जीने के लिए पर्याप्त भोजन सुनिश्चित करने से कहीं ज़्यादा अहम - भुखमरी व कुपोषण के सभी रूपों - जैसेकि अल्पपोषण, मोटापा, ज़रूरत से ज़्यादा वज़न होना - के ख़िलाफ़ लड़ाई में सफलता हासिल करना है.
लोग जिस आहार का सेवन करते हैं उसका पोषण होना भी आवश्यक है लेकिन इसके बावजूद महँगी क़ीमतों और उनका किफ़ायती ना होना एक बड़ा अवरोध है.
रिपोर्ट में पेश तथ्य दर्शाते हैं कि सेहतमन्द आहार की क़ीमत प्रतिदिन 1.90 अमेरिकी डॉलर – अन्तरराष्ट्रीय ग़रीबी रेखा - से कहीं ज़्यादा है. पोषण से परिपूर्ण डेयरी उत्पादों, फलों, सब्ज़ियों और प्रोटीन-युक्त भोजन विश्व भर में सबसे महँगे भोज्य पदार्थों में हैं.
यूएन एजेंसियों के अध्ययन के मुताबिक लगभग तीन अरब लोगों के पास अपने लिये सेहतमन्द आहार सुनिश्चित करने के साधन नहीं है.
सब-सहारा अफ़्रीका और दक्षिणी एशिया में 57 फ़ीसदी आबादी के लिये पौष्टिक आहार का सेवन एक बड़ी चुनौती है लेकिन उत्तर अमेरिका और योरोप सहित दुनिया का कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं है.
बताया गया है कि इसी वजह से दुनिया कुपोषण के ख़िलाफ़ लड़ाई में पिछड़ रही है.
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में पाँच साल से कम उम्र के 25-33 फ़ीसदी बच्चे (19 करोड़) नाटेपन और पर्याप्त विकास ना हो पाने के शिकार थे जबकि मोटापे की समस्या भी विकराल रूप धारण कर रही है.
रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर सेहतमन्द आहार पर ध्यान केन्द्रित किये जाने से लोगों को भुखमरी की दिशा में धकेले जाने से रोका जा सकता है और व्यापक बचत सुनिश्चित करना भी सम्भव है.
अस्वस्थ भोजन के सेवन के कारण स्वास्थ्य ख़र्च वर्ष 2030 में एक ट्रिलियन डॉलर से ज़्यादा पहुँचने का अनुमान है लेकिन खान-पान की आदतों में बदलाव लाकर इससे निपटा जा सकता है.
साथ ही आहार से सम्बन्धित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की अनुमानित सामाजिक क़ीमत डेढ़ ट्रिलियन डॉलर में भी भारी कमी लाना सम्भव है.
रिपोर्ट में मौजूदा खाद्य प्रणालियों की काया पलट करने का भी आग्रह किया गया है कि ताकि पोषक भोजन की क़ीमतों में कमी लाना और उसे ख़रीद पाना सम्भव हो.
वैसे तो ये बदलाव हर देश के सन्दर्भ के अनुरूप लाने होंगे लेकिन ऐसे हस्तक्षेप सम्पूर्ण खाद्य आपूर्ति श्रृंखला मे किये जाने के फ़ायदों की पैरवी की गई है.