वन्यजीव अपराधों से पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को बढ़ता ख़तरा

मादक पदार्थों एवँ अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) ने शुक्रवार को एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसमें वन्यजीवों की तस्करी से प्रकृति, जैवविविधिता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिये बढ़ते ख़तरे के प्रति आगाह किया गया है. अध्ययन के मुताबिक वन्यजीवों की तस्करी के लिए अब डिजिटल साधनों का भी सहारा लिया जा रहा है.
विश्व वन्यजीवन अपराध रिपोर्ट 2020 (World Wildlife Crime Report 2020) में पैंगोलिन, पक्षियों, कछुओं, बाघों, भालुओं और अन्य वन्य प्रजातियों तस्करी की समस्या पर ध्यान आकर्षित किया गया है.
No country is untouched by wildlife crime.Wildlife crime has negative implications for #climatechange, #biodiversity loss, #security & public #health.The 🆕 UNODC World Wildlife Crime Report calls for action to #EndWildlifeCrime 📒 https://t.co/ARJKxW6jnn pic.twitter.com/Am5CeSXnIc
UNODC
जब वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक पर्यावासों (Habitats) से हटाकर उनकी निर्ममता से हत्या की जाती है और उन्हें ग़ैरक़ानूनी रूप से बेचा जाता है तो इससे पशुजनित बीमारियाँ (Zoonotic diseases) फैलने की आशंका बढ़ जाती है. ऐसी बीमारियाँ वायरस पशुओं में से मनुष्यों तक पहुँचने के कारण बढ़ रही हैं.
पशुजनित बीमारियों को 75 फ़ीसदी उभरती संक्रामक बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार बताया गया है – इनमें नॉवल कोरोनावायरस भी है जिसके कारण दुनिया वैश्विक महामारी कोविड-19 की चपेट में है.
यूएन एजेंसी की कार्यकारी निदेशक ग़ादा वाली ने कहा कि पारदेशीय (Transnational) संगठित आपराधिक नैटवर्क इन वन्यजीव अपराधों का फ़ायदा उठा रहे हैं लेकिन इसकी सबसे बड़ी क़ीमत निर्धन लोग चुका रहे हैं.
वन्यजीवों और उनके उत्पादों की मानव उपभोग के लिए तस्करी में साफ़-सफ़ाई के मानकों का पालन नहीं होता जिससे संक्रामक बीमारियाँ फैलने का ख़तरा बढ़ जाता है.
कोविड-19 के पशुस्रोत का पता लगाने के लिए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ चीन की यात्रा कर रहे हैं.
कोरोनावायरस के फैलाव के सम्भावित स्रोत के रूप में देखे जाने वाले पैंगोलिन की बढ़ती तस्करी पर भी रिपोर्ट में जानकारी दी गई है.
पैंगोलिन की त्वचा को ढँकने वाले रक्षात्मक कवच की तस्करी बढ़ी है और वर्ष 2014 से 2018 तक ज़ब्त करने की मात्रा में दस गुना बढ़ोत्तरी हुई है. एक जंगली स्तनपायी जीव के रूप में पैंगोलिन की दुनिया में सबसे ज़्यादा तस्करी होती है.
पिछले एक दशक में तस्करी किये जाने वाले वन्यजीवों की छह हज़ार से ज़्यादा प्रजातियाँ ज़ब्त की गई हैं जिनमें स्तनपायी जीवों के अलावा रेंगने वाले जन्तु, पक्षी और मछलियाँ शामिल हैं.
150 से ज़्यादा देशों के लोगों पर तस्करी में शामिल होने का सन्देह जताया गया है जो इस चुनौती की व्यापकता को बयाँ करता है.
रिपोर्ट में शीशम, हाथी दाँत, गैण्डे के सींग, पैंगोलिन के कवच, जीवित सरीसृप और योरोपीय ईल सहित अन्य वन्यजीवों की ग़ैरक़ानूनी तस्करी के बाज़ार का भी विश्लेषण किया गया है.
रुझान दर्शाते हैं कि अफ़्रीकी हाथी दाँत और गैण्डे के सींग की माँग में गिरावट आई है, यानि उनकी तस्करी के लिये बाज़ार पहले के अनुमान की अपेक्षा में छोटा है. एक अनुमान के मुताबिक इन दोनों की तस्करी से वर्ष 2016 और 2018 के बीच प्रतिवर्ष 60 करोड़ का अवैध व्यापार हुआ.
पिछले दो दशकों में उष्णकटिबन्धीय देशों में मिलने वाली मज़बूत लकड़ी की माँग में तेज़ इज़ाफ़ा हुआ है.
इस बीच बाघ के उत्पाद ज़ब्त किये जाने के मामले भी बढ़े हैं.
वन्यजीवों का व्यापार अब डिजिटल माध्यमों पर भी हो रहा है और तस्कर जीवित रेंगने वाले जन्तुओं, बाघ की हड्डी के उत्पादों सहित अन्य उत्पाद बेचने के लिये ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म और सन्देश भेजने वाले ऐप्स का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
यूएन एजेंसी का मानना है कि वन्यजीव सम्बन्धी अपराधों को रोकना जैवविविधिता संरक्षण और क़ानून का शासन स्थापित करने के लिए बेहद अहम है. साथ ही इससे भविष्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य एमरजेंसी की रोकथाम करने में भी मदद मिलेगी.
रिपोर्ट दर्शाती है कि इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिये आपराधिक न्याय प्रणालियों को ज़्यादा मज़बूत बनाया जाना होगा और सीमा-पार जाँच को पुख़्ता बनाने के लिए अन्य क़दमों के साथ-साथ अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना होगा.
एजेंसी की प्रमुख ग़ाडा वाली ने कहा, “टिकाऊ विकास लक्ष्यों के अनुरूप लोगों और पृथ्वी की रक्षा करने और कोविड-19 संकट से बेहतर ढँग से उबरने के लिये वन्यजीवन अपराधों की उपेक्षा करने का जोखिम मोल नहीं लिया जा सकता.”
उन्होंने स्पष्ट किया कि ताज़ा रिपोर्ट के निष्कर्षों की मदद से इस ख़तरे को अन्तरराष्ट्रीय एजेण्डा पर बनाए रखने में मदद मिलेगी और ज़रूरी क़ानूनों के लिए सरकार की ओर से किये जाने वाले प्रयासों को समर्थन मिलेगा.
साथ ही वन्यजीव अपराधों की रोकथाम के लिये अन्तर-एजेंसी समन्वय और क्षमताएँ विकसित करने में मदद मिलेगी.