मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को समझने और निपटने के तरीक़ों में 'बदलाव लाने होंगे'

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने सदस्य देशों, नागरिक समाज, मनोवैज्ञानिक संगठनों और विश्व स्वास्थ्य संगठन से आग्रह किया है कि मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को समझने और उनसे निपटने के नज़रिये में बदलाव लाना होगा. विशेष रैपोर्टेयर डेनियस पूरस ने कहा कि मानसिक स्वास्थ देखभाल के मौजूदा मॉडल में दवाओं पर निर्भरता और मानसिक स्वास्थ्य मुश्किलों का सामना कर रहे लोगों को ख़तरनाक क़रार दिये जाने या उनकी मर्ज़ी के बिना ही उनका इलाज किये जाने पर ज़्यादा ज़ोर है जिससे अलग हटना होगा.
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार पर विशेष रैपोर्टेयर डेनियस पूरस ने मानवाधिकार परिषद में एक नई रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि कोविड-19 ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में क़ायम यथास्थिति की विफलताओं को और भी ज़्यादा गहरा बना दिया है.
स्वन्तत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ डेनियस पूरस ने कहा, “मैं मानसिक स्वास्थ्य को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता मिलने का स्वागत करता हूँ लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.”
UN expert Dainius Pūras urges States, civil society, psychiatric organisations, and @WHO to change the way we understand and respond to #MentalHealth challenges.Learn more: https://t.co/VL4Q1qzSvj#HRC44 pic.twitter.com/TIMnAJkrFW
UN_SPExperts
यूएन विशेषज्ञ के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य के मामले में पुरातन ‘विक्षिप्त या बुरा” जैसे ठप्पों या तरीक़ों से बाहर निकलना होगा जो “ख़तरनाक” समझ लिये जाने वाले उन व्यवहारों को रोकना चाहते हैं जिन्हें “मेडिकल नज़रिये से ज़रूरी” समझा जाता है और मरीज़ों की मर्ज़ी शामिल किये बिना ही उनका उपचार करना चाहते हैं.
विशेष रैपोर्टेयर पूरस ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि मौजूदा ढाँचे में बायोमेडिकल मॉडल का दबदबा है जिससे मेडिकल तरीक़ों और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे लोगों को भर्ती किये जाने पर ज़ोर दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि कुछ स्वास्थ्य समस्याओं जैसे कि बैक्टीरिया संक्रमण में दवाएँ ज़रूरी होती हैं लेकिन मनोत्तेजक दवाओं के फ़ायदों को बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जाता है जिनके प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है.
“मैं मनोत्तेजक दवाओं की भूमिका को समझने में हुई प्रगति की सराहना करता हूँ लेकिन यह भी मानता हूँ कि मानसिक स्वास्थ्य की हालत को समझने के लिये फ़िलहाल जैविक संकेतक उपलब्ध नहीं हैं.”
इसलिए अभी सरलता से नहीं बताया जा सकता कि किन मायनों में मनोत्तेजक दवाएँ असरदार होती हैं.
उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में क़ायम यथास्थिति पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि मौजूदा तन्त्र में सामाजिक, राजनैतिक और अस्तित्ववादी सन्दर्भ की उपेक्षा की गई है जिनकी वजह से लोगों में दुख, व्यग्रता, डर और मानसिक अवसाद के अन्य रूप देखने को मिलते हैं.
यूएन के विशेष रैपोर्टेयर ने आगाह किया कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में विसंगतियों, बायोमेडिकल मॉडल के दबदबे सहित अन्य ढाँचागत बाधाओं को दूर करने के लिए क़ानूनों, नीतियों और तरीक़ों में बदलाव की दरकार है.
उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में कार्रवाई और निवेश को अधिकार-आधारित सहारों में केन्द्रित करना होगा – ऐसे विकल्प जिन्हें बिना किसी दबाव के उपलब्ध कराया जाए और जिनके ज़रिये स्वास्थ्य के मनोसामाजिक निर्धारकों का ख़याल रखा जाए.
साथ ही देखभाल के ऐसे तरीक़े विकसित और मज़बूत करने होंगे जो अहिंसक, सदमे के प्रति जागरूक, सामुदायिक नेतृत्व में स्वास्थ्यप्रद और सांस्कृतिक रूप से सम्वेदनशील हों.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.