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मलेशिया के कुआलालम्पुर में एक वर्टिकल फ़ार्म में एक कर्मी.

बिज़नेस सैक्टर टिकाऊ विकास एजेण्डा की रफ़्तार में बहुत धीमा

Courtesy of VFarm
मलेशिया के कुआलालम्पुर में एक वर्टिकल फ़ार्म में एक कर्मी.

बिज़नेस सैक्टर टिकाऊ विकास एजेण्डा की रफ़्तार में बहुत धीमा

आर्थिक विकास

निजी क्षेत्र पर संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि इन्सानों और पृथ्वी ग्रह के लिए एक टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने के काम पर प्रगति बहुत धीमी है, और यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट में शामिल कम्पनियाँ संयुक्त राष्ट्र के 2030 टिकाऊ विकास एजेण्डा पर अमल करने के लिए समुचित क़दम नहीं उठा रही हैं. ये रिपोर्ट यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट ने जारी की है.

रिपोर्ट के लेखकों की टीम के मुखिया रेमी एरिक्सन का कहना है, “टिकाऊ विकास एजेण्डा पर अमल करने के लिए अभी तक तो यही नज़र आया है कि परिवर्तन का आकार व रफ़्तार काफ़ी या अपेक्षानुरूप तेज़ नहीं रही है.”

‘यूनाइटेड बिज़नेस इन द डैकेड ऑफ़ एक्शन’ नामक ये रिपोर्ट दर्शाती है कि जिन कम्पनियों में सर्वे किया गया उनमें से केवल 39 कम्पनियों ने ये भरोसा जताया कि उन्होंने जो लक्ष्य निर्धारित किये हैं वो 2030 का टिकाऊ विकास एजेण्डा हासिल करने के लिये काफ़ी महत्वकाँक्षी हैं.

रेमी एरिक्सन ने बताया, “केवल 46 प्रतिशत कम्पनियों ने अपने कारोबार के मूल में टिकाऊ विकास एजेण्डा को पिरोया है. एक तिहाई से भी कम कारोबारों का मानना है कि उनका उद्योग 2030 तक टिकाऊ विकास एजेण्डा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ज़रूरी रफ़्तार के साथ आगे बढ़ रहा है.” 

कम्बोडिया की एक फ़ैक्ट्री की एसेम्बली लाइन में कर्मचारी.
ILO/Marcel Crozet
कम्बोडिया की एक फ़ैक्ट्री की एसेम्बली लाइन में कर्मचारी.

रेमी एरिक्सन का कहना है कि टिकाऊ विकास एजेण्डा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिये अलग-थलग रूप में कम्पनियों द्वारा किये गए प्रयासों व बदलावों से वांछित परिणाम हासिल नहीं होंगे. “कम्पनियाँ और उनकी व्यापक प्रणालियाँ आमतौर पर एक ही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन अब भी पूरी तरह से समन्वित व ठोस प्रयास नज़र नहीं आ रहे हैं.”

उन्होंने कहा कि वांछित बदलाव हासिल करने के लिए तमाम कम्पनियों द्वारा अपनी महत्वकांक्षाएँ बढ़ाने की ज़रूरत है, चाहे वो कम्पनियाँ ऊर्जा, स्वास्थ्य देखभाल, खाद्य उत्पाद, वित्तीय सेवाएँ, परिवहन या फिर किसी अन्य क्षेत्र में काम करती हों. 

केवल नीतियाँ पर्याप्त नहीं

रेमी एरिक्स ने यूएन न्यूज़ को बताया कि इस सर्वे में शिरकत करने वाली 93 प्रतिशत कम्पनियों ने अपने यहाँ ग्लोबल कॉम्पैक्ट के दस सिद्धान्त अपनी नीतियों में शामिल किये हैं जो मानवाधिकार, श्रम वातावरण और भ्रष्टाचार विरोधी माहौल के बारे में हैं. लेकिन उन्हें लागू करने के लिए समुचित क़दम नहीं उठाए जा रहे हैं.

“परिवर्तन लाने के लिए केवल नीतियाँ बना देना भर काफ़ी नहीं है, और हम देखते हैं कि नीतियाँ बनाकर उन्हें लागू करने और सिद्धान्तों पर अमल करने के बीच काफ़ी अन्तर बना हुआ है.”

रेमी एरिक्सन के अनुसार ज़्यादातर कम्पनियाँ टिकाऊ विकास एजेण्डा की महत्ता को तो स्वीकार करती हैं, मगर, पर्यावरण पर उनके नकारात्मक असर को कम करने के लिए वो समुचित क़दम नहीं उठा रही हैं.

आशा की किरण

धीमी प्रगति व कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक व्यवधान के बावजूद रेमी एरिक्सन का ज़ोर देकर कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि महामारी के बाद की नव सामान्य स्थिति सभी के लिये एक बेहतर भविष्य बनाने में कुछ सुधार लेकर आएगी.

“मैं दो महीने पहले की तुलना में, अब भविष्य को लेकर ज़्यादा आशान्वित हूँ, क्योंकि मैंने देखा है कि कारोबारी संगठनों ने अपने ग्राहकों की ज़रूरतें पूरी करने और असाधारण वातावरण में काम जारी रखने के लिये नए समाधान तलाश करने के वास्ते किस तरह अपने अनुभव, रचनात्मकता और पक्के इरादे से काम लिया है.”

“पिछले वर्ष – जलवायु मुद्दे पर कार्रवाई के अभाव के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते स्कूली बच्चों से लेकर महामारी से उत्पन्न आर्थिक मन्दी और डर, और हाल ही में न्याय व समानता की माँग तक, जैसी घटनाओं ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है.

इन घटनाओं से पता चलता है कि टिकाऊ विकास लक्ष्य केवल कोई वांछित आदर्श नहीं हैं, बल्कि एक न्यायसंगत समाज बनाने के लिए बुनियादी ज़रूरतें हैं जिसके ज़रिये पृथ्वी पर रहने वाले सभी इन्सानों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराए जाएँ और ख़ुद पृथ्वी ग्रह को भी रहने योग्य रखा जाए.”