कोविड-19: विश्व शान्ति और सुरक्षा पर ख़तरा बरक़रार
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि कोविड-19 महामारी से वैश्विक शान्ति और सुरक्षा पर गहरा असर पड़ा है और दुनिया अनेक मोर्चों पर संकट का सामना कर रही है. उन्होंने कोविड-19 से उपजे हालात के बारे में गुरूवार को सुरक्षा परिषद को अवगत कराते हुए कहा कि आज लोगों की ज़िन्दगियाँ बचाना और भविष्य के लिए सुरक्षा के स्तम्भों को मज़बूती से खड़ा करना असल चुनौती है.
इस साल के अन्त तक 13 करोड़ से ज़्यादा लोगों के भुखमरी के कगार पर पहुँचने की आशंका है. एक अरब से ज़्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. नियमित टीकाकरण सेवाओं में अभूतपूर्व व्यवधान आया है जिससे ख़सरा और पोलियो जैसी बीमारियों के व्यापक स्तर पर फैलने का ख़तरा पैदा हो गया है.
यूएन प्रमुख ने बताया कि कोविड-19 महामारी के दुष्परिणाम उन देशों में भी देखे जा सकते हैं जिन्हें आमतौर पर ‘स्थायित्वपूर्ण’ माना जाता है लेकिन पहले से ही हिंसक संघर्ष से पीड़ित या फिर उससे उबर रहे देशों में ये और भी गहरे हैं.
उन्होंने कहा कि कोविड-19 संकट से सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ पैदा हुई हैं जिनसे तनाव बढ़ा है, साथ ही जिन देशों में स्वास्थ्य प्रणालियाँ इस चुनौती से पुख़्ता ढँग से नहीं निपट पाईं, उन देशों में सार्वजनिक संस्थाओं में भरोसा घटा है.
“कुछ देशों में नाज़ुक शान्ति प्रक्रिया इस संकट के कारण पटरी से उतर सकती है, विशेषत: अगर अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान बँटा हुआ हो. अन्य स्थानों पर आतंकवादी और हिंसक चरमपंथी गुट महामारी के कारण उत्पन्न अनिश्चितता को अपने लिए फ़ायदे के तौर पर देखते हैं.”
मौजूदा संकट के कारण कई देशों ने वर्ष 2020 में अपने चुनाव कार्यक्रम आगे बढ़ा दिये हैं. इस वर्ष मार्च से 18 चुनाव या जनमत संग्रह सम्पन्न हुए हैं लेकिन 24 स्थगित किये गए हैं और 39 की तारीख़ों में फ़िलहाल कोई बदलाव नहीं हुआ है.
मानवाधिकारों पर संकट
यूएन प्रमुख ने कहा कि महामारी से मानवाधिकारों के लिए पहले से ही मौजूद चुनौतियाँ और ज़्यादा गहरी हुई हैं.
“हमने लॉकडाउन, करफ़्यू और अन्य पाबन्दियों के लिये उठाए गए उपायों में पुलिस द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग देखा है. सर्वसत्तावाद बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है और मीडिया, नागरिक समाज व अभिव्यक्ति की आज़ादी सीमित हो रही है.”
उन्होंने कहा कि लोकलुभावन वादे करने वाले और राष्ट्रवादी नेता पहले से मानवाधिकारों को कमज़ोर करना चाह रहे थे और अब इस महामरी ने उन्हें दमनकारी उपायों के लिए एक बहाना दे दिया है.

इन हालात में पहले से मौजूद पीड़ाएँ व विषमताएँ और ज़्यादा गहरा गई हैं जिनसे अस्थिरता व हिंसा का जोखिम बढ़ रहा है. महिलाएँ विशेष रूप से प्रभावित हुई हैं और उनके ख़िलाफ लिंग आधारित व घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.
साथ ही नफ़रत भरे भाषणों व सन्देशों में भी तेज़ी आई है, ग़लत सूचनाओं व जानकारी की महामारी भी फैल रही है.
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उन्होंने बताया कि झूठी व नुक़सानदेह सूचना को फैलने से रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने ‘वैरीफ़ाइड’ नामक एक मुहिम शुरू की है ताकि संकट के दौरान लोगों तक भरोसेमन्द और सटीक जानकारी पहुँच सके.
जवाबी कार्रवाई
उन्होंने ध्यान दिलाया कि 180 सदस्य देशों और एक ग़ैर-सदस्यीय पर्यवेक्षक, 20 से ज़्यादा हथियारबन्द गुटों व अन्य संगठनों और 800 से अधिक नागरिक समाज संगठनों ने वैश्विक युद्धविराम की अपील का समर्थन किया है.
हिंसक संघर्ष से हटकर बीमारी से निपटने पर ध्यान केन्द्रित किये जाने की इस अपील के कुछ सकारात्मक नतीजे देखने को मिले हैं लेकिन कुछ मामलों में यह प्रभावी नहीं रही है.
यूएन शान्तिरक्षा व राजनैतिक मिशनों और कर्मचारियों की सुरक्षा के लिये और वायरस के फैलाव की रोकथाम के लिए अनेक क़दम उठाए गए हैं
उन्होंने स्पष्ट किया कि वैश्विक मानवीय जवाबी कार्रवाई योजना के ज़रिये 63 देशों में तत्काल स्वास्थ्य और मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन इस योजना के लिए ज़रूरी धनराशि का 21 फ़ीसदी हिस्सा ही उपलब्ध हो पाया है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि वैश्विक महामारी के शुरुआती दिनों से ही संयुक्त राष्ट्र ने व्यापक कार्रवाई को आगे बढ़ाया है – इसके तहत ज़रूरतमन्द देशों तक मेडिकल और राहत सामग्री भेजी गई है, आर्थिक व वित्तीय राहत पैकेज की पैरवी की गई है और एमरजेंसी जैसे हालात में समस्या के विभिन्न आयामों से निपटने के लिए नीतिगत विश्लेषण प्रदान किया गया है.
उन्होंने कहा कि एक निर्मम बीमारी के कारण विश्व में नाज़ुक हालात को और ज़्यादा बल मिला है जिसके कारण सामूहिक सुरक्षा और हमारे साझा कल्याण पर अनेक दिशाओं से हमला हो रहा है.
महासचिव के मुताबिक आज चुनौती लोगों की ज़िन्दगियों को बचाना और कल के लिए सुरक्षा के स्तम्भों को मज़बूती से खड़ा करना है.
उन्होंने आगाह किया कि लैंगिक समानता, शिक्षा और अन्य आर्थिक सैक्टरों के लिए शुरू की गई पहलों से संसाधन नहीं हटाए जा सकते. इनसे महिला अधिकारों, और राजनैतिक व शान्ति प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी पर असर पड़ने की आशंका है.