वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

ईरान परमाणु समझौता - शान्ति सुनिश्चित करने का सबसे कारगर उपाय 

संयुक्त राष्ट्र में राजनैतिक और शांतिनिर्माण मामलों के लिए अवर महासचिव रोज़मैरी डिकार्लो.
UN Photo/Loey Felipe
संयुक्त राष्ट्र में राजनैतिक और शांतिनिर्माण मामलों के लिए अवर महासचिव रोज़मैरी डिकार्लो.

ईरान परमाणु समझौता - शान्ति सुनिश्चित करने का सबसे कारगर उपाय 

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र में राजनैतिक और शान्ति निर्माण मामलों की प्रभारी और अवर महासचिव रोज़मैरी डिकार्लो ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर हुए समझौते – साझा व्यापक कार्ययोजना (Joint Comprehensive Plan of Action) - के भविष्य पर मँडराते सन्देह पर खेद जताया है. लेकिन उन्होंने ध्यान दिलाया कि मौजूदा चुनौतियों के बावजूद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को शान्तिपूर्ण बनाए रखने के लिए यही सर्वश्रेष्ठ रास्ता है. 

वर्ष 2015 में ईरान ने परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद के पाँच स्थाई सदस्यों - अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्राँस, रूस, चीन - और जर्मनी के साथ एक समझौते पर सहमति जताई थी. 

Tweet URL

इस समझौते को सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव 2231 के तहत समर्थन दिया था.

राजनैतिक और शान्तिनिर्माण मामलों के लिए अवर महासचिव रोज़मैरी डिकार्लो ने मंगलवार को सुरक्षा परिषद को बताया कि वर्ष 2015 में हुआ समझौता वैश्विक परमाणु अप्रसार तन्त्र और क्षेत्रीय व अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अहम है. 

“इसलिए यह खेदजनक है कि इस समझौते का भविष्य सन्देह के घेरे में है.”

उनका मंतव्य वर्ष 2018 में परमाणु समझौते से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के पीछे हटने, अमेरिकी प्रतिबन्ध फिर लगाए जाने और ईरान के साथ तेल व्यापार पर छूट को आगे ना बढ़ाए जाने से था. 

उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिका के पीछे हटने के बाद ईरान ने भी यूरेनियम संवर्धन की मात्रा, भारी जल और कम संवर्धित यूरेनियम के भण्डारण, परमाणु रीसर्च और विकास के लिए तयशुदा सीमाओं को पार किया है जिसका उल्लेख कार्ययोजना में किया गया था.

अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नज़र रखती है. 

उन्होंने ईरान से साझा कार्ययोजना को पूर्ण रूप से फिर लागू किए जाने और अन्य देशों द्वारा व्यक्त की गई चिन्ताओं को दूर करने की अपील की है. 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा ईरान पर हथियारों की ख़रीद पर लगी रोक की अवधि इस वर्ष 18 अक्टूबर को समाप्त हो रही है. 

हमलों में ईरान की 'संलिप्तता'

अवर महासचिव डिकार्लो ने कहा कि तकनीकी तथ्यों और ईरान द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर सचिवालय का विश्लेषण दर्शाता है कि वर्ष 2019 में सऊदी अरब में हुए एक हमले में इस्तेमाल होने वाली क्रूज़ मिसाइल, डेल्टा विंग ड्रोन या उनके पुर्ज़ों का स्रोत ईरानी था. 

ये भी पढ़ें - इसराइल: ईरान को परमाणु हथियार बनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती

उन्होंने कहा कि सचिवालय को हथियारों और सम्बन्धित सामग्री को कथित रूप से ईरान से हस्तान्तरित किये जाने के सिलसिले में ऑस्ट्रेलिया, इसराइल, सऊदी अरब से सूचना हासिल हुई थी. इस क्रम में सुरक्षा परिषद को आने वाले समय में और ज़्यादा जानकारी प्रदान की जा सकती है. 

“JCPOA की मौजूदा चुनौतियों के बावजूद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को शान्तिपूर्ण बनाए रखने के लिए यही सर्वश्रेष्ठ रास्ता है. इसे पूर्ण रूप से लागू करने और प्रस्ताव 2231 का ईमानदारी से पालन करना क्षेत्रीय स्थिरता की बुनियादी ज़रूरत है.”

प्रतिबन्ध जारी रखने की पुकार

सुरक्षा परिषद में चर्चा के दौरान अमेरिकी विदेश मन्त्री माइकल पोम्पेयो ने ईरान को दुनिया की सबसे जघन्य आतंकवादी व्यवस्था क़रार दिया. उन्होंने कहा कि अमेरिका पूरे मन से सुरक्षा परिषद के साथ मिलकर उन प्रतिबन्धों को आगे बढ़ाना चाहता है जो परिषद ने वर्ष 2017 में प्रस्ताव 1747 के तहत लगाए थे. 

“आप सिर्फ़ मेरी या अमेरिका की बात ना सुनिए...इसराइल से खाड़ी तक, मध्य पूर्व के देश, जो ईरान के परभक्षण (Predation) से पीड़ित हैं, वो भी एक आवाज़ में बोल रहे हैं: हथियारों पर लगी रोक को आगे बढ़ाइए.”

“उन आवाज़ों को सुनना इस परिषद का दायित्व है.” 

उन्होंने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि अगर हथियारों पर लगी रोक की अवधि को ख़त्म होने दिया जाता है तो फिर ईरान रूसी लड़ाकू विमानों को ख़रीदने, पनडुब्बी बेड़े को मज़बूत करने, मध्य पूर्व में अपने सहयोगियों के साथ नई सैन्य टैक्नॉलॉजी को साझा करने के लिए आज़ाद होगा जिससे क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता पर तलवार लटकी रहेगी. 

“हमने पिछले 13 साल से ईरान के लिए हथियारों पर रोक विभिन्न रूपों में लगाए रखी है और इसकी अच्छी वजह है जिसका ठोस असर हुआ है.”

अमेरिकी दबाव से परहेज़ का आग्रह 

ईरान के विदेश मन्त्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने कहा कि अगर सुरक्षा परिषद लड़खड़ाती है तो यह बहुपक्षवाद और क़ानून के राज के लिए एक पीढ़ीगत विफलता होगी. और इसकी वजह अन्तरराष्ट्रीय संगठनों को डराने-धमकाने की अमेरिकी मुहिम होगी. 

यूएन परमाणु ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने ध्यान दिलाया कि ईरान कार्ययोजना का अनुपालन करता आया है. इसके तहत ईरान ने ईमानदारी से अपने संकल्प पूरे किये हैं जबकि अमेरिका और उसके साथियों ने सचिवालय पर प्रस्ताव 2231 की एकपक्षीय व्याख्या करने के लिए दबाव बनाया है. 

ईरानी विदेश मन्त्री ने आगाह किया कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय और सुरक्षा परिषद को अब अपना विकल्प चुनना है – क़ानून के राज के लिए सम्मान को बरक़रार रखा जाए या फिर जंगल राज में फिर लौटा जाए जहाँ डराने-धमकाने वाले दबंग के सामने आत्मसमर्पण कर दिया जाता है. 

उन्होंने स्पष्ट किया कि बहुत लम्बे समय से अन्तरराष्ट्रीय समुदाय और परिषद द्वारा अमेरिका के ग़लत कृत्यों के लिए जवाबदेही तय करने की ज़रूरत है, इनमें मध्य पूर्व में पिछले तीन दशकों में तीन युद्ध और ईरान के ख़िलाफ़ आर्थिक आतंकवाद शामिल हैं.