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पाकिस्तान: मानवाधिकार कार्यकर्ता की जबरन गुमशुदगी पर यूएन विशेषज्ञों का क्षोभ

हेती की एक जेल में बन्द एक लड़का बाहर की दुनिया से सम्पर्क बनाने की कोशिश करता हुआ, तस्वीर 2005 की है.
© UNICEF/Roger LeMoyne
हेती की एक जेल में बन्द एक लड़का बाहर की दुनिया से सम्पर्क बनाने की कोशिश करता हुआ, तस्वीर 2005 की है.

पाकिस्तान: मानवाधिकार कार्यकर्ता की जबरन गुमशुदगी पर यूएन विशेषज्ञों का क्षोभ

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में लापता मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीस खटक के बारे में सरकार द्वारा जानकारी सार्वजनिक किये जाने का स्वागत किया है, लेकिन सात महीने से भी पहले उनके अचानक जबरन ग़ायब होने की घटना की कड़ी निन्दा भी की है. मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीस खटक को आख़िरी बार 13 नवम्बर 2091 को तब देखा गया था जब सुरक्षा एजेण्टों ने ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रान्त के स्वाबी इन्टरचेन्ज इलाक़े के पास उनकी कार को रोका था. 

16 जून 2020 को पाकिस्तानी अधिकारियों ने पहली बार स्वीकार किया कि इदरीस खटक देश में ही क़ानून एजेंसियों की हिरासत में हैं लेकिन उनका तभी से बाहरी दुनिया से सम्पर्क नहीं है. 

यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि मानवाधिकार कार्यकर्ता इदरीस खटक को सात महीने से ज़्यादा समय पहले जबरन ग़ायब किया जाना उनके कामकाज पर असहनीय हमला है. 

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ग़ौरतलब है कि इदरीस खटक ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और पूर्ववर्ती संघीय रूप से संचालित क़बायली इलाक़ों में मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार हनन के मामलों की निगरानी और सबूत एकत्र करते रहे हैं. 

“जबरन गुमशुदगी का इस्तेमाल सरकार की ओर से अब भी हो रहा है और इससे हम बेहद चिन्तित हैं. देश में हज़ारों की संख्या में मामले अनुसलझे हैं.”

“हम इदरीस खटक को अगवा किये जाने और बिना किसी सम्पर्क के उन्हें हिरासत में रखने की एक त्वरित और निष्पक्ष जाँच की माँग करते हैं और इसके लिये ज़िम्मेदार लोगों पर मुक़दमा चलाने की भी.”

यूएन के विशेष रैपोर्टेयरों ने पाकिस्तान में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को डराए-धमकाए जाने, उन्हें गुप्त ढँग से हिरासत में रखे जाने, यातना और जबरन ग़ायब कराए जाने की कड़ी निन्दा की है.

उन्होंने कहा कि यह व्यापक स्तर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की आवाज़ को दबाने की कोशिश है, चाहे इसमें पाकिस्तान सरकार सीधे तौर पर शामिल हो या फिर सन्तुष्ट होकर बैठी हो. 

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने क्षोभ जताया कि इदरीस खटक को उन बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रखा गया है जिनका क़ानून में प्रावधान है और उनके जबरन ग़ायब होने से उन्हें और उनके परिवार को गम्भीर व लम्बे समय से जारी ऐसी पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है जिसे यातना की श्रेणी में रखा जा सकता है. 

“इदरीस खटक को जिस मनमाने ढंग से गिरफ़्तार किया गया और उन्हें हिरासत में रखा गया है, और ऐसा करते समय जिस तरह से प्रक्रियात्मक अधिकारों और उनकी सत्यनिष्ठा का हनन हुआ है, उसे ध्यान में रखते हुए हम पाकिस्तान सरकार से उन्हें तत्काल रिहा करने की माँग करते हैं और उन्हें व उनके परिवार के लिए इसकी भरपाई करने व पर्याप्त पुनर्वास के इन्तज़ाम का आग्रह करते हैं.”

जबरन गुमशुदगी का लम्बा इतिहास

पाकिस्तान में लोगों को जबरन ग़ायब कराए जाने की घटनाएँ लम्बे समय से होती रही हैं जिनमें अक्सर सरकार और सेना की आलोचना करने वाले और मानवाधिकारों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ रहे और विपक्षी पार्टियों के कथित तौर पर नज़दीकी कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जाता है. 

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पाकिस्तान में अनेक सरकारों ने जबरन गुमशुदगी को अपराध क़रार दिए जाने के वादे किये हैं लेकिन इस दिशा में अभी तक ठोस प्रयास नहीं किये गये हैं और यह अब भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है. 

विशेष रैपोर्टेयरों ने ज़ोर देकर कहा कि पाकिस्तान सरकार जबरन गुमशुदगी के मामलों को रोक पाने में विफल रही है और इसे किसी भी ढंग से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. मानवाधिकार उल्लंघन के इस तरह के हर मामले की जाँच की जानी चाहिए और दोषियों को दण्ड मिलना होगा. 

विशेष रैपोर्टेयर ने बताया कि लोगों को सच का पता लगना चाहिए और न्याय होना चाहिए. इदरीस खटक के साथ-साथ अनगिनत पीड़ितों व उनके परिवारों के लिए भी. 

राज्य-सत्ता द्वारा प्रायोजित गुमशुदगी और दण्डमुक्ति को मानवता के ख़िलाफ़ अपराध भी समझा जा सकता है और इसे अभी रोका जाना होगा.  

यूएन के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के मुताबिक जबरन और अस्वैच्छिक गुमशुदगी पर पाकिस्तान के आयोग ने इस मामले को अपने संज्ञान में लिया है और एक अपील जारी करके आयोग से जवाबदेही सुनिश्चित करने का आग्रह किया है. 
 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतन्त्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.