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निगरानी के लिए डिजिटल टैक्नॉलॉजी के अभूतपूर्व इस्तेमाल पर चिन्ता

निगरानी के लिए टैक्नॉलजी पर निर्भरता से निजता के अधिकारों पर असर पड़ा है.
Unsplash/Ian Usher
निगरानी के लिए टैक्नॉलजी पर निर्भरता से निजता के अधिकारों पर असर पड़ा है.

निगरानी के लिए डिजिटल टैक्नॉलॉजी के अभूतपूर्व इस्तेमाल पर चिन्ता

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने देशों और व्यवसायों से आग्रह किया है कि डिजिटल टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल करते समय यह सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है कि इससे लोगों के शान्तिपूर्ण ढँग से एकत्र होने, अभिव्यक्ति की आज़ादी और सार्वजनिक मुद्दों में भागीदारी से सम्बन्धित बुनियादी अधिकारों का हनन ना हो.

ग़ौरतलब है कि हाल के समय में चेहरे की शिनाख़्त करने (Facial recognition) सहित अन्य टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है.

प्रदर्शनकारियों पर क़ाबू पाने के लिए पुलिस लाठी, स्प्रे और आँसू गैस का कई दशकों से इस्तेमाल करती रही है लेकिन टैक्नॉलॉजी बेहतर होने के बाद अब कम घातक हथियार भी काम में लाए जा रहे हैं. 

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इनमें इलैक्ट्रिक हथियार जैसे टेज़र गन, ड्रोन, रबड़ या प्लास्टिक की गोलियाँ और ऐसी स्वचालित प्रणालियाँ शामिल हैं जिनसे आँसू गैस छोड़ी जा सकती है.  

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि लोग नई टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल संगठित होने, शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों का आयोजन करने और उनके बारे में जारी हासिल करने, नैटवर्क स्थापित करने में कर रहे हैं जिससे सामाजिक स्तर पर बदलाव आ रहा है. 

“लेकिन जैसाकि हमने पहले देखा है, उनका इस्तेमाल प्रदर्शनकारियों के अधिकारियों को सीमित करने, हनन करने, निगरानी करने, नज़र रखने और निजता के उल्लंघन में भी किया जा सकता है.” 

गुरुवार को यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें शान्तिपूर्ण सभाओं के सन्दर्भ में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने, उनकी रक्षा करने के प्रयासों पर डिजिटल टैक्नॉलॉजी के असर की पड़ताल की गई है.

रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019 में दुनिया भर में अनेक मुद्दों पर प्रदर्शन हुए हैं जिनमें ढाँचागत प्रणालियाँ, नस्लीय भेदभाव, बदहाल सामाजिक-आर्थिक हालात जैसी वजहें शामिल हैं. यह असन्तोष वर्ष 2020 में भी जारी है. 

मानवाधिकार उच्चायुक्त के मुताबिक लोकतन्त्र में लोगों को शान्तिपूर्ण सभाएँ आयोजित करने का अधिकार है और इसमें इंटरनेट आधारित टैक्नॉलॉजी अहम भूमिका अदा कर सकती है. इसलिए डिजिटल खाई को पाटना और इंटरनेट सुविधा को सभी के लिए किफ़ायती और सुलभ बनाना महत्वपूर्ण होगा. 

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उन्होंने कहा कि देशों को इंटरनेट पर पाबन्दियाँ लगाने से बचना होगा क्योंकि इससे ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, दोनों तरह से शान्तिपूर्ण ढँग से एकत्र होने के अधिकार का हनन होता है. साथ ही इंटरनेट को बन्द किए जाने से व्यापक पैमाने पर अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है. 

निगरानी के लिए टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि लोगों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे अनेक देशों में नागरिक समाज के लिए स्थान सिकुड़ रहा है.

प्रदर्शनों की योजना बनाने वाले लोगों और प्रदर्शनकारियों की ऑनलाइन निगरानी के लिए सूचना तकनीक के औज़ारों का इस्तेमाल हो रहा है और उनकी निजता को भँग किया जा रहा है.  

रिपोर्ट में ख़ास तौर पर चेहरे की शिनाख़्त (Facial recognition) के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली टैक्नॉलॉजी का ज़िक्र किया गया है जिससे प्रदर्शनकारियों की निगरानी और उनसे सम्बन्धित जानकारी जुटाई जाती है.

इस वजह से बहुत से लोग सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनों में हिस्सा लेने या अपने विचारों को अभिव्यक्त करने से बच रहे हैं क्योंकि उन्हें पहचाने जाने और उसके नकारात्मक नतीजों की फ़िक्र है.

इसके अलावा, इस टैक्नॉलॉजी से भेदभाव को बढ़ावा मिलने, विशेषत: अफ़्रीकी मूल के व्यक्तियों और अल्पसंख्यक समुदायों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने की भी आशंका है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों को चेहरे की शिनाख़्त करने वाली टैक्नॉलॉजी का इस्तेमाल शान्तिपूर्ण प्रदर्शनाकारियों के ख़िलाफ़ करने से बचना चाहिए और आपराधिक गतिविधियों को छोड़कर उनकी रिकॉर्डिंग नहीं की जानी चाहिए.

रिपोर्ट में शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों के सन्दर्भ में ऐसी टैक्नॉलॉजी के इस्तेमाल पर स्वैच्छिक रोक की भी पुकार लगाई है या फिर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कुछ शर्तों के साथ ही इसका इस्तेमाल होना चाहिए.

इनमें टैक्नॉलॉजी के इस्तेमाल के निरीक्षण की असरदार प्रक्रिया, निजता और डेटा सुरक्षा के सख़्त क़ानून और सभाओं के सन्दर्भ में रिकॉर्डिंग के लिए पारदर्शिता बरता जाना शामिल है.