कोविड-19: दक्षिण एशिया में 60 करोड़ बच्चों के जीवन में उलट-पुलट

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 दक्षिण एशियाई देशों में बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में हुई प्रगति के लिए संकट का कारण बन रही है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ने मंगलवार को जारी अपनी नई रिपोर्ट में देशों की सरकारों से त्वरित कार्रवाई का आग्रह किया है ताकि एक पूरी पीढ़ी की आशाओं और आकाँक्षाओं को बर्बाद होने से बचाया जा सके. महामारी दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश सहित अन्य देशों में तेज़ी से फैल रही है जहाँ विश्व की क़रीब एक चौथाई आबादी रहती है.
‘Lives Upended’ रिपोर्ट दर्शाती है कि वायरस और उससे निपटने के लिए लागू की गई पाबन्दियों से 60 करोड़ बच्चों और उन सेवाओं पर तात्कालिक और दीर्घकालीन असर पड़ा है जिन पर वे निर्भर हैं, और इससे उनकी मुश्किलें बढ़ी हैं.
Decades of progress on children’s health and education risks being wiped out by #COVID19.Find out the actions #UNICEF is calling on governments in South Asia to take to avoid devastating long-term impacts.Read more: https://t.co/4Sh4CEOJz6#LivesUpended
UNICEFROSA
दक्षिण एशिया क्षेत्र के लिए यूनीसेफ़ की निदेशक जीन गॉफ़ ने कहा दक्षिण एशिया में वैश्विक महामारी के कारण की गई तालाबन्दी और अन्य ऐहतियाती उपाय बच्चों के लिए तक़लीफ़देह साबित हुए हैं.
“लेकिन आर्थिक संकट का दीर्घकालीन प्रभाव पूर्ण रूप से एक दूसरे ही स्तर पर होगा. अभी तत्काल कार्रवाई के अभाव में, कोविड-19 महामारी एक पूरी पीढ़ी की उम्मीदों और भविष्य को तबाह कर सकती है.”
रिपोर्ट दर्शाती है कि वायरस के कारण दक्षिण एशिया में 60 करोड़ से ज़्यादा बच्चों के लिए नई चुनौतियाँ पैदा हो गई हैं – खाद्य असुरक्षा, पोषण, टीकाकरण और अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान आने से अगले छह महीनों के भीतर साढ़े चार लाख से ज़्यादा बच्चों के जीवन के लिए संकट उत्पन्न होने की आशंका है.
स्कूलों में तालाबन्दी से 43 करोड़ बच्चों को घर बैठकर ही पढ़ाई करने के लिए मजबूर होना पड़ा है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में हालात चिन्ताजनक हैं क्योंकि वहाँ अक्सर इन्टरनेट और बिजली सेवाओं का अभाव है.
साथ ही ये आशंका भी बढ़ रही है कि कोविड-19 से पहले ही स्कूली शिक्षा से वंचित तीन करोड़ से ज़्यादा बच्चों की सँख्या में बढ़ोत्तरी हो सकती है.
यह संकट एक ऐसे समय में खड़ा हो रहा है जब बच्चों में मानसिक अवसाद के मामले बढ़ रहे हैं और हैल्पलाइन पर टेलीफ़ॉन कॉल की सँख्या बढ़ रही है. घरों तक सीमित रह जाने के कारण अक्सर उन्हें हिंसा और दुर्व्यवहार का भी शिकार होना पड़ रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक ख़सरा, पोलियो और अन्य बीमारियों से रक्षा के लिए टीकाकरण अभियान फिर शुरू किये जाने होंगे और इसके समानान्तर उन 77 लाख बच्चों की मदद करनी होगी जिनका पूर्ण रूप से शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पा रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जितना जल्दी सम्भव हो, स्कूल फिर खोले जाने चाहिए लेकिन हाथ धोने और शारीरिक दूरी बरते जाने की सभी सावधानियों के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जानी होगी.
कोविड-19 के कारण आर्थिक झटकों से पूरे क्षेत्र में परिवारों पर असर पड़ा है – बड़ी संख्या में लोगों का रोज़गार ख़त्म हो गया है, वेतनों में कटौती हुई है और देश से बाहर काम कर रहे कामगारों व पर्यटन से धन-प्रेषण (Remittance) में गिरावट आई है.
यूनीसेफ़ का अनुमान है कि अगले छह महीनों में 12 करोड़ से ज़्यादा बच्चे ग़रीबी, खाद्य असुरक्षा के गर्त में समा सकते हैं. 24 करोड़ बच्चे पहले से ही निर्धनता के दंश का शिकार हैं.
कोरोनावायरस संकट के असर को कम करने के लिए सरकारों से तत्काल कार्रवाई का आहवान किया गया है. इनमें स्कूलों में बच्चों के लिए भोजन दिये जाने सहित अन्य लाभकारी सामाजिक संरक्षा योजनाओं के लिए ज़्यादा संसाधन सुनिश्चित करना शामिल है.