महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का मुद्दा – पुरुषों और लड़कों के नाम यूएन उपप्रमुख की अपील
संयुक्त राष्ट्र की उपमहासचिव आमिना जे मोहम्मद ने कहा है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाओं पर आँखें मूँद लेने लेने वाले पुरुषों और लड़कों को यह स्वीकार करना होगा कि वे भी इस हिंसा में भागीदार हैं. विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के दौरान संयुक्त राष्ट्र ने पाया है कि वैश्विक स्तर पर घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है. तालाबन्दी और अन्य पाबन्दियों के कारण ज़्यादा सँख्या में महिलाओं को घर में ही रहने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. बहुत सी महिलाएँ तो उनके साथ दुर्व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार साथी के साथ ही अपने घरों में सीमित हो गई हैं.
यूएन उपप्रमुख ने खरी-खरी सुनाते हुए एक पुरज़ोर अपील जारी की है जिसमें सभी से, विशेषत: पुरुषों और लड़कों से, महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा रोकने और माताओं, बहनों, बेटियों व साथिनों के साथ खड़े होने की पुकार लगाई गई है.
“दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा, बलात्कार के मामले आसमान छू रहे हैं. बहुत सी घटनाओं से व्यापक स्तर पर रौष पैदा हुआ है.”
इसके बावजूद कुछ लोग वही पुरानी तिकड़मबाज़ियों में लगे रहने की कोशिश करते रहते हैं – दोष मढ़ना. कोविड-19 महामारी पर दोष मढ़ना. सामाजिक और आर्थिक दबावों पर दोष मढ़ना. अनिश्चितता पर दोषारोपण.
यहाँ तक कि क्षुब्ध कर देने की हद तक पीड़ित को ही ज़िम्मेदार ठहरा देना, आम तौर पर किसी महिला पर, लेकिन लड़कियाँ भी इससे अछूती नहीं हैं. उन पर किसी भी बात पर, अक्सर बात-बात पर दोष मढ़ना, सिवाय असली दोषी के.
एक बात स्पष्टता से समझ लीजिए: यौन हिंसा – हिंसा का कोई भी रूप – हिंसा ही है. इसके लिए कोई बहाना ही नहीं है. इसे किसी भी तरह जायज़ नहीं ठहराया जा सकता.
और इसके लिए ज़रा भी सहिष्णुता नहीं होनी चाहिए. हम सबको खड़ा होना होगा और अपनी आवाज़ बुलन्द करनी होगी.
मैं चार बेटियों की एक गर्वित माँ हूँ. लेकिन मुझ से आवाज़ उठाने के लिए आग्रह करने वाली बुलन्द आवाज़ें मेरे बेटों की हैं.
उन्होंने कहा, “यह एक बेहद गम्भीर मुद्दा है. यही सब कुछ हमारी बातचीतों के दायरों में पसरा है. आपको इस बारे में कुछ करने की ज़रूरत है. लोग बात सुनेंगे.”
मैंने जब पूछा कि उन्होंने क्या-क्या सुना है तो जवाब मिला कि तरह-तरह की बातें हैं: कुछ का कहना है कि हिंसा सही नहीं है लेकिन अन्य से यह सुनना भयावह था कि असल में इसमें ग़लती महिलाओं की ही है.
ताज्जुब है?!
महिलाओं और लड़कियों को हिंसा का शिकार बनाने वाले असल में पुरुष नहीं है. वे कमज़ोर हैं. वे शर्मनाक हैं. और जो लोग यह कह कर आँख मूँद लेते हैं या अनसुना कर देते हैं कि यह एक निजी मामला है, आप जान लीजिए कि आप भी हिंसा में भागीदार हैं.
वो सही मायनों में कायरों की सटीक परिभाषा में फिट हैं.
ऐसे रवैयों के कारण ही लाखों महिलाओं व लड़कियों के सामने हिंसा का ख़तरा हर दिन मँडराता है – स्कूलों में, घरों में, और ऑनलाइन भी.
पुरुषों और लड़को – मैं आपसे बात कर रही हूँ: यह आपकी ज़िम्मेदारी है.
अपना दायित्व समझिये. आवाज़ उठाइये. लड़कियों व महिलाओं के साथ खड़े होइये.
सर्वत्र शान्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की अपील में साझीदार बनिये – युद्धग्रस्त क्षेत्रों में और घरों में.
‘स्पॉटलाइट पहल’ का समर्थन कीजिए जिसमें महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा रोकने के लिए पुरुषों का आहवान किया गया है.
आइए, हम बलात्कार और हिंसा के पीड़ितों का हाथ थामें. उनकी कहानियाँ सुनें और समझें. पीड़ितों को शर्मिन्दा करने और उन पर ही दोष मढ़े जाने की मनोवृत्ति को सामने लाएँ.
आइये, हम याद रखें कि महिलाओं और 9 महीने तक उनके बलिदान के बिना आप पुरुष इस दुनिया में नहीं होते.
आइए, हम अपनी माँ, बहनों, बेटियों और साथिनों के साथ खड़ें हों.
और एक साथ मिलकर, आइये, एक बुलन्द आवाज़ में कहें: मैं उसके साथ हूँ (#WithHer)"