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विश्व भर में क़रीब आठ करोड़ लोग जबरन विस्थापित

जबरन विस्थापन का शिकार सात करोड़ 95 लाख लोगों में तीन करोड़ से ज़्यादा बच्चे हैं.
©UNHCR/Vincent Tremeau
जबरन विस्थापन का शिकार सात करोड़ 95 लाख लोगों में तीन करोड़ से ज़्यादा बच्चे हैं.

विश्व भर में क़रीब आठ करोड़ लोग जबरन विस्थापित

प्रवासी और शरणार्थी

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) की नई रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2019 में जबरन विस्थापन का शिकार लोगों की सँख्या बढ़कर सात करोड़ 95 लाख से भी ज़्यादा हो गई. युद्ध, हिंसा, यातना और आपात हालात के कारण पिछले एक दशक में यह सँख्या लगभग दोगुनी हो गई है. 20 जून को ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ से ठीक पहले जारी इस रिपोर्ट में यूएन एजेंसी ने विस्थापितों की मदद के लिए सरकारों से पहले से कहीं ज़्यादा प्रयास करने का आहवान किया है.     

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने गुरुवार को अपनी वार्षिक ‘Global Trends’ रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि वर्ष 2019 के अन्त तक कुल सात करोड़ 95 लाख विस्थापितों में चार करोड़ 57 लाख घरेलू विस्थापित हैं, यानि उन्होंने अपने ही देश में विस्थापित होकर किसी अन्य हिस्से में शरण लेनी पड़ी है.   

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बाक़ी लोगों ने अन्य देशों का रुख़ किया है. 42 लाख लोग अपनी शरणार्थी आवेदन प्रक्रिया के नतीजे का इन्तज़ार कर रहे हैं जबकि दो करोड़ 96 लाख शरणार्थी जबरन अपने घर से विस्थापित हैं और अपने देश से बाहर हैं.  

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में औसतन हर 97 लोगों में से एक व्यक्ति विस्थापित है – पिछले वर्ष 87 लाख लोग विस्थापन का शिकार हुए और यह सँकट विकासशील देशों में सबसे ज़्यादा है. 

यूएन एजेंसी के प्रमुख फ़िलिपो ग्रैन्डी ने जिनीवा में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जब से इन आँकड़ों को व्यवस्थित रूप से एकत्र करना शुरू किया गया है तब से यह संख्या लगभग आठ करोड़ हो गई है जोकि अब तक का सबसे बड़ी संख्या है और ये विश्व आबादी का लगभग एक फ़ीसदी है.   

विस्थापन से सभी देश प्रभावित हैं लेकिन आँकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में जबरन विस्थापन का शिकार लोगों में 85 फ़ीसदी की मेज़बानी निर्धन देश कर रहे हैं. 

“यह एक वैश्विक मुद्दा बना हुआ है, एक ऐसा मुद्दा जो सभी देशों के लिए है, लेकिन जिससे सबसे सीधे तौर पर निर्धन देशों के लिए चुनौती खड़ी होती है, धनी देशों के लिए नहीं, चाहे कहा कुछ भी जाए.”

बड़ी सँख्या में लोगों के विस्थापन के लिए अनेक प्रकार की आपात परिस्थितियों को वजह बताया गया है.

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुमानों के अनुसार जबरन विस्थापन का शिकार सात करोड़ 95 लाख लोगों में तीन करोड़ से ज़्यादा बच्चे हैं. 

फ़िलिपो ग्रैन्डी ने बताया कि विस्थापन के लिए मजबूर कुल सात करोड़ 95 लाख लोगों में से 73 फ़ीसदी ने पड़ोसी देशों में ही शरण ली है.

उन्होंने इसका राजनैतिकरण किए जाने और ऐसी धारणाएँ बनाए जाने को ग़लत ठहराया जिनमें माना जाता है कि अधिकाँश प्रवासी और शरणार्थी अपने घर से दूर धनी देशों में जाना चाहते हैं. 

सबसे ज़्यादा प्रभावित देश

इस समस्या से ज़्यादा प्रभावित देशों में अफ़ग़ानिस्तान, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, म्याँमार, सीरिया, काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य, बुर्किना फ़ासो और व्यापक सहेल क्षेत्र है. 

हर दस में से सात विस्थापित लोगों का सम्बन्ध सीरिया, वेनेज़्वेला, अफ़ग़ानिस्तान, दक्षिण सूडान और म्याँमार से हैं.

एजेंसी प्रमुख ग्रैन्डी ने कहा, “अगर इन देशों में सँकटों का निपटारा हो गया तो विश्व में 68 फ़ीसदी जबरन विस्थापन का हल निकलना शुरू हो जाएगा.”

सामूहिक विस्थापन पर वैश्विक महामारी कोविड़-19 का असर पड़ने और हालात ज़्यादा गम्भीर होने की आशंका जताई गई है. “मुझे बहुत चिन्ता है और हमने अनेक देशों की सरकारों से भी यही कहा है जिन्होंने हमसे सवाल किए हैं.”

“आजीविका का सँकट...इन जनसमूहों की बढ़ती निर्धनता, हिंसक संघर्षों और सहेल क्षेत्र के हालात में समाधान के अभाव से बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था... मेरी राय में कोई सन्देह नहीं होना चाहिए कि इससे जनसमूहों की गतिविधि ना सिर्फ़ क्षेत्र में बढ़ेगी बल्कि योरोप की ओर भी.”

वैश्विक महामारी कोविड-19 के शुरू होने के बाद से बांग्लादेश और म्याँमार से दक्षिण-पूर्व एशिया में मलेशिया और अन्य देशों का रुख़ करने वाले रोहिंज्या समुदाय के लोगों की सँख्या बढ़ रही है. 

“मेरी राय में यह कोविड से ज़्यादा रोहिंज्या मामले में प्रगति अवरुद्ध हो जाने से जुड़ा है.”

“कोई भी समाधान ना निकलने, बांग्लादेश के शिविरों में भारी ग़रीबी और अवसरों के अभाव और कोविड के कारण ज़रूरी तालाबन्दी से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं.”

बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार के बालूखली शिविर में अपने बच्चे के साथ एक महिला.
UN Women/Allison Joyce
बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार के बालूखली शिविर में अपने बच्चे के साथ एक महिला.

वेनेज़्वेला के 35 लाख से ज़्यादा विस्थापितों का उल्लेख पहली बार यूएन शरणार्थी एजेंसी की ताज़ा रिपोर्ट में किया गया है.

इसका कारण वर्ष 2018-19 के आँकड़ों की तुलना में विस्थापितों की सँख्या में आए उछाल को बताया गया है.

साल 2019 में बड़ी सँख्या में विस्थापित जनसमूहों को अपनी ज़िन्दगियों को फिर से सँवारने के लिए दीर्घकालीन समाधान नहीं मिल पाया.

तीन लाख 17 हज़ार शरणार्थी ही अपने मूल देश वापिस लौटने में सफल हुए जबकि लगभग एक लाख लोगों को अपने मूल देश या मेज़बानी करने वाले देश से दूर किसी तीसरे देश में बसना सम्भव हुआ.