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हिंसक संघर्षों में क्रूरता और उत्पीड़न के शिकार बच्चों की तमाशबीन दुनिया

26 मई 2020 को दक्षिण सूडान में सशस्त्र बलों द्वारा रिहा किए गए बच्चे.
© UNICEF/Helene Sandbu Ryeng
26 मई 2020 को दक्षिण सूडान में सशस्त्र बलों द्वारा रिहा किए गए बच्चे.

हिंसक संघर्षों में क्रूरता और उत्पीड़न के शिकार बच्चों की तमाशबीन दुनिया

मानवाधिकार

सशस्त्र संघर्षों में बच्चों का इस्तेमाल और उनका उत्पीड़न वर्ष 2019 में भी निर्बाध रूप से जारी रहा और बच्चों के अधिकारों के  गम्भीर हनन के 25 हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए. बच्चों और सशस्त्र संघर्ष के मुद्दे पर यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा ने सोमवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि बचपन दर्द, भय और क्रूरता का शिकार हो रहा है और दुनिया  बस देखे जा रही है. 

यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा ने कहा कि युद्धरत पक्ष युद्ध के नियमों का उल्लंघन करके अपने ही बच्चों को ख़तरे में डाल रहे हैं. 

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उन्होंने आगाह किया कि दुश्मनी के माहौल में हिंसा के दौरान बच्चों की सुरक्षा का ख़याल नहीं रखा जाता और इस वजह से उन्हें बेहद ज़रूरी मदद नहीं मिल पाती है.

रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019 भी बच्चों के लिए त्रासदीपूर्ण साल साबित हुआ और बच्चों के अधिकार हनन के 25 हज़ार से ज़्यादा गम्भीर मामले दर्ज किए गए. 

गम्भीर हनन के कुल मामलों में वर्ष 2018 की तुलना में ज़्यादा बदलाव नहीं आया है और हर दिन हनन के लगभग 70 मामले दर्ज किए गए हैं. 

रिपोर्ट में लगभग चार हज़ार 400 ऐसे मामलों की पुष्टि की गई है जिनमें बच्चों तक मानवीय राहत नहीं पहुँचने दी गई.

वर्जीनिया गाम्बा ने इसे वर्ष 2019 का सबसे चिन्ताजनक रुझान क़रार दिया है. 

साथ ही मानवीय राहतकर्मियों पर लगातार हमले और बच्चों तक बुनियादी मदद पहुँचाने के कार्य में उग्र ढँग से बाधाएँ खड़ी किया जाना चुनौतीपूर्ण है – राहततर्मियों द्वारा वितरित की जाने वाली राहत सामग्री को लूट लिया गया और उनकी आवाजाही पर पाबन्दियाँ लगाई गईं. 

यमन, माली, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, सीरिया, इसराइल और फ़लस्तीन में हालात को सबसे ज़्यादा व्यथित करने वाला बताया गया है.

रिपोर्ट दर्शाती है कि स्कूल और अस्पताल परिसरों को निशाना बनाया जाना और बुनियादी अधिकारों का सम्मान ना किया जाना बेहद चिन्ताजनक है, ख़ासतौर पर अफ़ग़ानिस्तान, इसराइल, फ़लस्तीन और सीरिया में जहाँ ऐसे लगभग 927 हमलों की पुष्टि हुई है. 

इन हमलों या फिर सैन्य बलों द्वारा इस्तेमाल में किये जाने के कारण पिछले साल लाखों बच्चे शिक्षा और असरदार स्वास्थ्य सुविधाओं के दायरे से वंचित रह गए. 

विशेष प्रतिनिधि ने सशस्त्र संघर्षों में शामिल सभी पक्षों का आहवान किया है कि बच्चों और निर्बल जनसमूहों तक मानवीय राहत पहुँचने देने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और बाल संरक्षण विशेषज्ञों और मानवीय राहतकर्मियों को बेरोकटोक काम करने की अनुमति मिलनी चाहिए. 

यौन उत्पीड़न

वर्ष 2019 में लड़के-लड़कियों के यौन हिंसा का शिकार होने के 735 मामलों की पुष्टि की गई लेकिन ऐसे मामलों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने की आशंका जताई गई है. 

इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार लोगों में दण्डमुक्ति की भावना, पीड़ितों के लिए न्याय की उपलब्धता का अभाव, कलंक का भय और पीड़ितों के लिए सहारा उपलब्ध ना हो पाने के कारण ऐसी घटनाओं की सही संख्या का अनुमान लगाना कठिन है.  

यौन उत्पीड़न के सबसे ज़्यादा मामलों की पुष्टि काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य (डीआरसी), सोमालिया और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में हुई है. 

साहेल और लेक चाड बेसिन क्षेत्रों में देशीय सीमाओं के परे होने वाले हिंसक संघर्ष एक बड़ी चिन्ता का कारण हैं. विशेष प्रतिनिधि ने भरोसा दिलाया है कि उनका कार्यालय इन क्षेत्रों में बच्चों को हरसम्भव सहारा प्रदान करने के कार्यों में जुटा है. 

सशस्त्र गुटों के साथ वास्तविक और कथित सम्बन्ध होने के आरोपों में क़रीब ढाई हज़ार से ज़्यादा बच्चे हिरासत में रखे गए हैं. इनमें से कुछ गुटों को संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी संगठन के रूप में परिभाषित किया है. 

विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा ने ध्यान दिलाया कि बच्चों को पीड़ितों के रूप में देखा जाना होगा, हिरासत की अवधि को कम से कम रखना होगा और अन्य कोई विकल्प ना होने की स्थिति में ही बच्चों को हिरासत में रखा जा सकता है.