जलवायु व सुरक्षा संकटों पर पार पाने के लिए लैंगिक विषमताओं से निपटना अहम

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की एक साझा रिपोर्ट दर्शाती है कि जलवायु कार्रवाई के अग्रिम मोर्चे पर जुटी महिलाएँ हिन्सक संघर्षों की रोकथाम और टिकाऊ व समावेशी शान्ति में अहम भूमिका निभा रही हैं. जलवायु परिवर्तन, सुरक्षा संकट और लैंगिकता के बीच क़रीबी सम्बन्ध से अवगत कराती ये रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई है जिसमें नाज़ुक हालात वाले देशों में लैंगिक समानता व महिला सशक्तिकरण के लिए ज़्यादा निवेश और राजनैतिक व आर्थिक क्षेत्र में निर्णय प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना अहम बताया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा समय में देशों को वैश्विक महामारी कोविड-19 के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है और लैंगिक असमानताएँ इन संकटों को और ज़्यादा गहरा बना रही हैं और पुनर्बहाली व सहनशीलता पर भी असर डाल रही हैं.
The new report we jointly released with @UNEP, @UNDP, @UNDPPA and @UNPeacebuilding highlights the linkages between climate change and security from a gender perspective. Read the report here: https://t.co/zutFQ9YCcr pic.twitter.com/C00J2oty2E
UN_Women
Gender, Climate & Security: Sustaining Inclusive Peace on the Frontlines of Climate Change नामक ये रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), महिला सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली यूएन संस्था (UN Women), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और यूएन के राजनैतिक और शान्तिनिर्माण मामलों के विभाग (UNDPPA) ने साझा रूप से तैयार की है.
रिपोर्ट बताती है कि हिन्सक संघर्ष और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित समुदायों को दोहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है.
कोविड-19 महामारी के कारण खाद्य सुरक्षा, आजीविका, सामाजिक जुड़ाव और सुरक्षा जैसे मोर्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और ज़्यादा गहरे हो रहे हैं.
इससे विकास पथ पर प्रगति को झटका लगने, हिन्सा भड़कने और नाज़ुक शान्ति प्रक्रियाओं में व्यवधान आने की आशंका है.
विभिन्न रूपों में हाशिएकरण का शिकार महिलाएँ और लड़कियाँ अन्य इन्सानों की तुलना में इन आर्थिक मुश्किलों के बोझ से ज़्यादा पीड़ित हैं.
यूएन की पर्यावरण एजेंसी की प्रमुख इन्गर एन्डरसन ने बताया, “भूमि के पट्टों, वित्तीय संसाधनों, और निर्णय लेने की प्रक्रिया तक असमान पहुँच होने से संकट के समय घरों के लिए आर्थिक दबाव पैदा सकते हैं. इससे महिलाओं को ग़ैर-आनुपातिक रूप से जलवायु सम्बन्धी सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है.”
“जलवायु संकट महज़ जलवायु तक सीमित नहीं है, और इससे असरदार ढँग से निपटने के लिए लैंगिकता, जलवायु और सुरक्षा के बीच सम्बन्ध को समझना होगा – यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी पीछे ना छूटने पाए.”
शोध के मुताबिक चाड में लिंग आधारित हिन्सा और ढाँचागत विषमताओं के कारण स्थानीय समुदायों में जलवायु व्यवधानों से निपटने के लिए क्षमता विकसित नहीं हो पाई है.
सूडान में सूखा पड़ने और बारिश में उतार-चढ़ाव के कारण उर्वर भूमि की कमी हो रही है जिससे स्थानीय स्तर पर किसानों और ख़ानाबदोश समूहों में टकराव बढ़ रहा है.
अधिकांश पुरुषों को वैकल्पिक आजीविका की तलाश में अपने गाँवों से दूर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है और इससे गाँव में घर-परिवार सम्भाल रही महिलाओं पर बोझ बढ़ा है.
पाकिस्तान, सिएरा लियोन और अन्य देशों के उदाहरण दर्शाते हैं कि जल की कमी, गर्म हवाओं, चरम मौसम की घटनाओं के कारण लिंग आधारित हिन्सा का जोखिम पैदा हो सकता है और पहले से ही मौजूद विषमताएँ और ज़्यादा गहरी हो सकती हैं.
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि आपस में जुड़े इन संकटों से निपटने के लिए तत्काल लैंगिक ज़रूरतों को ध्यान में रखकर की गई कार्रवाई अहम है.
यूएन महिला संगठन (UN Women) की कार्यकारी निदेशक पुमज़िले म्लाम्बो-न्गुका ने कहा, “लैंगिक दृष्टि के सहारे पुनर्निर्माण का अर्थ यह सुनिश्चित करना है कि कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्थाएँ समाज में बुनियादी विषमताओं से निपट सकें और महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का अन्त हो सके.”
रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु सम्बन्धी सुरक्षा जोखिमों पर आधारित नीतियों व कार्यक्रमों में लैंगिक ज़रूरतों और परिप्रेक्ष्यों को समाहित किया जाना चाहिए.
इससे ना सिर्फ़ जागरूकता के प्रसार में मदद मिलेगी बल्कि निर्णय-निर्धारक प्रक्रियाओं में महिलाओं व वंचित समूहों की भागीदारी और नेतृत्व भी सुनिश्चित किया जा सकेगा.