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मछली खपत में इज़ाफ़ा, टिकाऊ प्रबन्धन की सख़्त ज़रूरत

भारत के महाराष्ट्र प्रदेश में समुद्र किनारे से मछलियाँ ले जाते हुए. मछलियों को प्रोटीन का अच्छा स्रोत समझा जाता है.
UNDP/Dhiraj Singh
भारत के महाराष्ट्र प्रदेश में समुद्र किनारे से मछलियाँ ले जाते हुए. मछलियों को प्रोटीन का अच्छा स्रोत समझा जाता है.

मछली खपत में इज़ाफ़ा, टिकाऊ प्रबन्धन की सख़्त ज़रूरत

आर्थिक विकास

दुनिया भर में इन्सानों के भोजन में मछलियों की खपत वर्ष 2018 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गई थी और आने वाले दशक के दौरान इसमें और भी ज़्यादा वृद्धि होने का अनुमान है. खाद्य और कृषि संगठन ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में ये तथ्य पेश करते हुए टिकाई मत्स्य प्रबन्धन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. इसे सोफ़िया रिपोर्ट कहा जाता है.

विश्व में मछलियों व जल कृषि की स्थिति पर ताज़ा जानकारी देने वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 में दुनिया भर में कुल मछली उत्पादन 20 करोड़ 40 लाख टन तक बढ़ जाएगा, जोकि मौजूदा समय की तुलना में लगभग 15 प्रतिशत ज़्यादा होगा.

जल कृषि या मछली पालन भी मौजूदा 8 करोड़ 20 लाख टन के स्तर को पार कर जाएगा, जोकि एक नया रिकॉर्ड होगा.

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खाद्य व कृषि संगठन के महानिदेशक क्यू डोन्गयू का कहना है, “मछलियों और उनके उत्पादों को पृथ्वी पर ना केवल सबसे स्वस्थ खाद्य पदार्थों में गिना जाता है, बल्कि ये भी समझा जाता है कि प्राकृतिक पर्यावरण पर उनका सबसे कम असर पड़ता है.”

इन उत्पादों की खाद्य सुरक्षा में और ज़्यादा केन्द्रीय भूमिका होनी चाहिए.

बेहतरी के लिए मछली शिकार

सोफ़िया रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर में मछलियों और मछलियों से बने उत्पादों के लिए दिलचस्पी कम होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं.

विश्व भर में मछलियों की खपत प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष बढ़कर साढ़े 20 किलोग्राम हो गई है, जिसमें वर्ष 2030 तक प्रति व्यक्ति एक किलोग्राम तक की वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है.

वैसे तो ट्यूना व अन्य मछलियों के लिए सततता के स्तर में सुधार देखा गया है, मगर उनके शिकार का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा ऐसी जगह से पकड़ा जा रहा है जिसे खाद्य संगठन ने जैविक रूप से ग़ैर-टिकाऊ स्तर क़रार दिया है.

यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि अगर मछली शिकार व मछली पालन में टिकाऊ प्रबन्धन तरीक़े नहीं अपनाए गए तो खाद्य सुरक्षा व आजीविकाएँ दोनों ही ख़तरे में पड़ जाएँगी.

खाद्य व कृषि संगठन में मछली शिकार व जल कृषि विभाग के निदेशक मैनुअल बैरान्ज का कहन है, “विभिन्न साझेदारों के योगदान व बेहतरी देखकर प्रभावी प्रबन्धन की अहमियत साबित होती है जिसके ज़रिए जैविक सततता को हासिल करके उसे बरक़रार भी रखा जा सकता है.”

उन्होंने कहा कि इससे ये ज़रूरत भी उजागर होती है कि जहाँ मछली प्रबन्धन प्रणालियाँ कमज़ोर हालत में हैं, वहाँ उन्हें मज़बूत बनाए जाने की सख़्त ज़रूरत है.

“बेशक, हम ये भी समझते हैं कि सततता ख़ासतौर से उन स्थानों पर हासिल करना बहुत कठिन है जहाँ भुखमरी, ग़रीबी और संघर्ष मौजूद हैं, लेकिन टिकाऊ समाधानों के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है.”

कोविड-19 का प्रभाव

सोफ़िया रिपोर्ट में वैसे तो जो आँकड़े दिए गए हैं, वो कोविड-19 महामारी शुरू होने से पहले के हैं, लेकिन खाद्य व कृषि संगठन इन आँकड़ों का इस्तेमाल एक ऐसे सैक्टर को समर्थन व सहायता देने के लिए कर रहा है जो कोविड-19 महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शामिल है.

खाद्य व कृषि संगठन का कहना है कि दुनिया भर में प्रतिबन्धों व श्रमिकों की कमी के कारण मछली शिकार सम्बन्धी गतिविधियों में साढ़े छह प्रतिशत तक की कमी आई है.

भूमध्य सागर व काले सागर के कुछ हिस्सों में लगभग 90 प्रतिशत छोटे मछली किसानों को अपना काम रोकना पड़ा है क्योंकि वो अपने मछली शिकारों को बेचने में नाकाम हैं.

जल कृषि उत्पादों का निर्यात भी अन्तरराष्ट्रीय परिवहन में व्यवधान के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है, साथ ही पर्यटन व रैस्तराँ उद्योग जगत तक मछली उत्पाद पहुँचाने के चैनल भी कम हो गए हैं.

मछली शिकार व्यवस्या को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में प्रवासी श्रमिकों से जुड़े मुद्दे व भीड़ भरे मछली बाज़ारों से जुड़े ख़तरे भी शामिल हैं.

इस बीच, खुदरा बिक्री तो स्थिर रही है, या फिर डिब्बा बन्द मछली, मसाला मिली या फिर धुएँ वाले स्वाद वाली मछली, जिन उत्पादों को ज़्यादा समय तक भण्डार में रखा जा सकता है, उनकी खपत महामारी के दौरान बढ़ी है.