कोविड-19: दूसरे विश्व युद्ध के बाद विश्व अर्थव्यवस्था पर सबसे बड़ा संकट

कोरोनावायरस के कारण दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियाँ व्यापक स्तर पर प्रभावित हुई हैं.
UNDP Eurasia/Karen Cirillo
कोरोनावायरस के कारण दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियाँ व्यापक स्तर पर प्रभावित हुई हैं.

कोविड-19: दूसरे विश्व युद्ध के बाद विश्व अर्थव्यवस्था पर सबसे बड़ा संकट

आर्थिक विकास

वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण तालाबन्दी और अन्य सख़्त पाबन्दियों से विश्व अर्थव्यवस्था पर बेहद तेज़ गति से बड़ा और भारी झटका लगा है जिससे गम्भीर संकट पैदा हो गया है. विश्व बैंक (World Bank) के ताज़ा अनुमान के अनुसार इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था के बढ़ने के बजाय 5.2 प्रतिशत तक सिकुड़ने की आशंका है जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब तक की सबसे गहरी आर्थिक मन्दी होगी.  

‘Global Economic Prospects’ नामक इस रिपोर्ट में दुनिया के सभी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय में गिरावट आने की भी बात कही गई है जिससे लाखों की संख्या में लोग निर्धनता का शिकार होंगे. 

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कोरोनावायरस की चपेट में आने से विकसित देशों में घरेलू माँग, आपूर्ति, व्यापार और वित्तीय व्यवस्था पर बुरा असर हुआ है जिससे वर्ष 2020 में आर्थिक गतिविधियाँ सात फ़ीसदी तक सिकुड़ने का अनुमान जताया गया है. 

वहीं उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (Emerging Market and Developing Economies/EMDA) के लिए यह आँकड़ा 2.5 फ़ीसदी है. ये देश एक समूह के तौर पर पिछले 60 सालों में पहली बार अर्थव्यवस्था में सिकुड़न का सामना करेंगे. 

न्यायसंगत आर्थिक वृद्धि, वित्त और संस्था मामलों की उपप्रमुख ज़ेला पज़ारबशीलू ने रिपोर्ट के निष्कर्षों को गम्भीर बताते हुए उसके दीर्घकालीन प्रभावों पर चिन्ता जताई है. 

“हमारा सबसे पहला काम वैश्विक स्वास्थ्य और आर्थिक एमरजेंसी से निपटना है. उसके इतर, वैश्विक समुदाय को एक साथ आकर पुनर्निर्माण के रास्तों की तलाश करनी होगी ताकि बेहतर पुनर्बहाली से लोगों को ग़रीबी में धँसने और बेरोज़गारी से बचाया जा सके.”

दक्षिण एशिया क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ 2.7 फ़ीसदी तक सिकुड़ सकती हैं क्योंकि महामारी के मद्देनज़र ऐहतियात बरतने के सख़्त उपायों से खपत और सेवा क्षेत्र पर असर पड़ा है. 

दीर्घकालीन दुष्प्रभाव की आशंका

हालात उन देशों में सबसे ज़्यादा ख़राब होने की आशंका है जो कोविड-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं और जहाँ वैश्विक व्यापार, पर्यटन, वस्तुओं के निर्यात और बाहरी वित्तीय संसाधनों पर निर्भरता ज़्यादा है. 

कोविड-19 के दौरान पढ़ाई-लिखाई और प्राथमिक स्वास्थ्य में महीनों तक चले व्यवधानों के कारण मानव संसाधन विकास पर भी दीर्घकालीन असर होने की आशंका जताई गई है. 

रिपोर्ट के मुताबिक पाबन्दियाँ साल 2020 की दूसरी छमाही में हटाने से वर्ष 2021 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि में उछाल आने और उसके 4.2 फ़ीसदी तक बढ़ने की सम्भावना है. 

लेकिन महामारी के लम्बा खिंचने और व्यापार, वित्तीय बाज़ारों व सप्लाई चेन में उथल-पुथल से संकट और गहरा हो जाएगा. इससे अर्थव्यवस्था के 8 फ़ीसदी तक सिकुड़ने का ख़तरा है और वर्ष 2021 में भी आर्थिक वृद्धि की दर 1 फ़ीसदी के आस-पास रहने का ही अनुमान है. 

अध्ययन के मुताबिक कोविड-19 महामारी से उपजे हालात तत्काल स्वास्थ्य और आर्थिक क्षेत्रों में नीतिगत कार्रवाई की अहमियत को रेखांकित करती है. 

इसके लिए वैश्विक सहयोग बेहद अहम है ताकि महामारी के दुष्प्रभावों के दंश को कम किया जा सके, निर्बल जनसमूहों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके और भविष्य में इसी तरह की चुनौतियों की रोकथाम और उनसे निपटने की क्षमता का निर्माण सम्भव हो सके. 

इसके साथ-साथ उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करना होगा, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से पैदा होने वाली समस्याओं को दूर करना होगा, सामाजिक संरक्षा के सीमित दायरे को बढ़ाना होगा और संकट के गुज़रने के बाद मज़बूत व टिकाऊ आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देने के लिए सुधार लागू करने होंगे.