कोविड-19: नस्लभेद के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों को समर्थन, सतर्कता बरतने की अपील

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने नस्लभेद के विरोध में दुनिया के अनेक शहरों में हुए प्रदर्शनों का समर्थन किया है लेकिन साथ ही आगाह किया है कि इन विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेते समय लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए निरन्तर सावधानी बरतनी होगी. पिछले दस में से 9 दिनों के दौरान कोरोनावायरस संक्रमण के एक लाख से ज़्यादा मामलों की पुष्टि हुई है जिससे चिन्तित यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने स्पष्ट किया है कि यह समय बेपरवाह होने का नहीं है.
हाल ही में अमेरिका के मिनियापॉलिस शहर में एक श्वेत पुलिस अधिकारी के बर्ताव के बाद काले एक अफ़्रीकी व्यक्ति जियॉर्ज फ़्लॉयड की मौत के बाद देश के अनेक शहरों और अनेक अन्य देशों में भी विरोध-प्रदर्शन भड़के हैं.
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WHO
स्वास्थ्य एजेंसी के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन नस्लवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक आन्दोलन और हर प्रकार की समानता का समर्थन करता है और सभी तरह के भेदभावों को नकारता करता है.
लेकिन उन्होंने याद दिलाया कि विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेते समय सुरक्षा बरती जानी होगी. इसके तहत व्यक्तियों के बीच एक मीटर की दूरी रखना, हाथ साफ़ करना, खाँसते हुए मुँह ढँक लेना और मास्क पहनना ज़रूरी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोविड-19 के संक्रमण के अब तक लगभग 70 लाख मामलों की पुष्टि हो चुकी है और क़रीब चार लाख लोगों की मौत हुई है.
पश्चिमी योरोप में हालात पहले से बेहतर बताए गए हैं लेकिन अन्य क्षेत्रों में स्थिति बदतर हो रही है.
पिछले 10 में से 9 दिन ऐसे थे जब संक्रमण के एक लाख से ज़्यादा नए मामले दर्ज किए गए. 7 जून को एक लाख 36 हज़ार मामलों का पता चला जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है.
इनमें 75 फ़ीसदी से ज़्यादा मामले महज़ 10 देशों से हैं जो अमेरिका क्षेत्र और दक्षिण एशिया में स्थित हैं. अफ़्रीकी देशों के साथ-साथ अब पूर्वी योरोप और मध्य एशिया के देशों में भी मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है.
यूएन एजेंसी महानिदेशक ने आगाह किया कि जिन देशों में हालात बेहतर होने के संकेत मिल रहे हैं उन्हें सतर्कता बरतनी आवश्यक है.
अभी तक के अध्ययन दर्शाते हैं कि विश्व आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी संक्रमित नहीं हुआ है और इसलिए यह समय अभी राहत की साँस लेने का नहीं है.
उन्होंने सक्रिय ढँग से हालात की निगरानी किए जाने की पुकार लगाई ताकि वायरस को फिर से पनपने से रोका जा सके. यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कुछ देशों में जीवन पटरी पर लौट रहा है और सामूहिक गतिविधियाँ भी शुरू हो रही हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि संक्रमितों के सम्पर्क में आए लोगों का पता लगाना (कॉन्टैक्ट ट्रेसिन्ग) जवाबी कार्रवाई का एक बेहद ज़रूरी हिस्सा है.
संगठन के मुताबिक कुछ देशों में पोलियो के लिए पहले से ही स्वास्थ्यकर्मियों का एक मज़बूत नैटवर्क है जिन्हें अब कोविड-19 से निपटने की ज़िम्मेदारी दी गई है.
इस सम्बन्ध में पिछले सप्ताह यूएन एजेंसी ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिनकी मदद से पोलियो की निगरानी के लिए स्थापित नैटवर्कों को कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही इस कार्य में डिजिटल औज़ारों की मदद लेने के बारे में भी बताया गया है.
ऐसे अनेक डिजिटल औज़ार विकसित किये गए हैं जिनकी मदद से संक्रमितों के सम्पर्क में आए लोगों और संक्रमितों का पता लगाया जा सकता है.
इस काम में यूएन एजेंसी की Go.Data एप्लीकेशन के अलावा जीपीएस और ब्लूटूथ टैक्नॉलजी की मदद ली जा सकती है.
एक व्यापक रणनीति के तहत डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल से ‘कॉन्टैक्ट ट्रेसिन्ग’ को कम अवधि में ही पूरा किया जा सकता है और यह वायरस के फैलाव के स्तर का पता लगाने में कारगर है.
लेकिन इस मामले में डिजिटल टूल पूरी तरह से मानव कौशल का स्थान नहीं ले सकते हैं. ‘
कॉन्टैक्ट ट्रेसिन्ग’ के सिलसिले में इन औज़ारों की क्षमता का पता लगाने के लिए और ज़्यादा तथ्यों के सामने आने की ज़रूरत है.
हालाँकि इन डिजिटल समाधानों से निजता को भी चुनौतियाँ पैदा हो रही हैं.
इसके अलावा अपने आप बताए गए लक्षणों के आधार पर ग़लत मेडिकल परामर्श दिए जा रहे हैं और इन औज़ारों के दायरे से वे लोग बाहर हैं जो अभी डिजिटल जगत का हिस्सा नहीं हैं.