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महासागर संरक्षण के लिए ज़रूरत है फ़ौलादी इरादों की

दुनिया भर में अरबों लोग अपने भोजन में प्रोटीन के लिए महासागरों से मिलने वाले स्रोतों पर निर्भर हैं.
Coral Reef Image Bank/Erik Lukas
दुनिया भर में अरबों लोग अपने भोजन में प्रोटीन के लिए महासागरों से मिलने वाले स्रोतों पर निर्भर हैं.

महासागर संरक्षण के लिए ज़रूरत है फ़ौलादी इरादों की

जलवायु और पर्यावरण

दुनिया जब कोविड-19 महामारी की चपेट में नज़र आ रही है तो महासागरों की हिफ़ाज़त करने के लिए फ़ौलादी इरादे वाले व्यवहारवाद की आवश्यकता है. ये कहना है महासागरों के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश के विशेष दूत पीटर थॉम्पसन का, जिन्होंने 8 जून को मनाए जाने वाले विश्व महासागर दिवस के मौक़े पर ये बात कही है. 

पीटर थॉम्पसन प्रशान्त क्षेत्र के एक द्वीपीय देश फिजी मूल के हैं और उन्होंने विश्व महासागर दिवस के मौक़े पर यूएन न्यूज़ के साथ ख़ास बातचीत में बताया कि इस तथ्य को नहीं भुला देना कितना अहम है कि महासागर पृथ्वी ग्रह के भविष्य के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र के अध्यक्ष पीटर थॉम्पसन. 5 जून 2017 को स्वीडन व फिजी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित महासागर सम्मेलन के उदघाटन समारोह में.

पीटर थॉम्पसन के साथ हुई बातचीत के अंश:

महासागरों के भौतिक स्वास्थ्य के बारे में फिलहाल क्या स्थिति है?

महासागर मुश्किल में हैं. दुनिया भर में लगभग 60 फ़ीसदी समुद्री पारिस्थितिकी का या तो क्षय हो चुका है या फिर उसका इस्तेमाल ग़ैर-टिकाऊ तरीक़े से किया जा रहा है. हम जानते हैं कि महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, ये कि वहाँ ऑक्सीज़न कम हो रही है और अम्लीकरण बढ़ रहा है. मानवजनित ग्रीनहाउस  गैसों के कार्बन उत्सर्जन से हो रहे इन परिवर्तनों के कारण जल के नीचे का जावन और ज़्यादा कठिन हो रहा है, जिससे पृथ्वी पर मौजूद जीवन के लिए भी बड़ी जटिलताएँ पैदा हो रही हैं.

अगर हम महासागरों के बिगड़ते स्वास्थ्य का रुख़ पलटना चाहते हैं तो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती किये जाने की आवश्यकता है. हम जैसे-जैसे कोरोनावायरस महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से उबरने के विशालकाय प्रयासों में व्यस्त होंगे, हमारी प्रजातियों का हित ऐसी टिकाऊ परियोजनाओं के भविष्य में धन व संसाधन निवेश करने में है जो पर्यावरण व जलवायु के लिए मददगार साबित हो सकें.

हमें महासागरों की इतनी परवाह क्यों करनी चाहिए?

करोड़ों लोग अपने भोजन में प्रोटीन के लिए महासागरों से मिलने वाले स्रोतों पर निर्भर हैं, और अन्य करोड़ों लोग अपनी आजीविका समुद्रों से ही अर्जित करते हैं. ऐसा अनुमान है कि समुद्रों में मछलियाँ पकने से दुनिया भर में हर साल लगभग 5 करोड़ 70 लाख लोगों को रोज़गार मिलता है. पृथ्वी का लगभग 70 फ़ीसदी हिस्सा महासागर हैं जो कार्बन डाय ऑक्साइड का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा और हमारी ग्रीनहाउस गैसों द्वारा उत्पन्न गर्मी का लगभग 90 फ़ीसदी हिस्सा सोख़ लेते हैं. महासागर पृथ्वी के सबसे विशाल जीव मण्डल और जलवायु सुधारक हैं. 

हम जिस ऑक्सीज़न में साँस लेते हैं, उसका लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा महासागरों से ही मिलता है, इसलिए महासागरों को अक्सर पृथ्वी के फेफड़े भी कहकर पुकारा जाता है. महासागर ही पृथ्वी ग्रह के कार्बन को सोखने वाले सबसे बड़े भण्डार हैं और इसी वजह से वैश्विक तापमान की चुनौतियों का सामना करने में ये हमारे सबसे बड़े साथी हैं. लेकिन महासागरों की प्रतिरोधी क्षमता और मज़बूती असीमित नहीं है, और हम ये अपेक्षा नहीं कर सकते कि इन्सानों की ग़ैर-टिकाऊ गतिविधियों के प्रभावों को असीमित रूप में सोख़ते रहेंगे.

ये कहा जाता है कि महासागरों के लिए अगर किसी तरह की समस्या पैदा होती है, तो इसका मतलब है कि इन्सानों के लिए समस्या पैदा हो रही है. स्वस्थ महासागरों के अभाव में हम पृथ्वी पर एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तन्त्र नहीं पा सकते.

आपके ख़याल में कोविड-19 महामारी संकट इन्सानों को किस हद तक महासागरों के साथ अपने बर्ताव पर पुनर्विचर करने के लिए प्रेरित करेगा?

इस सन्दर्भ में मैं उन छह सिद्धान्तों की तरफ़ ध्यान खींचना चाहूँगा जो महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस वर्ष पृथ्वी दिवस के मौक़े पर पेश किए थे. इनमें जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी को ख़त्म करना, पर्यावरण प्रदूषण फैलाने वालों को उसकी वित्तीय भरपाई करने का इन्तज़ाम करना, और ऐसी टिकाऊ परियोजनाओं के भविष्य में सार्वजनिक धन निवेश करना जो पर्यावरण व जलवायु के लिए मददगार साबित हों.

मानव जाति, टिकाऊ खाद्य व आर्थिक-सामाजिक प्रणालियों और नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों व स्थिर जलवायु का भविष्य, सबकुछ एक स्वस्थ महासागर के साथ जुड़ा हुआ है. इसलिए, मैं समझता हूँ कि कोविड-19 संकट का सामना करने में जो मुश्किलें झेली जाएंगी, उन्हें पृथ्वी को प्रदूषित करने वाली नीतियाँ अपनाकर फिर से सिर उठाने का मौक़ा नहीं दिया जाएगा. हमारे देशों और समुदायों की सबसे ज़्यादा भलाई स्वच्छ और हरित विकल्पों की तरफ़ बढ़ने में ही है.

मानवजाति बहुत सारे संसाधनों के लिए महासागरों पर निभर रहेगी, लेकिन क्या ये निर्भरता ज़्यादा टिकाऊ होगी?

बिल्कुल ऐसा हो सकता है, बशर्ते कि हम नीले-हरित उपायों और विकल्पों (रिकवरी) का रुख़ करें और महासागरों को अपेक्षित सम्मान दें. ये रवैया दरअसल संरक्षण और उत्पादन के बीच सही सन्तुलन क़ायम करने के बारे में है. महासागर हमारा वांछित भविष्य सुनिश्चित करने में मदद करेंगे, चाहे वो बेहतर दवाएँ हों, पोषण, या फिर नवीनीकृत ऊर्जा के स्रोत. टिकाऊ तरीक़े से मत्स्यपालन और समुद्री जीव-जन्तुओं का रख-रखाव, समुद्री बायो-टैक्नॉलॉजी, पारिस्थितिकी-पर्यटन, वैश्विक स्तर पर जहाज़रानी परिवहन को हरित बनाना, ये कुछ ऐसे उपाय हैं जिनके ज़रिये हमें वो मज़बूती व सततता मिलेगी जो हम चाहते हैं. 

हमारे महासागरों की बेहतरी को ध्यान में रखने वाली एक टिकाऊ नीली अर्थव्यवस्था के ज़रिये हमें स्वस्थ भविष्य मिल सकता है, मगर तभी, जब हम पृथ्वी पर अपनी बुरी आदतों को सही करें.

कोरोनावायरस महामारी के माहौल में आप महासागरों के बारे में कितने आशावादी हैं?

मैं ना तो आशावादी और ना ही निराशावादी होने की कोशिश करुंगा, बल्कि पक्के इरादे वाले व्यवहारवादी रुख़ पर ध्यान केन्द्रित करुंगा जो हमारे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत लक्ष्यों को हासिल करने के लिए चाहिए.

मिस्र के तटीय इलाक़ों के लाल सागर में इस तरह की प्रवाल भित्ति को देखने बहुत से सैलानी आते हैं जिससे आय अर्जित होती है.
Coral Reef Image Bank/Fabrice Du
मिस्र के तटीय इलाक़ों के लाल सागर में इस तरह की प्रवाल भित्ति को देखने बहुत से सैलानी आते हैं जिससे आय अर्जित होती है.

जलवायु परिवर्तन पर अन्तरसरकारी पैनल की वैश्विक तापमान वृद्धि पर वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करके टिकाऊ स्तर पर लाने के लिए समाज के सभी क्षेत्रों में तीव्र, दीर्घकालिक और असाधारण परिवर्तनों की दरकार होगी. जीवन का रुख़ मोड़ देने वाली महामारियाँ वैसे तो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने का कोई नुस्ख़ा नहीं हैं, लेकिन कोविड-19 संकट ने असाधारण बदलाव की सम्भावनाएँ भी दिखा दी हैं.

स्वास्थ्य महामारी का शायद सबसे बड़ा जोखिम ये होगा कि हम मानवता के सामने दरपेश बहुत ही बुनियादी चुनौती से अपना ध्यान हटा लें, और वो है जलवायु परिवर्तन का असर जो हमारे पृथ्वी ग्रह पर अभी और भविष्य के लिए हो रहा है.

हमें ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन तेज़ी से कम करने के उपायों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा ताकि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के दायरे में ही सीमित रखा जा सके. ऐसी कार्रवाई के अभाव में, हम भविष्य की पीढ़ियों के कल्याण को बहुत बड़े ख़तरे में डाल रहे होंगे.

अच्छी ख़बर ये है कि हमारे पास महासागरों में जीवन को बचाने के लिए एक सार्वभौमिक स्तर पर सहमत योजना है जिससे जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को कम करने में मदद मिलेगी. मेरा इशारा टिकाऊ विकास लक्ष्य-14 की तरफ़ है जो संयुक्त राष्ट्र के 2030 टिकाऊ विकास एजेण्डा के 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों में से एक है. 

टिकाऊ विकास लक्ष्य-14 में महासागरों के संसाधनों के संरक्षण और टिकाऊ इस्तेमाल को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है. लक्ष्य-14 को अगर पेरिस जलवायु समझौतेऔर टिकाऊ विकास एजेण्डा के साथ ईमानदारी से लागू किया जाए तो हम इन्सानों और महासागरों के लिए वांछित भविष्य बना सकते हैं.