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भारत: 'भुलाए जा चुके' प्रवासी मज़दूरों को राहत पहुँचाने की पुकार

भारत में प्रवासी मज़दूर खाना पकाते हुए.
World Bank/Curt Carnemark
भारत में प्रवासी मज़दूर खाना पकाते हुए.

भारत: 'भुलाए जा चुके' प्रवासी मज़दूरों को राहत पहुँचाने की पुकार

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार से सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का तत्काल अनुपालन करने का आग्रह किया है जिसमें 10 करोड़ से ज़्यादा आन्तरिक प्रवासी कामगारों का कल्याण सुनिश्चित करने की बात कही गई है. वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण भारत में मार्च में तालाबन्दी लागू किए जाने बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूरों को पैदल अपने गण्तव्य स्थानों तक पहुँचने के लिए लम्बी यात्राएँ करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को प्रवासी कामगारों का पंजीकरण करने और यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि वे बस या ट्रेन से निशुल्क यात्रा कर सकें, और घर पहुँचने तक उनके लिए पानी, भोजन और रहने की व्यवस्था की जाए. 

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सरकार के अनुरोध पर भारतीय रेलवे द्वारा ट्रेन चलाने का बन्दोबस्त किया जा रहा है. 

आवास के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर बालाकृष्ण राजागोपाल और चरम ग़रीबी पर विशेष रैपोर्टेयर ओलिविए डी शुटर ने भारत में आन्तरिक प्रवासियों के प्रति सरकारी रवैये पर क्षोभ जताया. 

“भारत सरकार ने जिस तरह आन्तरिक प्रवासी मज़दूरों की उपेक्षा की है उससे हम क्षुब्ध हैं, ख़ासकर उनके लिए जिनका सम्बन्ध हाशिये पर रहने वाले अल्पसंख्यकों और कथित तौर पर निचली जातियों से है. सरकार उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहने के साथ, विकट मानवीय हालात में उन्हें राहत प्रदान करने में विफल रही है.” 

उन्होंने कहा कि पुलिस की क्रूरता से प्रवासी मज़दूरों की मुश्किलें और बढ़ी हैं और उन्हें वायरस फैलाने वालों के रूप में कलंकित होने से नहीं रोका जा सका है.”

स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई कि उच्चतम न्यायालय का आदेश तत्काल लागू किया जाएगा और इससे प्रवासी कामगारों के हालात में सुधार लाने में मदद मिलेगी. 

“अनेक लोग असहनीय परिस्थितियों में फँसे हुए हैं, भूखे हैं और आय का स्रोत ख़त्म हो जाने व मकान मालिकों के दबाव में घर छोड़ने के बाद उनके पास सिर छुपाने को जगह नहीं है.”

कोविड-19 पर ऐहतियाती उपायों के मद्देनज़र 24 मार्च को तालाबन्दी के आदेश दिए गए थे लेकिन उनकी अवहेलना किए जाने पर अनेक प्रवासी कामगारों को पुलिस कार्रवाई भी झेलनी पड़ी. 

यूएन विशेषज्ञों के मुताबिक तालाबन्दी का आदेश आम लोगों के लिए एकाएक जारी कर दिया गया था और इस प्रक्रिया में निर्बल समुदायों को होने वाली परेशानियों के बारे में नहीं सोचा गया था. 

इस बीच विशेष रैपोर्टेयर ने निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रहे लोगों की मदद के लिए सरकारी राहत पैकेज और अतिरिक्त ट्रेन चलाए जाने के निर्णय की प्रशन्सा की है. 

लेकिन उन्होंने आगाह किया कि ये प्रयास अपर्याप्त साबित होते दिखाई दे रहे हैं और साथ ही अधिकांश आन्तरिक प्रवासी कामगारों को राहत पैकेज का लाभ नहीं मिल पाएगा.

बताया गया है कि आन्तरिक प्रवासियों को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक पहुँचाने में प्रदेश सरकारों के बीच समन्वय की कमी भी प्रक्रिया की अक्षमता को प्रदर्शित करती है. 

“भारत में कोविड-19 संकट का स्तर - समाज के सबसे निर्बल समुदाय के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करने के सरकारी संकल्प का इम्तेहान है.”

उन्होंने कहा कि भारत सरकार के लिए इस संकट के दौरान आन्तरिक प्रवासी कामगारों को ज़रूरी राहत सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सुनिश्चित करके मानवाधिकार क़ानूनों के तहत तय दायित्वों के निर्वहन करने का एक अवसर है. 

स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की इस पुकार का भोजन के अधिकार पर विशेष रैपोर्टेयर माइकल फ़ाख़री, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष रैपोर्टेयर डाइनियुस पुरास और अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों पर विशेष रैपोर्टेयर फ़र्नान्ड डी वेरेनेस ने समर्थन किया है.  
 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतन्त्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतन्त्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.