कोविड-19: एशियाई देशों से अभिव्यक्ति की आज़ादी को नहीं दबाने का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा है कि एशिया-प्रशान्त क्षेत्र के दर्जन से भी ज़्यादा देशों ने कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के प्रयासों के तहत अभिव्यक्ति की आज़ादी को भी दबाया है जो बहुत चिन्ताजनक है.
UN Human Rights Chief alarmed by clampdown on freedom of expression in Asia-Pacific during #COVID19 & tightening of censorship in several countries. @mbachelet says any actions taken to stop the spread of false information must be proportionate.Read: https://t.co/5ODnnfe0Fe pic.twitter.com/5nuEvry0ZN
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उन्होंने बुधवार को देशों की सरकारों से अपील करते हुए कहा कि झूठी जानकारी या सूचनाएँ फैलने से रोकने के लिए जो भी क़दम उठाए जाएँ, वो क़ानून, आवश्यकता और आनुपातिक सिद्धान्तों के दायरे में हों, यानि उनके ज़रिये ज़्यादती ना हो जाए.
“भारी अनिश्चितता के इस दौर में नागरिकों को अपनी चिन्ताएँ ज़ाहिर करने का अधिकार है.”
मिशेल बाशेलेट ने कहा, “चिकित्सा से जुड़े पेशेवर लोगों, पत्रकारों, मानवाधिकारों के पैरोकारों और आम जनता, सभी को सार्वजनिक हित से जुड़े अत्यन्त महत्वपूर्ण मुद्दों पर राय अभिव्यक्त करने की इजाज़त होनी चाहिए."
"इनमें स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक संकट का मुक़ाबला करने के लिए किए जा रहे प्रबन्ध, और राहत सामग्री का वितरण जैसे मुद्दे भी शामिल हैं.”
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने भारत, बांग्लादेश से लेकर म्याँमार और वियतनाम से लेकर फ़िलीपीन्स जैसे अनेक देशों के उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह लोगों पर अपने देशों की सरकारों की कार्रवाई की आलोचना करने या कोविड-19 के बारे में कथित रूप से ग़लत जानकारी फैलाने के आरोपों में या तो जुर्माना लगाया गया है, या कुछ को गिरफ़्तार भी किया गया है.
बांग्लादेश में पिछले तीन महीनों के दौरान अनेक लोगों पर आरोप निर्धारित किए गये हैं या कुछ को डिजिटल सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ़्तार भी किया गया है.
उन पर कोविड-19 के बारे में झूठी जानकारी फैलाने या सरकार की आलोचना करने के आरोप लगाये गये हैं.
ऐसे ही मामले चीन, इंडोनेशिया, भारत, मलेशिया सहित अनेक देशों में भी देखने को मिले हैं.
मिशेल बाशेलेट ने कहा कि कम्बोडिया में यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय ने ऐसी गिरफ़्तारियों का लेखा-जोखा तैयार किया है.
आँकड़ों से मालूम हुआ कि एक 14 वर्षीय लड़की को महामारी के बारे में सोशल मीडिया पर अपनी राय रखने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि बहुत से लोगों को ‘झूठी ख़बरें (फ़ेक न्यूज़)’ या ‘ग़लत जानकारी’ फैलाने के आरोप में गिरफ़्तार किया, जबकि कुछ लोगों पर किसी अपराध को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए.
कुछ अन्य लोग सरकार के ख़िलाफ़ साज़िश रचने के आरोप में भी गिरफ़्तार किये गये हैं.”