कोविड-19: व्यवसायों को महामारी के सामाजिक प्रभावों से निपटना ज़रूरी

दुनिया की सबसे बड़ी कॉरपोरेट सततता पहल, यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट की प्रमुख लीज़ किंगो का मानना है कि जिस तरह सभी व्यवसाय कोविड-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक गिरावट से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें एक स्थाई भविष्य के निर्माण के लिए अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति भी सजग रहना होगा. लीज़ किंगो इस पद पर अपना पाँच साल का कार्यकाल जल्द ही पूरा कर रही हैं.
लीज़ किंगो पिछले पाँच वर्षों के दौरान ग्लोबल कॉम्पैक्ट का संचालन करती रही हैं. संयुक्त राष्ट्र समाचार के साथ एक साक्षात्कार में, लीज़ किंगो ने अपने कार्यकाल के दौरान हुए परिवर्तनों की जानकारी दी और बताया कि किस तरह मानवता और पृथ्वी के भविष्य की रक्षा करने के संयुक्त राष्ट्र के नज़रिये को लेकर निजी क्षेत्र की प्रतिबद्धता पर कोविड संकट का असर पड़ा है.
"जब महामारी की हुई तो सबसे पहले ग्लोबल कॉम्पैक्ट ने ही सभी उद्योगों से कार्रवाई करने का आहवान किया था. हमने कहा कि इसके बड़े आर्थिक और सामाजिक प्रभाव होंगे और उन्हें हमारे 10 व्यावसायिक सिद्धान्तों को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी दोगुना करने की आवश्यकता होगी - जिनमें मानवाधिकार, श्रम, भ्रष्टाचार-विरोधी और पर्यावरण समेत – परिवर्तन के लिए संयुक्त राष्ट्र का ब्लूप्रिन्ट और 2030 का सतत विकास एजेण्डा शामिल हैं.
हमने उन्हें दो काम करने के लिए कहा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) फाउण्डेशन में योगदान देकर कार्रवाई के लिए आवश्यक धन इकट्ठा करने में मदद करें और अपने कर्मचारियों की सुरक्षा, मानवाधिकारों और आजीविकाएँ बचाने की पूरी कोशिश करें, क्योंकि महामारी ख़त्म होने के बाद ये सबसे बड़ी चुनौतियाँ बनकर उभरेंगी. ख़ासतौर पर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले कमज़ोर तबके के श्रमिकों समेत ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की आजीविकाएँ अचानक ख़त्म हो जाने का ख़तरा है.
संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट ने कम्पनियों से स्पष्ट कहा कि भविष्य में केवल वित्तीय लाभ पर ही ध्यान केन्द्रित करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि और ज़िम्मेदार बनना होगा व सततता के सिद्धान्तों को व्यवसायों में समाहित करना पड़ेगा."
"मुझे लगता है कि मैं विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि जो बड़ी कम्पनियाँ ग्लोबल कॉम्पैक्ट का हिस्सा हैं और वास्तव में व्यापार के लिए एजेण्ड तय कर रही हैं, उन्हें बहुपक्षवाद, संयुक्त राष्ट्र और सरकारों और व्यापार के बीच साझेदारी की पूरी समझ है और आगे का रास्ता भी यही है.
बेशक, ऐसी कम्पनियाँ भी हैं जिन पर अस्तित्व का संकट मँडरा रहा है और वो बहुत संघर्ष के दौर से गुज़र रही हैं. लेकिन मुझे लगता है कि जब वो एक बार इन सिद्धान्तो और लक्ष्यों को समझ जाएँगे और जानेंगे कि आगे जाकर यही स्थिति ‘सामान्य’ बनने वाली है, और इसका उनके व्यवसाय के लिए क्या मतलब है, तो वो फिर से इस रास्ते पर चलने को तैयार हो जाएँगे.
बहुत दु:ख की बात है कि ग़रीबी उन्मूलन के मुद्दे पर हम 20 साल पीछे चले गये हैं. ये इसलिए हो रहा है क्योंकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में कार्यरत लोगों की आजीविकाएँ ख़त्म हो रही हैं. ऐसे में कम्पनियों को यह बात समझ में आ रही है कि उन्हें न केवल एक जलवायु मुद्दे को लेकर एक पर्यावरणीय एजेण्डा पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है, बल्कि एक बड़ा सामाजिक एजेण्डा भी मुँह बाँये खड़ा है जिसे सम्बोधित करना बेहद ज़रूरी होगा. अब पहले की स्थिति में वापस जाने से काम नहीं बनेगा.”
"मैं लगभग 30 वर्षों से इस क्षेत्र में हूँ और व्यवसायों में सततता को एजेण्डा का मुख्य हिस्सा बनाना हमेशा कठिन रहा है: इसे हमेशा हाशिये पर धकेल दिया जाता है. लेकिन अब ये सोच बदल रही है और फ़िलहाल लगभग 70 प्रतिशत कम्पनियों के प्रमुख, टिकाऊ एजेण्डा को आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हैं.
जब 2015 में, मैं यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट में शामिल हुई तो वो एक दिलचस्प समय था, क्योंकि उसी साल संयुक्त राष्ट्र ने 2030 का सतत विकास एजेण्डा अपनाया था. अचानक 17 सतत विकास लक्ष्यों के साथ हमारे पास दुनिया के लिए यह अद्भुत एजेण्डा था और मेरे व संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट समुदाय के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि इसे व्यापारिक एजेण्डा में कैसे बदला जाए.
फिर, जिस दौरान मैं संयुक्त राष्ट्र के लिए काम कर रही थी, उसी समय कम्पनियाँ बहुपक्षवाद के समर्थन में उतरीं: बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ केवल व्यावसायिक कारणों से राष्ट्रवाद का विरोध नहीं करतीं बल्कि कई मानवीय और सामाजिक कारणों से भी करती हैं: उनके लिए ज़रूरी है कि पूरा विश्व एक बड़े बाज़ार के रूप में आपस में जुड़ा रहे.
इन लक्ष्यों ने वास्तव में न केवल व्यापार क्षेत्र, बल्कि वित्तीय क्षेत्र में भी नई जान फूँक दी है और सफलता के लिए इसे "नया सामान्य" घोषित करना ही व्यापारों के लिए एकमात्र उपाय बचा है.
उदाहरण के लिए, दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय संस्था ब्लैक रॉक, ग्लोबल कॉम्पेक्ट में शामिल हो गई है, जो एक बड़ा संकेत है. साथ ही अनेक वित्तीय संस्थान उन कम्पनियों की ओर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं जो ग्लोबल कॉम्पैक्ट के 10 सिद्धान्तों को अपनी ज़िम्मेदार कार्रवाई में शामिल करने के लिए तत्पर हैं.
यही कारण है कि ग्लोबल कॉम्पैक्ट उद्योगों और वित्तीय क्षेत्र के लिये ये परिभाषित करने का मापदण्ड बन गया है कि कम्पनियाँ कैसे अधिक टिकाऊ बन सकती हैं, और सभी दुविधाओं और चुनौतियों के बावजूद वो किस तरह लगातार सुधार का प्रयास कर रही हैं.”