नेपाल में जातिगत भेदभाव के उन्मूलन के लिए 'और ज़्यादा प्रयासों की ज़रूरत'
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार (OHCHR) प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने नेपाल में पिछले सप्ताहान्त कथित रूप से अगड़ी जाति की युवती के साथ प्रेम सम्बन्ध के मामले में पाँच लोगों की मौत पर गहरा दुख जताया है. यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ध्यान दिलाया है कि जाति-आधारित भेदभाव का अन्त किया जाना टिकाऊ विकास एजेण्डे में किसी को भी पीछे ना छूटने देने के लिए बेहद अहम है.
मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि यह देखना दुखद है कि जाति-आधारित पूर्वाग्रह 21वीं सदी में भी हमारी दुनिया में कितनी गहराई के साथ जड़ जमाए हुए हैं. उन्होंने इस त्रासदीपूर्ण घटना के पीड़ित युगल को याद करते हुए कहा कि इन दो युवाओं ने तमाम अवरोधों के बावजूद एक साथ जीवन व्यतीत करने का सपना देखा था.
🇳🇵 #Nepal: UN Human Rights Chief condemns Dalit killings, incl. 5 men and a 12-year old girl. Shocked by incidents of caste-based discrimination & violence that have taken place during #COVID19, @mbachelet calls for an independent investigation 👉 https://t.co/s0M8KoShyP pic.twitter.com/tllawTFg55
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मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पिछले शनिवार ‘अस्पृश्य दलित जाति’ का एक 21 वर्षीय युवक नवराज बीके और उसके मित्रों ने जाजरकोट ज़िले से क़रीब 32 किलोमीटर दूर पश्चिम रुकुम ज़िले तक की यात्रा की. यहाँ उस युवक की एक महिला मित्र का घर था जो कथित रूप से उच्च जाति से है.
रिपोर्टों के अनुसार वे युवक उस युवती के आग्रह पर उसे अपने घरेलू ज़िला ले जाना चाहते थे लेकिन उन पर हमला किया गया और एक नदी तक उनका पीछा किया गया. बाद में पाँच लोगों के शव बरामद हुए जिनमें चार दलित थे जबकि एक अन्य लापता व्यक्ति की तलाश की जा रही है.
मानवाधिकार प्रमुख ने कहा, “जाति आधारित भेदभाव अब भी बड़े पैमाने पर व्याप्त है, ना सिर्फ़ नेपाल में बल्कि अन्य देशों में भी. इससे बहुत बार गम्भीर क्षति भी होती है, जैसाकि इस मामले में लोगों की जान गई है.”
दलित समाज की मुश्किलें
नवराज बीके और उसके मित्रों की मौत का मामला ऐसी कोई अकेली घटना नहीं है. दलितों को पहले ‘अस्पृश्य’ कहा जाता था और देश में इस समुदाय को कथित अगड़ी जातियों के हाथों अनेक पीढ़ियों तक पीड़ाएँ झेलनी पड़ी है. इस तरह की घटनाएँ अब भी सामने आती हैं और माना जाता है कि समाज में जगह बनाने के उनके प्रयासों को अक्सर दबा दिया जाता है.
ऐसे ही एक मामले में 12 वर्षीया दलित लड़की की रूपनदेही ज़िले के देवदहा गाँव में हमले में मारे जाने की एक अन्य घटना सामने आई थी.
बताया गया था कि लड़की का जबरन विवाह दबदबे वाली जाति के उसी व्यक्ति से करा दिया गया था जिसने कथित रूप से उसका बलात्कार किया था. बाद में उस लड़की का शव एक पेड़ से झूलता मिला था.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने इन हमलों की स्वतन्त्र जाँच कराए जाने की माँग की है और ज़ोर देकर कहा है कि पीड़ितों और उनके परिजनों को न्याय, सच्चाई और मुआवज़ा मिलना चाहिए.
न्याय की तलाश
इन घटनाओं के बाद नेपाल में आक्रोश है और गृह मन्त्रालय ने मामले की तह तक जाने के लिए एक पाँच-सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है.
पुलिस ने मंगलवार को 20 व्यक्तियों के ख़िलाफ़ एक शिकायत दर्ज की है जिन्हें दोषी बताया जा रहा है. यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि संविधान में गारण्टियों के बावजूद नेपाल में अब भी बड़े पैमाने पर जाति-आधारित भेदभाव और हिन्सा की घटनाएँ हो रही हैं.
उनके मुताबिक इस समस्या से निपटने के लिए देश ने बड़े क़दम उठाए हैं लेकिन अभी समाज में इस दाग़ को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए बहुत कुछ किया जाना होगा.
नेपाल में संसदीय क़ानून, न्याय और मानवाधिकार समिति ने प्रशासन से दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के दो मामलों की तत्काल जाँच करने के लिए कहा है. साथ ही जाति-आधारित हत्याओं, जबरन ग़ायब किए जाने और गर्भपात किए जाने वाले मामलों की भी जाँच होगी.
नेपाल ने ‘नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर सन्धि’ को स्वीकार किया है लेकिन इन मामलों की निगरानी करने वाली समिति का कहना है कि दलितों को अब भी नेपाल में गहराई तक समाए भेदभाव और जाति से बाहर शादी करने पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.