समुद्र में फँसे रोहिंज्या समुदाय के लोगों को बचाने की पुकार
सुपर सायक्लोन ‘अम्फन’ ने बंगाल की खाड़ी और अन्डमान सागर में चक्रवाती तूफ़ानों के उग्र मौसम के आगमन का संकेत दे दिया है. आने वाले दिनों में मौसम की चुनौतियों के मद्देनज़र अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) ने समुद्र में फँसे सैकड़ों रोहिंज्या शरणार्थियों की व्यथा पर चिन्ता ज़ाहिर की है. यूएन एजेंसी का अनुमान है कि 500 लोग अब भी समुद्री मार्ग में फँसे हुए हैं और अपने नियत गंतव्य स्थान तक नहीं पहुँच पा रहे हैं.
इससे पहले अप्रैल महीने में कुछ रिपोर्टों के मुताबिक मलेशिया में प्रवेश करने की कोशिश में रोहिंज्या शरणार्थी दो महीने तक एक तस्कर के जहाज़ पर फँसे रहे और इस दौरान 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई.
बचाए गए 380 से ज़्यादा लोगों में से अनेक पानी की कमी, कुपोषण से पीड़ित थे और बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में उतारे जाने के तुरन्त बाद उन्हें यूएन एजेंसी और साझीदार संगठनों की ओर से तत्काल मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई गई.
आम तौर पर मॉनसून की शुरुआत होने के बाद अनियमित रूप से जहाज़ में सवार होकर दूसरे तटों तक पहुँचने की कोशिशें अक्टूबर महीने तक बन्द हो जाती हैं. आगामी दिनों में ख़राब मौसम की आशन्का के कारण समुद्र में फँसे जहाज़ों व यात्रियों की सुरक्षा चिन्ता का सबब है.
यूएन एजेंसी के मुताबिक इन हालात से निपटने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यता होगी जिसमें तलाश एवँ बचाव अभियान और लोगों का सुरक्षित ढँग से जहाज़ से उतारना शामिल है.
यह मदद तत्काल उपलब्ध करानी होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो लोग समुद्र में फँसे हैं उन्हें सुरक्षित तटों तक लाया और उतारा जा सके.
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन के महानिदेशक एंतोनियो विटोरिनो ने कहा कि “पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है, और ऐसे में वर्ष 2015 के उस सँकट की पुनरावृत्ति ना होने देने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे जब हज़ारों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को जीवनदायी देखभाल और सहारा पाने में भारी चुनौतियाँ पेश आई थीं.”
महानिदेशक विटोरिनो ने प्रवासन संगठन और साझीदार संगठनों की अपील को दोहराते हुए कहा कि सबसे निर्बलों की रक्षा के लिए सदस्य देशों को वर्ष 2016 के ‘बाली घोषणापत्र’ और आसियान संकल्पों को ध्यान रखना होगा.
अधर में जीवन
कई वर्षों से रोहिंज्या समुदाय के लोग आजीविका के साधनों और परिजनों के साथ रहने की उम्मीद में समुद्री मार्ग से मलेशिया पहुँचने का प्रयास करते रहे हैं. लेकिन हाल के सालों में उनकी आवाजाही में कमी आई है.
वर्ष 2017 में म्याँमार में भड़की हिन्सा से साढ़े आठ लाख से ज़्यादा रोहिंज्या को सीमा पार बांग्लादेश में शरण लेनी पड़ी जहाँ अब वे कॉक्सेस बाज़ार के विशाल शरणार्थी शिविरों में रहते हैं.
पिछले पाँच सालों में अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन विस्थापितों के लिए बनाए गए दुनिया के सबसे बड़े शिविर में प्रबन्धन कार्य में सहायता प्रदान करता रहा है. कुछ ही दिन पहले रोहिंज्या शरणार्थी शिविरों में कोरोनावायरस संक्रमण के मामलों की पुष्टि हुई थी.
यूएन एजेंसी के मुताबिक ज़िन्दगियों को बचाना अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की पहली प्राथमिकता है और यही इस क्षेत्र में स्थित देशों की ज़िम्मेदारी बनती है.
प्रवासन संगठन ने स्वास्थ्य की जाँच करने और लोगों को अलग रखे जाने (क्वारन्टीन) के इन्तज़ाम करने में हरसम्भव मदद का भरोसा दिलाया है. इससे लोगों को सुरक्षित, व्यवस्थित और गरिमामय ढँग से जहाज़ से उतरने में मदद की जा सकती है.