कोविड-19: युवाओं के लिए रोज़गार, शिक्षा व ट्रेनिंग के अवसरों पर भारी असर

वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण दुनिया में 16 फ़ीसदी से ज़्यादा युवाओं का रोज़गार छिन गया है और जिनके पास काम है उनके भी कामकाजी घण्टों में 23 फ़ीसदी की कटौती हुई है. अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के नए अपडेट के मुताबिक कोरोनावायरस से युवाओँ पर तिहरी मार पड़ी है और उनके लिए रोज़गार के साथ-साथ शिक्षा व ट्रेनिंग के अवसरों पर भी संकट खड़ा हो गया है.
यूएन एजेंसी ने अपने नए अपडेट में कोरोनावायरस से युवाओं के लिए रोज़गार के अवसरों पर पड़ने वाले प्रभावों और कार्यस्थलों पर सुरक्षित लौटने के सम्बन्ध में उपायों पर जानकारी दी है.
आईएलओ के विश्लेषण के मुताबिक इस महामारी से युवाओं पर अन्य वर्गों की तुलना में ज़्यादा असर हुआ है और फ़रवरी 2020 से युवाओं में बेरोज़गारी में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है. पुरुषों की तुलना में महिलाएँ इससे अधिक प्रभावित हुई हैं.
#COVID19 risks creating a 'lockdown generation' of young people.Our latest data shows more than 1 in 6 young people, in jobs before the crisis, are no longer working.The 4th Monitor also shows testing and tracing will make return to workplaces easier: https://t.co/bfw8R0XcNL pic.twitter.com/LNnMBRXHbI
GuyRyder
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर ने बताया कि, “कोविड-19 का आर्थिक संकट युवाओं – ख़ासकर महिलाओं – को निशाना बना रहा है. अगर हम हालात की बेहतरी के लिए तत्काल ठोस कार्रवाई नहीं रते तो इस वायरस की विरासत हमारे साथ दशकों तक रह सकती है.”
महानिदेशक राइडर ने कहा कि अगर अवसरों के अभाव में युवाओं की प्रतिभा और ऊर्जा किनारे पर ही रह गई तो फिर इससे भविष्य पर बुरा असर पड़ेगा और कोविड-19 के बाद की अर्थव्यवस्था के बेहतर पुनर्निर्माण की सम्भावनाओं को झटका लगेगा.
यूएन एजेंसी का अपडेट दर्शाता है कि महामारी से युवाओं पर तिहरी मार पड़ी है. ना सिर्फ़ उनके रोज़गार के साधन तबाह हो रहे हैं बल्कि शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों में भी व्यवधान आया है.
इससे ख़ासकर उन लोगों के ज़्यादा समस्या खड़ी हो गई है जो श्रम बाज़ार में प्रवेश करने के लिए तैयारी कर रहे थे या अपनी नौकरियाँ बदलना चाहते थे.
वर्ष 2019 में युवाओं में बेरोज़गारी 13.6 फ़ीसदी थी जो अन्य समूहों की तुलना में कहीं ज़्यादा थी. 26 करोड़ से ज़्यादा युवा रोज़गार, शिक्षा और ट्रेनिंग कार्यक्रमों का हिस्सा नहीं थे.
यूएन एजेंसी ने चुनौतीपूर्ण हालात से सामना करने में युवाओं को समर्थन देने के लिए तत्काल, व्यापक और लक्षित नीतिगत उपायों की पुकार लगाई है. इनके तहत विकसित देशों में रोज़गार और ट्रेनिंग कार्यक्रमों की गारंटी होना और निम्न व मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में रोज़गार पर केन्द्रित कार्यक्रमों का सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी होगा.
यूएन एजेंसी मॉनिटर के चौथे संस्करण में उन उपायों का भी ज़िक्र किया गया है जिन्हें अपनाकर कार्यस्थलों पर कर्मचारियों के सुरक्षित ढंग से लौटने में मदद मिल सकती है.
बताया गया है कि कोविड-19 संक्रमणों की गहन टेस्टिंग और संक्रमितों के सम्पर्क में आए लोगों का पता लगाना (ट्रेसिंग) अहम है और इसके ज़रिए श्रम बाज़ार में आने वाले व्यवधानों को कम करने में मदद मिल सकती है. साथ ही इन उपायों से तालाबंदी और अन्य पाबंदियों के मुक़ाबले सामाजिक जीवन में भी कम रुकावट आएगी.
जिन देशों में ‘टेस्टिंग व ट्रेसिंग’ का मज़बूत ढाँचा मौजूद है वहाँ काम के घण्टों में औसत गिरावट में 50 फ़ीसदी की कमी आई है जिसके तीन कारण बताए गए हैं:
- ‘टेस्टिंग व ट्रेसिंग’ से सख़्त पाबंदियों पर निर्भरता कम हो जाना
- आम लोगों में भरोसे को बढ़ावा और खपत व रोज़गार को प्रोत्साहन मिलना
- कार्यस्थलों पर कामकाज में आए व्यवधान को कम करने में मदद मिलना
साथ ही ‘टेस्टिंग व ट्रेसिंग’ से नए रोज़गारों को अस्थाई रूप से सृजित किया जा सकता है जिससे युवाओं और अन्य प्राथमिक समूहों को मदद मिलेगी.
लेकिन यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि इन उपायों को अपनाते समय डेटा निजता के सम्बन्ध में चिन्ताओं का भी ख़याल रखा जाना होगा.