नेपाल: पर्वतीय फ़सलों से जैवविविधता और आर्थिक विकास को बढ़ावा

नेपाल के सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और उसके साझीदार संगठन स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर फ़सलों की जैवविविधता संरक्षित करने के प्रयासों में जुटे हैं ताकि खाद्य सुरक्षा और कृषि को सुदृढ़ बनाया जा सके.
नेपाल के सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन-यापन बेहद कठिन है. रोज़मर्रा के जीवन में स्थानीय समुदायों को कईं आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिनमें बाज़ार तक पहुंच का अभाव, आयात और सब्सिडी पर निर्भरता, महिलाओं को कठिन परिश्रम करने पर मजबूर होना, कुपोषण, अप्रत्याशित मौसम और जंगली कीड़ों की समस्या शामिल हैं.
इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने अपने साझीदारों के सहयोग से एक योजना शुरू की है जिसके तहत स्थानीय समुदायों के साथ फ़सलों की जैवविविधता संरक्षण की दिशा में प्रयास हो रहे हैं. इससे खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में मदद मिलेगी.
वर्ष 2014-2020 के लिए ‘ग्लोबल एन्वायरन्मेंट फ़ैसिलिटी’ द्वारा समर्थित इस परियोजना को यूएन की पर्यावरण एजेंसी, नेपाल कृषि अनुसंधान परिषद और ‘बायोडाइवर्सिटी इन्टरनेशनल’ और अन्य संगठनों के सहयोग से कार्यान्वित किया गया.
यह परियोजना पश्चिमी, मध्य और पूर्वी नेपाल के हुमला, जुमला, लामजुंग और दोलखा ज़िलों में समुद्र तल से डेढ़ हज़ार से तीन हज़ार मीटर की ऊँचाई पर शुरु की गई है.
पहाड़ी इलाक़ों में कृषि प्रणालियों में अक्सर पर्यावरणीय अस्थिरता का ऊँचा स्तर देखने को मिलता है. इस प्रोजेक्ट में आठ पर्वतीय फ़सलों – कुट्टु, कॉमन बीन (सेम), कई प्रकार के ज्वार-बाजरा, जौं और ऊँचे व ठण्डे स्थानों पर उपजने वाले चावलों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.
इस परियोजना को पिछले पाँच साल में दो बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ा: मार्च और अप्रैल 2015 में विनाशकारी भूकंप जिससे चार में से दो इलाक़े बुरी तरह प्रभावित हुए. इसके अलावा 2017 में प्रशासनिक सुधारों के तहत एक नई संघीय प्रणाली की शुरूआत हुई.
तमाम व्यवधानों के बावजूद सरकारी अधिकारियों का मानना है कि इस परियोजना का काफ़ी असर हुआ है. नेपाल कृषि अनुसंधान परिषद के कार्यकारी निदेशक दीपक भण्डारी का कहना है कि, "परियोजना ने पारम्परिक फ़सलों को बढ़ावा देने और मुख्यधारा में लाने की नींव रखी है." उन्होंने राष्ट्रीय परियोजना वेबसाइट को शुरू किए जाने का भी स्वागत किया है.
नेपाल के पश्चिमोत्तर में छिपरा गाँव में एक किसान देपसरा उपाध्याय के मुताबिक "परियोजना से हमें स्थानीय फ़सलों के मूल्य की जानकारी मिली. हमें गाँव में एक सामुदायिक बीज-बैंक स्थापित करने में मदद मिली. "
साथ ही फ़सलों के प्रसंस्करण के लिए इलैक्ट्रिक मशीनें भी उपलब्ध कराई गईं. इससे गांव की महिलाओं द्वारा किए जाने वाले शारीरिक श्रम में कमी आई है और उन्हें बहुत राहत मिली है.
परियोजना के तहत, दुर्लभ, स्थानीय पहाड़ी फ़सलों के संरक्षण के लिए चार सामुदायिक बीज बैंक भी स्थापित किए गए. बैंक में अब 56 फ़सलों की 232 अद्वितीय और लुप्तप्राय किस्में संरक्षित हैं.
यूएन एजेंसी और साझीदारों ने सामुदायिक जैव विविधता प्रबन्धन फ़ंड, कृषि विद्यालयों और बीजों के आदान-प्रदान के ज़रिये कृषि में जैवविविधता को बढ़ावा देने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को भी प्रोत्साहन दिया.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की जैवविविधता विशेषज्ञ मैरिएट सकालियाँ का कहना है कि, "फ़सलों की जैवविविधता प्रकृति में योगदान देती है जो आधुनिक चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली कई दवाओं का एक अनिवार्य स्रोत है. विश्व स्तर पर मानव आबादी का लगभग आधा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है."
वर्ष 2014 में शुरुआत के बाद से ही यह परियोजना स्थानीय समुदायों और किसानों के लाभ के लिए पहाड़ी क्षेत्र में फ़सलों की जैव विविधता बढ़ाने का काम कर रही है. इसके नतीजे इस प्रकार हैं:
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