सुपर सायक्लोन 'अम्फन' की चपेट में पश्चिम बंगाल के सात ज़िले
सुपर सायक्लोन 'अम्फन’ ने भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बुधवार को दस्तक दे दी जहाँ सात ज़िलों में इसका प्रकोप ज़्यादा होने की आशंका है. संयुक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम न्यूनीकरण के भारत कार्यालय में विशेषज्ञ रन्जनी मुखर्जी ने यूएन न्यूज़ हिन्दी के साथ एक ख़ास बातचीत में बताया कि प्रदेश की राजधानी कोलकाता में इसका अनुमान से कहीं ज़्यादा असर देखा जा रहा है जहाँ 130 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ़्तार से हवाएँ चल रही हैं और आस-पास के इलाक़ों में भी भारी बारिश हो रही है.
इस तूफ़ान के तटीय इलाक़ों से टकराते समय हवा की गति 155 से 165 किलोमीटर प्रति घण्टा आँकी गई है
चक्रवाती तूफ़ान अपना रास्ता बदल रहा है और लेकिन सम्भावना है कि पश्चिम बंगाल के प्रभावित इलाक़ों में कुछ घण्टों तक हवाओं के तेज़ झोंकों और भारी बारिश के बाद सुपर सायक्लोन बांग्लादेश का रुख़ करेगा.
भारत में पहले पश्चिम बंगाल के अलावा ओडिशा के भी इसकी चपेट में आने की सम्भावना जताई गई थी लेकिन शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक ओडिशा में अभी उतना असर देखने को नहीं मिला है.
बांग्लादेश में कोलकाता, हावड़ा, पूर्वी व पश्चिमी मेदिनीपुर, हुगली सहित कुल सात ज़िले प्रभावित हुए हैं. पश्चिम बंगाल में तीन लाख 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया है.
हालात से निपटने के लिए ‘नेशनल डिज़ास्टर रिस्पान्स फ़ोर्स’ की 19 टीमें पश्चिम बंगाल पहुँच गई हैं.
साथ ही संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ हालात की निगरानी कर रही हैं और सरकार को हरसम्भव मदद मुहैया कराने के लिए तैयार हैं.
कोविड की चुनौती
वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण राहत प्रयासों में नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं.
पहले जिन शिविरों में 500 से ज़्यादा लोग रखे जा सकता थे, अब वहाँ केवल एक तिहाई लोगों को ही रखना पड़ रहा है क्योंकि शारीरिक दूरी बरता जाना ज़रूरी है.
सायक्लोन से राहत के लिए बनाए गए शिविरों में लोगों को कोविड-19 से बचाव के लिए जागरूक बनाया जा रहा है और हाथ धोने व साबुन का इन्तज़ाम किया गया है.
सरकार और अन्य ग़ैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर फ़ेस मास्क जुटाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं.
राहत शिविरों में लोगों की संख्या को सीमित रखने के प्रयासों के तहत अन्य स्कूलों को भी चिन्हित किया जा रहा है ताकि वहाँ प्रभावितों को रखने की सुविधा की जा सके.
चक्रवाती तूफ़ान से पहले सामुदायिक तैयारियों और जागरूकता की बदौलत हाल के वर्षों में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं में हताहतों की संख्या में कमी आई है.
ये प्रयास पंचायत के स्तर पर सम्भव बनाए जाते हैं और इनमें नागरिक समाज की भी अहम भूमिका है.
हताहतों की संख्या शून्य रखने की नीति (Zero casualty policy) का असर देखने को मिल रहा है और ज़िन्दगियाँ बचाने में हाल के सालों में सफलताएँ मिली हैं, लेकिन आर्थिक व्यवधानों के असर को कम करने के लिए अभी और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है.
यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम न्यूनीकरण के भारत कार्यालय में विशेषज्ञ रन्जनी मुखर्जी की यूएन न्यूज़ हिन्दी के साथ बातचीत पर आधारित है.