भारत और बांग्लादेश में चक्रवाती तूफ़ान ‘अम्फन’ की आहट
चक्रवाती तूफ़ान ‘अम्फन’ भारत और बांग्लादेश में तटवर्ती घनी आबादी वाले इलाक़ों की तरफ़ बढ़ रहा है. बंगाल की खाड़ी में ‘अम्फन’ की तीव्रता में इज़ाफ़ा हुआ है और अब इसे ‘सुपर सायक्लोन’ कहा जा रहा है. कोरोनावायरस से ऐहतियाती उपायों के कारण क्षेत्र में लागू पाबन्दियों ने आपदा प्रबन्धन कार्य को पहले से कहीं अधिक जटिल बना दिया है. ‘अम्फन’ के 20 मई को तटीय इलाक़ों से टकराने की आशंका है जिस दौरान ख़तरनाक हवाएँ चलेंगी और भारी बारिश के साथ निचले इलाक़ों में बाढ़ का भी जोखिम है.
नई दिल्ली में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने चेतावनी जारी की है कि पश्चिम बंगाल के डिघा और बांग्लादेश के हटिया द्वीप के बीच तटीय इलाक़ों से टकराते समय ‘अम्फन’ अपने साथ 155-165 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से हवाएँ लाएगा.
हवा के तेज़ झोंकों और मूसलाधार बारिश के साथ-साथ समुद्र में चार से पाँच मीटर ऊँची लहरें उठ सकती हैं.
भारत और बांग्लादेश दोनों देशों में चक्रवाती तूफ़ान से निपटने के लिए हताहतों की संख्या शून्य रखने की नीति (Zero casualty policy) है. भारत में दस लाख से ज़्यादा लोग सुरक्षित स्थानों पर भेजे जा रहे हैं.
बांग्लादेश में भी बड़ी संख्या में लोग सुरक्षित इलाक़ों में भेजे गए हैं. आपदा के जोखिम को कम करने के लिए यूएन कार्यालय के मुताबिक बांग्लादेश में सुरक्षित स्थानों पर भेजे जाने वाले लोगों की संख्या नवम्बर 2019 में ‘सायक्लोन बुलबुल’ के दौरान आँकड़े की बराबरी कर सकती है.
यूएन मानवीय राहत एजेंसियों ने बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में रोहिंज्या शरणार्थी शिविरों में आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयारियाँ तेज़ कर दी हैं. यहाँ रोहिंज्या शरणार्थी और स्थानीय बांग्लादेशी समुदाय के 12 लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं.
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) के मुताबिक, “विनाशकारी स्वास्थ्य संकट के कारण समुदाय पहले से ही नाज़ुक हालात में हैं और हम जानते हैं कि अगर लोगों पर सामुदायिक शरण के लिए ज़ोर डाला गया तो वे शारीरिक दूरी नहीं बरत पाएंगे और बीमारी को फैलाने या संक्रमित होने का जोखिम रहेगा.”
आईओएम ने सरकारी आँकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 18 मई तक कॉक्सेस बाज़ार के शरणार्थी शिविरों में पाँच संक्रमितों की पुष्टि हो चुकी है. अब तक कोरनावायरस संक्रमण का पता लगाने के लिए शरणार्थी समुदाय में 140 टेस्ट किए गए हैं.
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों का मौसम दो बार अपने उच्चतम स्तर पर पहुँचता है – साल के मई और नवम्बर महीने में और अतीत में यह अक्सर बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने का सबब बन चुका है.
नवम्बर 1970 में चक्रवाती तूफ़ान ‘भोला’ से व्यापक पैमाने पर तबाही हुई और तीन लाख लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद वर्ष 1972 में क्षेत्रीय पैनल (WMO/ESCAP Panel on Tropical Cyclones) को चक्रवाती तूफ़ानों पर पारस्परिक समन्वय की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.
गहन और समन्वित ढंग से आपदा के जोखिम को कम करने के लिए हुए प्रयासों के फलस्वरूप हाल के सालों में हताहतों की संख्या कम करने में मदद मिली है.
उदाहरण के तौर पर, भारत के ओडिशा राज्य में चक्रवाती तूफ़ान ‘फणी’ 3 मई 2019 को तटीय इलाक़ों से टकराया लेकिन सटीक पूर्वानुमानों, बचाव अभियानों और हज़ारों लोगों को पहले से ही सुरक्षित स्थानों पर भेजे जाने से मृतक संख्या कम से कम रखने में मदद मिली.
जबकि इससे पहले वर्ष 1999 में ओडिशा में आए चक्रवाती तूफ़ान के कारण हज़ारों लोगों की मौत हुई थी.