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कोविड-19: सामाजिक संरक्षा व्यापक व मज़बूत करनी होगी

चीन के झेजियाँग में एक फैक्टरी में एक कामगार
ILO
चीन के झेजियाँग में एक फैक्टरी में एक कामगार

कोविड-19: सामाजिक संरक्षा व्यापक व मज़बूत करनी होगी

स्वास्थ्य

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा है कि विकासशील देशों में कोविड-19 ने सामाजिक सुरक्षा कवरेज में ख़ामियों को उजागर कर दिया है जिसके कारण महामारी से उबरने के प्रयासों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और करोड़ों लोग ग़रीबी के गर्त में धकेले जा सकते हैं. ऐसा हुआ तो इसी तरह के संकटों का सामना करने की वैश्विक तैयारी भी प्रभावित होगी. 

संगठन ने विकासशील देशों में कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने में सामाजिक संरक्षा की स्थिति पर गुरूवार को जारी रिपोर्ट के पहले हिस्से में कहा है कि इस स्वास्थ्य संकट के दौरान लोगों को सहायता पहुँचाने के लिए सामाजिक संरक्षा एक बेहद ज़रूरी प्रणाली है. 

साबुन बनाने की एक फ़ैक्टरी में काम करती एक महिला. आईएलओ का कहना है कि अनेक देशों में बीमार पड़ने पर लोगों की आदमनी व रोज़गार छिन जाने का जोखिम है.
ILO Photo/John Isaac
साबुन बनाने की एक फ़ैक्टरी में काम करती एक महिला. आईएलओ का कहना है कि अनेक देशों में बीमार पड़ने पर लोगों की आदमनी व रोज़गार छिन जाने का जोखिम है.

रिपोर्ट में कुछ देशों में शुरू किए गए उपायों पर भी नज़र डाली गई है जिनमें गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल के रास्ते में आड़े आने वाली वित्तीय बाधाओं को दूर करना, और आय व कामकाज सुरक्षित करना और कुछ अन्य उपाय शामिल हैं.

यूएन श्रम एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सस्ती, गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता “ज़िन्दगी और मौत का मुद्दा” बन गई है.

अनेक जानलेवा जोखिम

श्रम संगठन की रिपोर्ट में नीति निर्माताओं को केवल कोविड-19 का मुक़ाबला करने पर ही सारा ध्यान व संसाधन लगाने के ख़िलाफ़ यह कहते हुए आगाह भी किया गया है कि ऐसा होने से अन्य जानलेवा बीमारियों से निपटने में स्वास्थ्य प्रणालियों क्षमता कम हो सकती है.

उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, विश्व की कुल आबादी का लगभग 55 प्रतिशत हिस्से यानि लगभग 4 अरब लोगों के पास सामाजिक बीमा या सामाजिक सहायता उपलब्ध नही है. कुल बेरोज़गारों की केवल 20 फ़ीसदी संख्या को ही बेरोज़गारी लाभ मिल पाते हैं.

रिपोर्ट के दूसरा हिस्सा कोविड-19 के सिलसिले में बीमार पड़ने व एकान्तवास में रहने के दौरान आय व कामकाजी लाभ मिलने के बारे में बात करता है. इसमें बीमारी के दौरान मिलने वाले आय व भत्तों के मामले में मौजूद ख़ामियों के प्रति आगाह किया गया है.

इन लाभों के अभाव में अक्सर कामकाजी लोग चिन्तित हो जाते हैं और बीमारी की हालत में भी कामकाज पर जाते हैं क्योंकि ऐसा नहीं करने पर उनकी आमदनी पर असर पड़ सकता है.

इससे अन्य लोगों के भी बीमार होने का जोखिम बढ़ता है. ऐसे मामलों में अगर आमदनी कम हो जाती है तो कामकाजी लोगों और उनके परिवारों के ग़रीबी में चले जाने का ख़तरा बढ़ जाता है. 

रिपोर्ट में इन ख़ामियों को दूर करने के लिए लघु अवधि के उपाय करने का आहवान किया गया है जिनकी बदौलत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को सहायता मिलने, ग़रीबी की रोकथाम और स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने जैसे फ़ायदे होंगे.

बीमारी अवस्था में लाभों का दायरा बढ़े

रिपोर्ट में अस्वस्थता लाभों का दायरा सभी लोगों तक पहुँचाने की सिफ़ारिश की गई है. साथ ही इन लाभों का स्तर भी बढ़ाने की बात कही गई है ताकि लोगों को आमदनी सुरक्षा मिल सके. और ये लाभ लोगों तक पहुँचाने की रफ़्तार बढ़ाई जाए व इन लाभों में बीमारी की रोकथाम, जाँच-पड़ताल व इलाज के लाभ भी शामिल कर दिए जाएँ.

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन में सामाजिर संरक्षा विभाग की निदेशक शहरा रज़ावी का कहना है, “कोविड-19 संकट नीन्द से जगा देने वाली एक घण्टी है.”

इसने दिखा दिया है कि सामाजिक संरक्षा के अभाव में ना केवल ग़रीब लोग प्रभावित होते हैं, बल्कि उन लोगों के लिए भी निर्बल या कमज़ोर हालात वाले होने का ख़तरा बढ़ जाता है तो तुलनात्मक रूप में बेहतर हालात में रह रहे होते हैं.

“चिकित्सा देखभाल पर आने वाला भारी-भरकम ख़र्च और आमदनी रुक जाने के कारण परिवारों की दशकों तक जोड़ी गई बचत ख़तरे में पड़ सकती है.”

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन में विकास अर्थशास्त्री जयति घोष का कहना है कि इसमें कोई शक नहीं है कि एक निपुण व टिकाऊ सामाजिक संरक्षा प्रणाली लागू करना विशाल चुनौती हो सकती है. 

नुक़सान का दुष्चक्र

सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत तो सर्वविदित है, विकासशील देशों में सार्वजनिक वित्तीय संसाधनों के लिए ये भारी माँगें ऐसे में और भी ज़्यादा दबाव डाल रही हैं जब उन्हें अपने निर्यात व पर्यटन राजस्व के घाटे का भी सामना करना पड़ रहा है.

एक तरफ़ तो विकसित देश बड़े आर्थिक पैकेजों का इस्तेमाल कर रही हैं लेकिन विकासशील देशों के लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल है. 

जयति घोष का कहना है कि अनुमानित वित्तीय ज़रूरतों का दायरा लगभग ढाई ट्रिलियन डॉलर का है, जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र में तुरन्त बढ़े ख़र्च का दायरा बढ़कर 160 अरब से लेकर 500 अरब डॉलर के बीच तक हो जाने का अनुमान लगाया गया है.