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युद्धग्रस्त यमन में जल्द 'शान्ति हासिल करना सम्भव'

यमन के अदन में कोविड-19 फैलने के ख़तरे के साथ-साथ बाढ़ और हैज़े से हालात और भी मुश्किल हो गए हैं.
© UNICEF
यमन के अदन में कोविड-19 फैलने के ख़तरे के साथ-साथ बाढ़ और हैज़े से हालात और भी मुश्किल हो गए हैं.

युद्धग्रस्त यमन में जल्द 'शान्ति हासिल करना सम्भव'

शान्ति और सुरक्षा

यमन के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने सुरक्षा परिषद को वहाँ के हालात से अवगत कराते हुए भरोसा जताया है कि देश हिंसा पर जल्द विराम लगने के नज़दीक पहुँच गया है लेकिन आशावान होने के साथ-साथ सतर्कता बरतते रहना ज़रूरी है. उनके मुताबिक शान्ति क़ायम करने के लिए हुई बातचीत में ठोस प्रगति हुई है, विशेषकर युद्धविराम के मुद्दे पर.

यूएन के विशेष दूत मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने बताया कि यमन की सरकार और विद्रोही हूती लड़ाकों ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर सकारात्मक रुख़ दर्शाया है जिससे वह बेहद उत्साहित हैं.

उन्होंने कहा कि यमन में वैश्विक महामारी कोविड-19 के मँडराते जोखिम और वैश्विक आर्थिक मन्दी की आशंका से हालात और ज़्यादा ख़राब होने का ख़तरा है, लेकिन इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र ने एक ऐसा रोडमैप पेश किया है जिसे अपनाने का दायित्व हथियार उठाने वाले पक्षों पर है. 

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विशेष दूत ने आगाह किया कि शान्ति उन व्यापक ज़रूरतों का एक अंश है जिन पर सहमति बनाई जानी होगी और इनमें मानवीय राहत व आर्थिक ज़रूरतें पूरी किया जाना शामिल है.

इनके तहत हिंसा प्रभावित इलाक़ों में नाज़ुक हालात में रह रहे लोगों तक आवश्यक मेडिकल सामग्री और अन्य ज़रूरी सामान व राहत पहुँचाई जानी होगी. 

मार्टिन ग्रिफ़िथ्स ने बताया कि महत्वपूर्ण संकेत मिले हैं कि दोनों पक्ष शान्ति हासिल करने के इरादे से समझौता करने के इच्छुक हैं. 

यमन में हिंसा पिछले पॉंच सालों से भी ज़्यादा समय से जारी है.  वर्ष 2014 में हूती विरोधी गुटों ने राजधानी सना पर क़ब्ज़ा कर लिया था जिसके बाद पड़ोसी देश सऊदी अरब के नेतृत्व वाले अन्तरराष्ट्रीय गठबन्धन ने जवाबी कार्रवाई में राष्ट्रपति हादी का मार्च 2015 से समर्थन किया है. 

यमन पहले से ही विश्व के निर्धनतम देशों में शामिल है और वहाँ हिंसा के कारण अब तक हज़ारों लोगों की मौत हो चुकी है; और देश दुनिया के सबसे बदहाल मानवीय संकटों में तब्दील हो गया है. 

हाल के समय में हुदायदाह, अल जाफ़ और अल बायदा में झड़पें होना दिखाता है कि शान्ति अब भी दूर की कौड़ी नज़र आती है. 

अदन में हालात को बयाँ करते हुए यूएन दूत ने आशंका जताई कि एक बड़ा तूफ़ान आकार ले रहा है.

मलेरिया और हैज़ा फैलने के कारण मृतकों की संख्या बढ़ रही है और भीषण बाढ़ से बुनियादी ढाँचे व घरों को क्षति पहुँची है. पहले से ही बदहाल हालात में कमज़ोर स्वास्थ्य प्रणाली और सार्वजनिक सेवाएँ ढहने के कगार पर पहुँच गई है. 

यूएन के विशेष दूत ने भरोसा जताया है कि आने वाले दिनों में वार्ता का लाभ उठाकर सभी पक्ष राजनैतिक प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाएँगे ताकि हिंसा पर विराम लगाया जा सके.

उन्होंने कहा कि राजनैतिक समाधान निकलने के बाद एक नए यमन का उभरना सम्भव है जहाँ बुनियादी ज़रूरतों को पूरा किया जा सकेगा, परिवार सुरक्षित होंगे, संस्थाएँ अपने नागरिकों को न्यायसंगत ढंग से सेवाएँ प्रदान करेंगी, महिलाएँ बिना किसी दमन के नेतृत्व करेंगी, पत्रकारों को आज़ादी होगी और मतभेद संवाद व साझेदारी के ज़रिए सुलझाए जाएँगे.  

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यमन के लिए ऐसा भविष्य सम्भव है और इसे वास्तविक बनाने में सुरक्षा परिषद की अहम भूमिका है ताकि देश के लोगों को शान्ति पथ पर ले जाया सके. 

आपात राहत मामलों के उपसमन्वयक रमेश राजासिंहम ने यमन में कोविड-19 महामारी के फैलाव की आशंका के मद्देनज़र सुरक्षा परिषद को बताया कि हालात गंभीर रूप धारण कर सकते हैं.  

उन्होंने कहा कि मानवीय राहतकर्मियों को राहत वितरण में पाबन्दियों और धनराशि उपलब्ध ना होने के कारण बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

स्वास्थ्य कन्द्रों पर हमले बढ़े हैं और शरणार्थियों व प्रवासियों को हिरासत में लिया जा रहा है और जबरन देश से बाहर भेजा जा रहा है. 

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियाँ देश में हर महीने लगभग एक करोड़ लोगों तक भोजन, पानी, स्वास्थ्य सेवा सहित अन्य राहत सामग्री पहुँचा रही हैं और कोविड-19 से बचाव के उपायों के प्रति जागरूकता का प्रसार कर रही हैं.